गुजरात विधानभा चुनाव में भाजपा इस बार कोई भी कसर नहीं रखना चाहती। यही कारण है कि न सिर्फ भाजपा बल्कि स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसे 'नाक' का सवाल बना लिया है। दरअसल, पिछले चुनाव में राज्य में भाजपा की सरकार तो बन गई थी, लेकिन सफलता अपेक्षित नहीं मिली थी। पाटीदार आंदोलन के चलते सौराष्ट्र क्षेत्र में भाजपा को अपेक्षित सीटें नहीं मिली थीं। यही कारण है कि भाजपा इस बार कोई भी रिस्क नहीं लेना चाहती।
दरअसल, गुजरात में सौराष्ट्र राजनीति का स्कूल रहा है। राजनीति में सौराष्ट्र का डायरेक्ट कनेक्शन राजकोट को माना जाता है। खुद प्रधानमंत्री ने पहला चुनाव राजकोट से लड़ा था। जहां विधानसभा चुनाव गिनती के घंटे ही बचे हैं, वहीं मोदी लगातार राजकोट पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। राजकोट इतना महत्वपूर्ण क्यों है? चूंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गुजरात से ही आते हैं, ऐसे में उनके लिए गुजरात में बड़ी जीत हासिल करना जरूरी है।
इसके पीछे राजनीतिक विश्लेषक 5 मुख्य कारण बता रहे हैं। इनमें आंतरिक गुटबाजी, नए चेहरों की जगह, जनता और कार्यकर्ताओं के बीच उदासीनता, तीसरे पक्ष के दबाव का डर और 2017 में मिली कम सीटों की भरपाई शामिल है। उसके लिए बीजेपी के पास सिर्फ एक ही चेहरा है, वे हैं खुद नरेंद्र मोदी। इन सभी बाधाओं को दूर करने के लिए मोदी 40 दिनों में चौथी बार राजकोट जिले का दौरा कर रहे हैं।
पीएम नरेंद्र मोदी एक बार फिर गुजरात दौरे पर हैं। उन्होंने सोमवार को राजकोट शहर का दौरा किया। पिछले विधानसभा चुनाव में सौराष्ट्र में मिली हार को बदलकर खुद नरेंद्र मोदी सीटों पर कब्जा करने के लिए मैदान में उतर गए हैं। विधानसभा चुनाव से कुछ ही घंटे पहले मोदी अपने गुजरात दौरे पर प्रचार के अंतिम दिनों तक ऐसी ही रैलियां करेंगे।
पहली बैठक जामकंडोरणा में 11 अक्टूबर को हुई थी : विधानसभा चुनाव के सिलसिले में नरेंद्र मोदी का राजकोट का यह चौथा दौरा है, जिसमें वे सबसे पहले 11 अक्टूबर को जामकंडोरणा, 19 अक्टूबर को राजकोट शहर, 20 नवंबर को धोराजी और 28 नवंबर को यानी राजकोट शहर में चौथी बार सभा को संबोधित किया।
बीजेपी का गढ़ बचाने की कोशिश : राजकोट को भाजपा का गढ़ माना जाता है और राजकोट महानगर के अंतर्गत आने वाली चार सीटों में राजकोट पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और ग्रामीण शामिल हैं। इन सीटों में राजकोट पूर्वी सीट ही ऐसी सीट थी, जहां से कांग्रेस प्रत्याशी इंद्रनील राज्यगुरु निर्वाचित हुए थे और 2012 के चुनाव में सिर्फ एक बार विधानसभा पहुंचे थे। उस वक्त भी भाजपा, कांग्रेस और पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल की गुजरात परिवर्तन पार्टी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला हुआ था। इसी तरह इस बार बीजेपी, कांग्रेस और आप के बीच तितरफा जंग है, जिसमें प्रधानमंत्री खुद मैदान में उतरे हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कुछ भी कट न जाए और बीजेपी के गढ़ को बचाए रखा जा सके।
दो सीटों पर मुश्किल : भाजपा ने राजकोट दक्षिण सीट से रमेश तिलाला को टिकट दिया है, लेकिन बीजेपी के लिए इस सीट पर जीत हासिल करना मुश्किल होगा, क्योंकि इस सीट पर 'आयातित' का ठप्पा लगा है। रमेश तिलाला की व्यक्तिगत छवि तो अच्छी है और अधिकांश वर्गों में उनका नाम भी अच्छा है, लेकिन उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
राजकोट पूर्व में होगा रोमांचक मुकाबला : भाजपा ने यहां से उदय कांगड़ को ओबीसी उम्मीदवार के तौर पर राजकोट ईस्ट सीट से टिकट दिया है। कांगड़ अब तक महापौर, उपमहापौर, सत्ता पक्ष के नेता और स्थायी समिति अध्यक्ष के पद संभाल चुके हैं। अब उन्हें विधानसभा का टिकट दिया गया है। वहीं, इस सीट पर कांग्रेस ने इंद्रनील राजगुरु को उतारा है। 2012 के चुनाव में उन्होंने इस सीट से जीत हासिल की थी। जबकि आम आदमी पार्टी ने राहुल भुवा को मैदान में उतारा है। इस सीट पर उनकी भी अच्छी पकड़ है। इस वजह से राजकोट ईस्ट सीट भी भाजपा के लिए आसान नहीं मानी जा रही है।
मतदान 48 फीसदी से कम रहा तो पलट सकता है नतीजा : राजकोट की चारों विधानसभा सीटों के लिए एक दिसंबर को मतदान होना है। पिछले तीन चुनावों में हुए वोटिंग प्रतिशत और किस पार्टी के उम्मीदवार ने कितनी बढ़त हासिल की, इससे साफ हो जाएगा कि किस पार्टी को फायदा होगा और किसे हार। इस बार चारों सीटों पर औसत मतदान 69 फीसदी से ज्यादा और 48.23 फीसदी से कम रहा तो नतीजा पलट सकता है।
edited by : Vrijendra Singh Jhala