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किफायती जल आपूर्ति की राह आसान करेगा आईआईटी-बाम्बे का यह प्रयोग

हमें फॉलो करें किफायती जल आपूर्ति की राह आसान करेगा आईआईटी-बाम्बे का यह प्रयोग
, मंगलवार, 2 फ़रवरी 2021 (11:58 IST)
नई दिल्ली, पानी हमारी आधारभूत आवश्यकताओं में से एक है। लेकिन, उत्तरोत्तर बढती आबादी के दबाव में जल-स्रोतों के अत्यधिक दोहन से विश्वभर में जल-संकट गहराता जा रहा है। विज्ञान इस समस्या के समाधान की खोज में तत्परता से जुटा है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), बॉम्बे ने महाराष्ट्र के पालघर जिले के दो छोटे कस्बों में जल-आपूर्ति और संरक्षण से जुड़ा एक सफल प्रयोग किया है। इसके अंतर्गत इन कस्बों में पानी की आपूर्ति के दौरान रिसाव रोकने और जल संबंधित अवसंरचना में कमियों को सुधारने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

यह उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र देश के उन क्षेत्रों में शामिल है, जहां पानी को लेकर संकट की स्थिति है। कुछ साल पहले दिल्ली से महाराष्ट्र के लातूर को भेजी गई वाटर एक्सप्रेस की तस्वीरें अभी भी लोगों की स्मृतियों में होंगी। आईआईटी बॉम्बे के शोधकर्ताओं ने एक नयी विकसित 'शाफ्ट विद मल्टीपल आउटलेट्स' तकनीक द्वारा क्षेत्र के मौजूदा पाइप वाटर वितरण नेटवर्क को  सुधारने का काम किया है। यह प्रयोग मुख्य रूप से पानी के एक निश्चित समय पर उपयोग और उससे जुड़ी अवसंरचना के विकेंद्रीकरण पर आधारित है।

शाफ्ट मूल रूप से एक लंबवत या उर्ध्वाधर पाइप संरचना है जिसका ऊपरी सिरा आसमान की ओर खुलता है। इसका आंतरिक पाइप एक हाइड्रॉलिक विभाजक का काम करता है। शाफ्ट में स्थित यह आंतरिक इनलेट पाइप इनकमिंग हेड और आपूर्ति पक्ष के बीच विभाजन का काम करता है। शाफ्ट में एक ही इनलेट पाइप होता है, लेकिन विभिन्न स्तरों पर आउटलेट्स की संख्या बढ़ाई जा सकती है। किसी क्षेत्र विशेष की पानी की मांग के अनुरूप इसके व्यास में भी परिवर्तन किया जा सकता है। इसमें मल्टी-आउटलेट टैंक की व्यवस्था भी है, जो उपभोक्ता की छत पर ही पानी के भंडारण की क्षमता निर्मित करती है।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग में जल तकनीक पहल से मिले सहयोग से आईआईटी बाम्बे और आईआईटी मद्रास ने स्थानीय ग्राम पंचायतों की भागीदारी से इस प्रक्रिया को मूर्त रूप दिया है। अभी यह प्रयोग पालघर जिले के सफाले और उमेरपाड़ा कस्बों में किया गया है। फिलहाल यहां बहु ग्रामीण जल आपूर्ति तंत्र के माध्यम से ही पानी उपलब्ध कराया जाता रहा है।

बताया जा रहा है कि इस प्रयोग से न केवल समूचे तंत्र का परिचालन सुधरेगा, अपितु अवसंरचना के मोर्चे पर लागत भी कम होगी। आमतौर पर 2000 परिवारों वाली आबादी के लिए आधे दिन की जल-भंडारण क्षमता प्राप्त करने के लिए लगभग दस लाख रुपये का खर्च आता है, जबकि 'शाफ्ट विद मल्टीपल आउटलेट्स' तकनीक के माध्यम से यह लागत मात्र दो लाख रुपये आएगी।

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में दो हजार परिवारों से कम आबादी वाली ऐसी करीब पांच लाख बस्तियां हैं। ऐसे में इस तकनीक के माध्यम से जल जीवन मिशन और शहरी जलापूर्ति तंत्र से जुड़ी सरकार की योजनाओं में होने वाले हजारों करोड़ों रुपए के खर्च की बचत की जा सकती है। यही कारण है कि केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय ने 'हर घर जल योजना' के अंतर्गत सभी राज्यों से इस इसे क्रियान्वित करने की सिफारिश की है। (इंडिया साइंस वायर)

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