लोकसभा में मोदी सरकार ने नागरिकता संशोधन बिल पेश कर दिया है। गृहमंत्री अमित शाह ने बिल पेश करते हुए विपक्ष के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि वह बिल पर विपक्ष के हर सवाल का जवाब देने को तैयार है। उन्होंने साफ कहा कि नया बिल किसी भी तरह अल्पसंख्यकों के खिलाफ नहीं है। उन्होंने कहा कि ये बिल संविधान की मूल भावना के खिलाफ नहीं है और न ही बिल संविधान के अनुच्छेद 14 समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है।
लोकसभा में बिल पेश करते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि बिल में पड़ोसी देशों पाकिस्तान , अफगानिस्तान और बांग्लादेश से भारत में शरण लेने के लिए आए गैर मुस्लिम लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है। गृहमंत्री ने बिल पेश करते हुए यह साफ किया कि क्यों बिल में हिंदू, जैन,बौद्ध,सिख,पारसी और ईसाई समुदाय को भारतीय नागरिकता का प्रावधान किया गया है।
गृहमंत्री अमित शाह के मुताबिक आज भी इन देशों में इन समुदायों को धर्मिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है और बिल ऐसे ही धर्मिक रुप से प्रताड़ित लोगों को सदस्यता देने का प्रावधान करता है। गृहमंत्री ने कहा कि बिल में मुस्लिमों को नागरिकता देने का प्रावधान इसलिए नहीं किया गया है क्योंकि वह धार्मिक प्रताड़ना के शिकार नहीं है।
कांग्रेस ने किया धर्म के आधार पर विभाजन - सदन में गृहमंत्री अमित शाह के बिल पेश करने के दौरान कांग्रेस सहित विपक्ष के सदस्यों ने जमकर हंगामा किया। विपक्ष के लगातार हंगामे के बीच अमित शाह ने कांग्रेस को निशाने पर लेते हुए उसे धर्म के आधार पर देश के विभाजन करने का जिम्मेदार ठहरा दिया।
गृहमंत्री ने कहा कि कांग्रेस ने अगर धर्म के आधार पर देश का विभाजन नहीं किया होता तो बिल की जरुरत ही नहीं पड़ती। इसके साथ गृहमंत्री ने कहा कि 1971 में जब इंदिरा गांधी ने बंग्लादेश के आए लोगों को नागरिकता देने का प्रवाधान किया गया तो अब सवाल क्यों हो रहा है।
गृहमंत्री ने कहा कि बांग्लादेश में आज भी धार्मिक आधार पर अल्पसंख्यकों के साथ अत्याचार हो रहा है। गृहमंत्री के इस बयान के बाद सदन में जमकर हंगामा हुआ।
बिल में गैर-मुसलमान अवैध प्रवासियों को नागरिकता देने के प्रावधान पर विपक्ष अपना विरोध जताया है। विपक्ष ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार जानबूझकर मुस्लिमों को नागरिकता देने से रोकना चाहती है।
सरकार गैर मुस्लिमों को नागरिकता देकर अपना सियासी वोट बैंक साधना चाह रही है। इस बिल को मोदी सरकार पहले ही भी संसद में पेश कर चुकी है लेकिन तब बिल केवल लोकसभा में पास हो पाया था लेकिन सरकार का कार्यकाल खत्म होने और राज्यसभा में बिल नहीं पास होने से यह स्वत: ही खत्म हो गया था।
इस बिल का विरोध विपक्ष वैसे तो पूरे देश में कर रहा है लेकिन देश के पूर्वोत्तर राज्यों असम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश में लोग भी इस बिल के विरोध में आ गए है। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में ट्रिपल तलाक और जम्मू कश्मीर से धारा 370 खत्म करने के बाद इस बिल को सियासी वोट बैंक को साधने की बड़ी कवायद के तौर पर देखा जा रहा है।