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तपती गर्मी के बीच मौसम विभाग ने दी अच्छी खबर, जल्द मिलेगी लू से राहत, IMD ने बताई तारीख

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वेबदुनिया न्यूज डेस्क

नई दिल्ली , रविवार, 2 जून 2024 (20:00 IST)
Good news from the Meteorological Department amid scorching heat : मौसम विज्ञान विभाग ने रविवार को कहा कि उत्तर-पश्चिम, मध्य और पूर्वी भारत में अगले तीन दिनों तक कम तीव्रता का लू चलने का अनुमान है। अगले कुछ दिनों तक देश के पूर्वोत्तर, उत्तर-पश्चिम और दक्षिण प्रायद्वीपीय क्षेत्र सहित भारत के कई हिस्सों में गरज, बिजली और तेज हवाओं के साथ बारिश होने का अनुमान है।
 
मौसम विभाग के अनुसार, पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़ और दिल्ली के कुछ हिस्सों और जम्मू, कश्मीर, लद्दाख, गिलगित, बाल्टिस्तान, मुजफ्फराबाद, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, विदर्भ, ओडिशा और झारखंड के अलग-अलग इलाकों में आज से पांच जून (बुधवार) तक लू चलने का अनुमान है।
मौसम विभाग ने अगले तीन दिनों में उत्तर पश्चिम भारत में और अगले 48 घंटों में पश्चिम भारत में अधिकतम तापमान में कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं होने का अनुमान लगाया है। इसके बाद, इन क्षेत्रों में तापमान में 2-3 डिग्री सेल्सियस की गिरावट होने का अनुमान है। दक्षिण-पश्चिम मानसून के आगे बढ़ने पर मौसम विभाग ने कहा कि अगले दो-तीन दिनों में मध्य अरब सागर, कर्नाटक, रायलसीमा, तटीय आंध्र प्रदेश, पश्चिम-मध्य और उत्तर-पश्चिम बंगाल की खाड़ी के कुछ और हिस्सों में मानसून के आगे बढ़ने के लिए परिस्थितियां अनुकूल हैं।
 
मौसम विभाग ने यह भी कहा कि अगले कुछ दिनों तक देश के पूर्वोत्तर, उत्तर-पश्चिम और दक्षिण प्रायद्वीपीय क्षेत्र सहित भारत के कई हिस्सों में गरज, बिजली और तेज हवाओं के साथ बारिश होने का अनुमान है। बंगाल की खाड़ी से पूर्वोत्तर राज्यों तक तेज दक्षिणी हवाओं के प्रभाव के कारण अरुणाचल प्रदेश, असम, मेघालय, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, उप-हिमालयी पश्चिम बंगाल और सिक्किम में अगले सात दिनों में गरज के साथ हल्की से मध्यम बारिश होगी।
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हल्की से मध्यम बारिश होने का अनुमान : एक चक्रवाती परिसंचरण क्षोभमंडल दक्षिण केरल तट से सटे दक्षिण-पूर्व अरब सागर पर बना हुआ है और दूसरा चक्रवाती परिसंचरण दक्षिण-पश्चिम बंगाल की खाड़ी से सटे पश्चिम-मध्य बंगाल की खाड़ी पर बना हुआ है। इसके प्रभाव से केरल, माहे, लक्षद्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, कर्नाटक, तमिलनाडु, पुड्डुचेरी, कराईकल, तटीय आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, रायलसीमा में अगले सात दिनों में गरज, बिजली और तेज हवाओं (30-40 किमी प्रति घंटे) के साथ हल्की से मध्यम बारिश होने का अनुमान है।
 
मौसम विभाग ने कहा कि पश्चिमी विक्षोभ के प्रभाव से जम्मू, कश्मीर, लद्दाख, गिलगित, बाल्टिस्तान, मुजफ्फराबाद, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तराखंड में अगले पांच दिनों में गरज, बिजली और तेज हवाओं के साथ छिटपुट स्थानों पर हल्की बारिश होने का अनुमान है।
 
उत्तर भारत में पिछले कुछ दिनों में लू के चलते कई लोगों को जान गंवानी पड़ी और पूर्वोत्तर में बाढ़ व भूस्खलन ने लाखों लोगों को प्रभावित किया। इसके अलावा 2024 के शुरूआती 5 महीनों में मौसम की प्रतिकूल स्थिति रहने के मद्देनजर हर कोई सवाल कर रहा था कि यह किस ओर जा रहा है।
 
इस साल गर्मी के मौसम में तापमान चिंताजनक : जलवायु वैज्ञानिकों का मानना है कि इस साल गर्मी के मौसम में तापमान चिंताजनक है, हालांकि आश्चर्यजनक नहीं है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गांधीनगर में सिविल इंजीनियरिंग और पृथ्वी विज्ञान विभाग के विक्रम साराभाई चेयर के प्रोफेसर विमल मिश्रा ने बताया, यह पिछले 120 वर्षों में उत्तर भारत के लिए सबसे भीषण गर्मी हो सकती है। इतने बड़े क्षेत्र में जो घनी आबादी वाला भी है, तापमान कभी इतना अधिक 45-47 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा नहीं रहा है। यह अपने आप में एक रिकॉर्ड है।
मिश्रा के अनुसार, अफ्रीका के सहारा रेगिस्तान के समान तापमान कम से कम तीन या चार डिग्री तक अधिक है। आईआईटी मुंबई में पृथ्वी प्रणाली के वैज्ञानिक रघु मुर्तुगुडे ने कहा कि यह जलवायु परिवर्तन, अल-नीनो और जनवरी 2022 में टोंगा के हुंगा टोंगा ज्वालामुखी विस्फोट से निकले जल वाष्प का संयुक्त प्रभाव है। अल-नीनो की स्थिति में समुद्र के सतह का तापमान बढ़ता है जिससे विश्व का मौसम प्रभावित होता है।
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ये हवाएं अरब सागर को बहुत तेजी से गर्म कर रही हैं : मुर्तुगुडे ने कहा, पश्चिम एशिया बहुत तेजी से गर्म हो रहा है क्योंकि रेगिस्तान ‘ग्लोबल वार्मिंग’ के दौरान उष्मा को अवशोषित कर लेता है- गर्म वायुमंडल अधिक आर्द्र होता है और जल वाष्प एक ग्रीन हाउस गैस है। उन्होंने कहा कि इस उष्मा के कारण अरब सागर के ऊपर की हवाएं गर्मियों में और मानसून के दौरान भी उत्तर की ओर मुड़ जाती हैं। ये हवाएं अरब सागर को बहुत तेजी से गर्म कर रही हैं और दिल्ली में अधिक आर्द्रता वाली हवाएं ला रही हैं, जिससे ‘हीट इंडेक्स’ बढ़ रहा है।
 
मुर्तुगुडे ने कहा, हालांकि दिल्ली में कांक्रीट के ढांचों ने स्थिति को और भयावह कर दिया है। शहरों में कांक्रीट और डामर से बनी सतह दिन में उष्मा को अवशोषित कर लेती है और शाम को तापमान गिरने पर इसे वायुमंडल में मुक्त कर देती है। यह उष्मा अंतरिक्ष में नहीं जाती, बल्कि इमारतों के बीच ही रहती है और रात के समय वातावरण को ठंडा होने से बाधित करती है।
 
मिश्रा ने कहा कि इस तरह की अत्यधिक उष्मा सार्वजनिक स्वास्थ्य, बिजली, पानी की आपूर्ति और अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव डालती है। विभिन्न अध्ययनों ने लंबे समय तक रहने वाली लू की स्थिति को अस्पताल में मरीजों की संख्या बढ़ने, समय पूर्व बच्चों का जन्म और गर्भवती महिलाओं में गर्भपात जैसे प्रतिकूल परिणामों से जोड़ा है। अध्ययन में जलवायु परिवर्तन के कारण दुनियाभर में मुद्रास्फीति में वृद्धि और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में गिरावट का भी अनुमान लगाया गया है।
 
मुंगेशपुर केंद्र पर 52.9 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया : दिल्ली में 29 मई को मौसम विभाग के मुंगेशपुर केंद्र पर 52.9 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया था और शहर में बिजली की मांग 8,302 मेगावाट के सर्वकालिक उच्चतम स्तर पर पहुंच गई। हालांकि, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने शनिवार को कहा था कि उत्तर-पश्चिमी दिल्ली के मुंगेशपुर स्थित स्वचालित मौसम विज्ञान केंद्र (एडब्ल्यूएस) द्वारा 52.9 डिग्री सेल्सियस तापमान सेंसर में गड़बड़ी के कारण दर्ज किया गया था।
आईएमडी ने कहा कि मौसम संबंधी अनुमान लगाने के लिए स्थापित ऐसे उपकरणों की जांच की जाएगी। वहीं प्राथमिक मौसम केंद्र सफदरजंग वेधशाला में दर्ज किया गया उस दिन का अधिकतम तापमान 46.8 डिग्री सेल्सियस था, जो 79 साल का उच्चतम तापमान है। इसने 17 जून 1945 को दर्ज किए गए 46.7 डिग्री सेल्सियस के पिछले रिकॉर्ड को तोड़ दिया।
 
इस सप्ताह असम और मणिपुर में अचानक बाढ़ आई और मिजोरम और मेघालय में चक्रवात ‘रेमल’ के कारण भूस्खलन हुआ। इससे कम से कम छह लाख लोग प्रभावित हुए हैं। मुर्तुगुडे ने कहा, रेमल चक्रवात, (अल-नीनो प्रभाव के कारण) बंगाल की खाड़ी से आने वाली उष्मा के कारण स्थल पर लंबे समय तक बना रहा। चक्रवात के कारण बहुत अधिक वर्षा हुई।
अमेरिका स्थित वैज्ञानिकों के स्वतंत्र समूह ‘क्लाइमेट सेंट्रल’ के विश्लेषण से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में वसंत ऋतु की अवधि कम हो रही है और सर्दियां तेजी से गर्मियों जैसी स्थितियों में बदल रही हैं। शोधार्थियों के अनुसार, देश के कई उत्तरी क्षेत्रों में वसंत ऋतु अब देखने को नहीं मिल रही है। (इनपुट एजेंसियां)
Edited By : Chetan Gour 

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