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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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‘ध्रुपद पदों’ को गाते हुए राह से भटके ‘डागरवाणी के शागि‍र्द’ गुंदेचा बंधु

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नवीन रांगियाल

एक मामूली आलाप के साथ इसकी शुरुआत धीमे-धीमे दृष्‍ट‍ि के सारे आयामों को चारों तरफ से घेर लेती है, जैसे किसी प्र‍िय ने बाहों में भर लि‍या हो। गहरे जल में डूबकी की तरह। आंखें बंद हैं और हम अतल, अंतहीन गहराई में डूब चुके हैं, फि‍र कहीं कुछ नहीं है, सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा ही है, और अंधेरे की आवाज है।

अपनी इस गहराई की वजह से ध्रुपद बहुत गंभीर है, अपनी प्रकृति में बहुत गहन। इसकी गहराई गले और छाती को भी क्षतिग्रस्‍त कर सकती है। इसका सारा भार फेफड़ों पर होता है।

ध्रुपद नियमों का भी धनी है, यह ठुमरी की तरह चपल और द्रुत नहीं, न ही श्रंगार का बहुत ज्‍यादा रस है इसमें। इसके नियम तय हैं। अगर नियम टूटे या जरा भी इधर-उधर हुए तो यह ध्रुपद नहीं रहता।

राग और ताल का अनुशासन इसका अनिवार्य चरित्र और अंग हैं, लेकिन इसी ध्रुपद गायि‍की में रहते हुए गुंदेचा बंधुओं के चरित्र पर दाग लगे हैं। वे तय नियमों से भटक गए, इधर-उधर हो गए। गुंदेचा बंधुओं के बारे में जो खबर आ रही है, वो उनकी मर्दानगी के अवगुण का ही एक प्रकार है।

ध्रुपद के पदों को गाते हुए शास्‍त्रीय राह से भटके डागरवाणी के शार्गिद गुंदेचा के बाद अब यह शैली कहां और कैसे सुनी जाएगी।

बहुत दिलचस्‍प बात है कि ध्रुपद को अपने जॉनर की वजह से ‘मर्दाना’ भी कहा जाता है।

भारतीय शास्‍त्रीय संगीत परंपरा में ध्रुपद गायि‍की को सबसे पुरानी परंपरा कहा गया है, शुरुआत में इसकी चार शैलियां रही हैं--- गौहरबानी, नौहरबानी, खंडारीबानी और डागरवाणी। अब बहुत सालों बाद जो शैली सबसे ज्‍यादा गाई जाती है या इंडि‍यन क्‍लासिकल म्‍युजिक में बची रह गई वो डागरवानी ही है--- डागरवाणी, वह शैली जिसे उस्ताद ज़िया फ़रीदुद्दीन डागर और मोहिउद्दीन डागर ने ईजाद किया था।

ग्वालियर, आगरा, दरभंगा, विष्णुपुर, बेतिया घरानों की अन्‍य गौहरबानी, नौहरबानी, खंडारीबानी आदि नामों से प्रचलित ध्रुपद शैलियां समय के साथ कम होती गई।

ध्रुपद का उदेश्‍य मनोरंजन नहीं रहा है, यह विशुद्ध रूप से आध्‍यात्मि‍क एप्रोच के लिए गाया जाता रहा है, ग्‍वालियर के राजा मानसिंह तोमर से लेकर तानसेन और उस्ताद ज़िया फ़रीदुद्दीन डागर तक तो ध्रुपद का यही उदेश्‍य रहा है, लेकिन गुंदेचा बंधुओं तक आते-आते इसका उदेश्‍य बदल गया, बेहद दुखद यह है कि संगीत के इतिहास में गुंदेचाओं के नाम बतौर शागि‍र्द फ़रीदुद्दीन डागर और डागरवाणी के साथ भी हमेशा जुड़े नजर आएंगे।

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