आखिर जर्मनी को 'अचानक' क्यों आई भारत की याद?
चांसलर शोल्त्स ने कहा- भारतीय कुशल कर्मियों का जर्मनी में स्वागत है
जर्मनी के चांसलर (प्रधानमंत्री) ओलाफ़ शोल्त्स दो दिवसीय यात्रा पर 25 और 26 फ़रवरी को भारत में थे। भारत की उनकी यह पहली औपचारिक यात्रा थी। यात्रा के दो मुख्य उद्देश्य थे – रूस-यूक्रेन युद्ध के प्रति भारत की तटस्थता को यथासंभव यूक्रेन के पक्ष में झुकाना और भारत के साथ आर्थिक-राजनीतिक संबंधों को और अधिक प्रगाढ़ बनाना।
नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ अपनी बातचीत में चांसलर शोल्त्स उन्हें मना नहीं पाए कि भारत खुल कर यूक्रेन का पक्ष ले और रूस को आक्रमणकारी माने। जर्मनी ही नहीं, पूरा पश्चिमी जगत यही मानता है कि भारत –युद्ध की सच्चाई जानते हुए भी– रूसी हथियारों और रूस से मिलने वाले सस्ते तेल की लालच में पड़कर उससे कोई बिगाड़ नहीं चाहता।
इस क्षुद्र सोच वाला पूरा पश्चिमी जगत और उसका मीडिया, इसे याद करने का रत्ती भर भी कष्ट नहीं करना चाहता कि कश्मीर विवाद रहा हो या भारत के विरुद्ध पाकिस्तान के चार हमले, गोवा में पुर्तगाली उपनिवेशवाद का अंत रहा हो या चीन के साथ भारत का सीमा विवाद या 1971 में बांग्लादेश का जन्म, इन देशों ने क्या कभी खुलकर भारत का साथ दिया? केवल रूस ही वह देश था, जिसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के विरुद्ध हर प्रस्ताव को 100 से अधिक बार अपने वीटो-अधिकार द्वरा निरस्त कर भारत की लाज बचाई है। भारत इसे कैसे भूल सकता है कि रूस में चाहे कम्युनिस्टों की सरकार रही हो या अब पुतिन की, उसने अब तक भारत को कभी धोखा नहीं दिया है, जबकि पश्चिमी देश केवल अपना क्षणिक स्वार्थ देखते हैं।
जर्मनी को भारतीय कुशलकर्मी चाहिए : रूस को लताड़ने के प्रश्न पर दिल्ली में तो जर्मन चांसलर की दाल नहीं गली। लेकिन, उनके साथ जर्मन कंपनियों के कई वरिष्ठ अधिकारी भी भारत गए थे। उनकी दिलचस्पी भारत में निवेश के अवसर जानने और भारतीय कुशलकर्मियों को जर्मनी बुलाने में थी। 26 फ़रवरी का दिन चांसलर शोल्त्स ने अपने दलबल के साथ 'भारत की सिलिकॉन वैली' कहलाने वाले बेंगलुरु में बिताया। वहां उन्होंने कहा कि विशेषकर IT (इन्फ़ॉर्मेशन टेक्नॉलॉजी) क्षेत्र के भारतीय कुशलकर्मियों के लिए जर्मनी जाने और वहां काम-धंधा करने की अड़चनों को तेज़ी से दूर किया जाएगा। उनके लिए जर्मन वीसा पाना आसान बनाया जाएगा। वे चाहते हैं कि यह काम इस साल के भीतर ही हो जाए, ताकि जर्मनी जाने के इच्छुक कुशलकर्मी भारतीय बड़ी संख्या में वहां जा सकें।
नियुक्ति पत्र मिले बिना भी जर्मनी जा सकते हैं : जर्मनी ने अपने लिए उपयुक्त भारतीय कुशलकर्मियों को लुभाने की एक योजना बनाई है। इस योजना के अनुसार, भारतीय कुशलकर्मी, किसी कंपनी से कोई नियुक्ति पत्र मिले बिना भी जर्मनी जा सकते हैं और वहां पहुंचकर अपने लिए नौकरी ढूंढ सकते हैं। नौकरी मिल जाने पर वे अपने परिवार को भी बुला सकते हैं।
जर्मनी में वैसे तो सारे कामकाज जर्मन भाषा में ही होते हैं, लेकिन भारतीयों के लिए पहले से ही जर्मन भाषा जानना अनिवार्य नहीं होगा। चांसलर शोल्त्स के शब्दों में, ''जो कोई IT कुशलकर्मी के तौर पर जर्मनी आएगा वह शुरू में अपने सहकर्मियों के साथ बड़े आराम से अंग्रेज़ी में बातचीत कर सकता है। जर्मनी में भी बहुत से लोग अंग्रेज़ी जानते हैं। जर्मन भाषा बाद में सीखी जा सकती है।''
जर्मनी में लगभग हर क्षेत्र में कुशलकर्मियों की भारी कमी है और भारत में नौकरियों की कमी है। 2022 में जर्मनी के दिल्ली दूतावास ने 2500 से 3000 तक कुशलकर्मियों के लिए वीसा बांटे। सबसे अधिक वीसे IT के कुशलकर्मियों को दिए गए। चांसलर शोल्त्स ने कहा कि उन्हें पूरा विश्वास है कि बहुत-से भारतीय इस संभावना का लाभ उठाएंगे और जर्मनी में कुशलकर्मियों के तौर पर काम करना चाहेंगे। हमें सभी क्षेत्रों में ऐसे लोगों की जरूरत है।
भारत को एक 'हाईटेक नेशन' बताया : बेंगलुरु के अपने एक दिवसीय प्रवास में जर्मनी के चांसलर ने वहां जर्मनी की IT कंपनी SAP में काम करने वाले भारतीयों से भी बात की। भारत को उन्होंने एक 'हाईटेक नेशन' बताया। उन्होंने कहा कि वे इस बात को कोई समस्या नहीं, बल्कि 'श्रम-विभाजन' मानते हैं कि बहुत-सी जर्मन कंपनियां सॉफ्टवेयर बनाने का अपना काम बेंगलुरु में करवाती हैं।
इस समय जर्मनी की 1800 कंपनियां भारत में कारोबार कर रही हैं। जर्मनी इन आर्थिक संबंधों को और अधिक बढ़ाना चाहता है। चांसलर शोल्त्स ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी से उन्होंने इस बारे में बात की है। वे और मोदी, भारत और यूरोपीय संघ के बीच एक मुक्त व्यापार समझैता चाहते हैं। इस समझौते के प्रयास वैसे तो कई वर्षों से हो रहे हैं, पर चांसलर शोल्त्स चाहते हैं कि ये प्रयास अब जल्द ही किसी परिणाम तक भी पहुंचने चाहिए।
भारत 6 पनडुब्बियां खरीदना चाहता है : जर्मन चांसलर की भारत यात्रा के दैरान ऊर्जा, IT तथा वैज्ञानिक-तकनीकी शोध के क्षेत्र में पारस्परिक सहयोग बढ़ाना भी तय हुआ है। लंबे समय के बाद जर्मनी और भारत के बीच हथियारों का एक बड़ा सौदा होने की संभावना भी बनी है। जर्मनी से भारत 6 पनडुब्बियां खरीदना चाहता है। जर्मनी का अपना नियम है कि वह ऐसे देशों को हथियार नहीं बेचता, जो युद्ध की स्थिति में हों या जहां अड़ोसियों-पड़ोसियों के साथ ऐसा तनाव हो कि युद्ध की नौबत आ सकती है।
तब भी, संकेत यही हैं कि 4 अरब 90 करोड़ यूरो मूल्य के बराबर का 6 पनडुब्बियों वाला यह सौदा पट जाएगा। जर्मनी की 'थिसनक्रुप मरीन सिस्टम' कंपनी ये पनडुब्बिया बनाएगी। जर्मन चांसलर ने कहा कि प्रधानमंत्री मंत्री मोदी के साथ बातचीत में इस विषय पर भी चर्चा हुई है। मोदी सरकार इस तरह के सौदे प्रायः इस शर्त पर करती है कि संबंद्ध चीज़ के निर्माण की तकनीकी जानकारी भारत को दी जाएगी, ताकि बाद में भारत में ही उसका निर्माण भी हो सके। पनडुब्बियों वाला सौदा यदि नहीं हो पाया, तो इसके पीछे भारत की यही मांग मुख्य कारण बन सकती है।
जर्मनी को इसी समय भारत की याद क्यों आई : ध्यान देने की बात यह भी है कि जर्मनी को ठीक इस समय भारत की याद क्यों आई और वह किसी हद तक उतावली में क्यों है? वहां कुशलकर्मियों की कमी रातोंरात तो नहीं पैदा हुई। अब तक तो यह कह कर कि भाजपा एक 'हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी' है और प्रधानमंत्री मोदी 'तानाशाही' प्रवृत्ति के नेता हैं, भारत को अनदेखा ही किया जाता रहा है। अन्य पश्चिमी देशों की अपेक्षा चीन पर अपनी आर्थिक निर्भरता को जर्मनी कहीं अधिक बुद्धिमत्तापूर्ण समझता रहा है। इसीलिए चांसलर शोल्त्स की पूर्वगामी, अंगेला मेर्कल, 16 वर्षों के अपने कार्यकाल में 14 बार चीन गईं और केवल 4 बार भारत।
कह सकते हैं कि रूस ने यदि यूक्रेन पर आक्रमण नहीं किया होता और चीन आज कहीं अधिक निकटता से रूस के साथ खड़ा नहीं दिख रहा होता, तो जर्मनी सहित सारे पश्चिमी जगत के लिए भारत का महत्व भी इतना बढ़ा नहीं होता। भारत के महत्व को रेखांकित करने के लिए अब अचानक यह कहा जा रहा है कि जनसंख्या की दृष्टि भारत कुछ ही दिनों में चीन को पीछे छोड़ देगा। भारत की प्रगति और आर्थिक-राजनीतिक महत्व को दिखाने वाले उन तथ्यों और आंकड़ों का भी उल्लेख होने लगा है, जो अब तक अनदेखे किए जा रहे थे।
कैसी विडंबना है कि यूरोप में चल रहे एक युद्ध से हिल गया हर पश्चिमी देश भारत का साथ और समर्थन पाना चाहता है। उसे चीन का विकल्प और एक बड़ा बाज़ार ही नहीं, वैश्विक आर्थिक विकास का इंजन तक बता रहा है। हर पश्चिमी नेता टेलीफ़ोन पर मोदी से बात करने और उनसे मिलने के बहाने ढूंढता है। सैकड़ों हवाई जहाज़ों का सौदा टाटा की एयर इंडिया करती है और अमेरिका, ब्रिटेन तथा फ्रांस के शीर्ष नेता आभार प्रकट करने के लिए टेलीफ़ोन नरेन्द्र मोदी को करते हैं। भारत के किस प्रधानमंत्री को कब ऐसा सम्मान मिला था!