Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

खाद्य-श्रृंखला के लिए भी खतरा है ‘ग्लोबल वार्मिंग’

हमें फॉलो करें खाद्य-श्रृंखला के लिए भी खतरा है ‘ग्लोबल वार्मिंग’
, शनिवार, 6 मार्च 2021 (13:46 IST)
नई दिल्ली, तापमान बढ़ने से खाद्य-श्रृंखला प्रभावित हो सकती है, और बड़े जीवों के लिए अस्तित्व का संकट खड़ा हो सकता है। एक नये अध्ययन में यह बात उभरकर आयी है।

एक कोशकीय शैवाल (फाइटोप्लैंक्टन) से प्राणी-प्लवक (जूप्लैंक्टन) में ऊर्जा के हस्तांतरण का अध्ययन करने के बाद अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं की एक टीम इस निष्कर्ष पर पहुंची है।

शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि प्राणी-प्लवक जब एक कोशकीय शैवाल (फाइटोप्लैंक्टन) को खाते हैं, तो ऊर्जा का हस्तांतरण कैसे होता है। उल्लेखनीय है कि जल-तरंगों या जलधारा में प्रवाहित होने वाले सभी प्राणी या वनस्पति प्लवक (प्लैंक्टन) कहलाते हैं। वहीं, जल-तरंगों या जलधारा में प्रवाहित होते रहने वाले छोटे जीवों को प्राणी-प्लवक (जूप्लैंक्टन) कहा जाता है।

इस अध्ययन के दौरान ताजे पानी के पादप प्लावकों में नाइट्रोजन स्थानांतरण का अध्ययन किया गया है। युनाइटेड किंगडम में किए गए अध्ययन में पादप प्लावकों को सात वर्षों तक खुले में तापमान के संपर्क रखा गया था। अध्ययन में पता चला है कि तापमान में चार डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के कारण प्लवक खाद्य जाल में ऊर्जा हस्तांतरण की 56 प्रतिशत तक कमी हो सकती है। यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटेर और क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया यह अध्ययन शोध पत्रिका नेचर में प्रकाशित किया गया है।

शोधकर्ताओं ने पाया कि अधिक तापमान की परिस्थितियों में जीवों के चयापचय की दर उनकी वृद्धि दर की तुलना में बढ़ जाती है। इसका असर खाद्य-श्रृंखला के अगले स्तर पर मौजूद परभक्षियों पर पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में, अगले स्तर पर मौजूद परभक्षियों तक कम ऊर्जा स्थानांतरित होती है। इस तरह, खाद्य-श्रृंखला में कम प्रभावी ऊर्जा का प्रवाह होता है, और अंततः कुल बायोमास में गिरावट होती है।

एक्सेटेर यूनिवर्सिटी, युनाइटेड किंगडम के शोधकर्ता प्रोफेसर गैब्रियल वाई. ड्यूरोसेर ने कहा है कि “इस शोध के निष्कर्ष ग्लोबल वार्मिंग से संबंधित एक ऐसे पहलू को रेखांकित करते हैं, जिसकी ओर सबसे कम ध्यान दिया गया है।” 

उन्होंने कहा है कि फाइटोप्लैंक्टन और जूप्लैंक्टन खाद्य जाल का प्रमुख अंग हैं, जो ताजे पानी के साथ-साथ समुद्री पारिस्थितिक तंत्र का भी आधार माने जाते हैं। यह बहुत महत्वपूर्ण तथ्य है, क्योंकि इन दोनों पारिस्थितिक तंत्रों पर ही मनुष्य का जीवन निर्भर करता है।

प्रोफेसर गैब्रियल वाई-ड्यूरोसेर ने कहा है कि “यह अध्ययन इस बात का स्पष्ट प्रमाण प्रस्तुत करता है कि तापमान में बढ़ोतरी जीवों की वृद्धि के लिए आवश्यक घटकों की माँग को बढ़ा देता है, जिससे खाद्य-श्रृंखला में ऊर्जा का स्थानांतरण प्रभावित होता है।” क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन के प्रोफेसर मार्ग टिमर ने कहा है कि “इस अध्ययन में जो निष्कर्ष निकलकर आए हैं, यदि प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र में भी वे उभरकर आते हैं, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।”

इस अध्ययन में शामिल यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्ता डॉ डिएगो बार्नेशे ने कहा है कि “खाद्य जाल के किसी एक स्तर पर उत्पादित ऊर्जा का करीब 10 प्रतिशत हिस्सा अगले स्तर पर पहुँच पाता है।” डॉ बार्नेशे के मुताबिक, ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि जीवों के जीवनकाल में उनके द्वारा ऊर्जा का एक बड़ा हिस्सा विभिन्न कार्यों में खर्च कर दिया जाता है, और ऊर्जा का बेहद छोटा हिस्सा बायोमास में स्थिर रह पाता है, जिसका उपभोग अंततः परभक्षियों द्वारा किया जाता है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि खाद्य-श्रृंखला के शीर्ष पर मौजूद बड़े जीव, जो खाद्य-श्रृंखला में नीचे से ऊपर की ओर स्थानांतरित होने वाली ऊर्जा पर आश्रित रहते हैं, उन पर इस घटनाक्रम का सबसे अधिक असर पड़ सकता है। इस संबंध में अधिक गहनता से अध्ययन किए जाने की आवश्यकता है। (इंडि‍या साइंसा वायर)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

भारतीय वैज्ञानिकों ने विकसित किया स्वदेशी ऑप्टिकल स्पेक्ट्रोग्राफ