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दुनिया भर में बजता है गीता प्रेस का डंका

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गोरखपुर , शनिवार, 25 नवंबर 2017 (14:26 IST)
गोरखपुर। टेलीविजन और इंटरनेट की चकाचौंध भरी दुनिया में पुस्तकों के प्रति लोगों के घटते आकर्षण के बावजूद  नीति, अनुशासन, धर्म और नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाली गीता प्रेस की पुस्तकों की बिक्री न सिर्फ बढ़ी है बल्कि दुनिया  के कई मुल्कों में इन पुस्तकों का डंका बज रहा है।
 
वर्ष 1923 में कोलकाता से धार्मिक पुस्तक 'गीता' के प्रकाशन से अपना सफर शुरू करने वाला गीता प्रेस को आज देश  में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में धार्मिक एवं ज्ञानवर्धक पुस्तकों के सर्वाधिक लोकप्रिय प्रकाशक के तौर पर जाना जाता  है। हालांकि आज इन धार्मिक पुस्तकों के प्रकाशन का मुख्य केन्द्र गीता प्रेस गोरखपुर है।
    
गीता प्रेस की पुस्तकों की एक खास विशेषता इनका कम मूल्य है। पुस्तक की प्रकाशन लागत से भी कम मूल्य ग्राहक  से वसूलने वाला दुनिया में संभवत: यह इकलौता संस्थान है। गीता प्रेस के संस्थापक जयदयालजी गोयन्दका ने हिन्दी  अनुवाद के साथ इस धार्मिक पुस्तक 'गीता' का प्रकाशन किया था जो आज 15 भाषाओं में प्रकाशित हो रही है जिसमें  प्रमुख रूप से हिन्दी और संस्कृत हैं। इसके अलावा बंगला, मराठी, गुजराती, मलयालम, पंजाबी, तमिल, कन्नड,  असमिया, ओडिया, उर्दू, अंग्रेजी व नेपाली भाषा में है।
    
उर्दू भाषा में केवल गीता का प्रकाशन होता है। हालांकि, लगभग एक सदी पुराने इस समूह की विशेषता है। स्थापना से  अब तक गीता प्रेस से प्रकाशित लगभग 84 करोड़ पुस्तकें बिक चुकी हैं। देश में 2500 बुकसेलर गीता प्रेस की पुस्तकें  बेचते हैं और हर प्रांत में गीता प्रेस की पुस्तकें बिकती हैं। इसके अतिरिक्त विदेशों में भी बड़े पैमाने पर पुस्तकों की  मांग होती है।
 
खास बात यह है कि गीता प्रेस ऑर्डर पर पुस्तकें नहीं छापता बल्कि पहले से प्रकाशित कर रखी गई पुस्तकों से ही मांग  पूरी करता है। इस बारे में प्रेस के प्रकाशन प्रबंधक डॉ. लालमणि तिवारी बताते हैं कि इन पुस्तकों की ज्यादा बिक्री के  पीछे तीन कारण प्रमुख है। एक कारण पुस्तकें सस्ती हैं, दूसरा छपाई में शुद्धता रहती और तीसरे यह प्रामाणिक होती हैं।  यही कारण है कि आज भी गीता प्रेस की इन पुस्तकों पर लोगों का विश्वास अधिक है।
            
उन्होंने कहा कि महंगाई के इस युग में आज दो रुपए और तीन रुपए में लोक कल्याणकारी अनोखी पुस्तक मिल सकती  हैं जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती है मगर गीता प्रेस दशकों से यह करता आ रहा है। इसके लिए यह संस्था किसी  प्रकार के चन्दे या आर्थिक सहायता की याचना नहीं करती है।    
      
अनोखी पुस्तक 'श्रीमदभगवदगीता' प्रदान करने वाला प्रतिष्ठान गीता प्रेस आधुनिक प्रकाशन तकनीक को अपनाकर आज  भी देश और विदेशों में अपनी अलग पहचान बनाने में सक्षम है। मात्र दो इंच आकार की यह धार्मिक पुस्तक जो विश्व  में अपना एक अलग धार्मिक एवं विशिष्ट पहचान बनाए हुए है, जिसके मर्म और दर्शन में एक सम्पूर्ण जीवनशैली  समाहित है।
 
पत्रिकाओं में प्रमुख सबसे पुरानी 'कल्याण' पत्रिका अपने 92 वर्ष पूरी कर रही है। इस दौरान पत्रिका ने सबसे लम्बी  अवधि तक छपने का गौरवमयी कीर्तिमान भी बनाया है। इस पत्रिका का प्रकाशन सन 1925 ई. में मुंबई में शुरू हुआ  और वर्तमान में सबसे अधिक बिकने वाली तथा सबसे पुरानी आध्यात्मिक-सांस्कृतिक पत्रिका बन गई।
 
लेटर प्रेस द्वारा छपाई शुरू करके आज अत्याधुनिक ऑफसेट प्रिटिंग प्रेस पर छपने वाली इस पत्रिका का संपादन प्रख्यात  समाजसेवी हनुमान प्रसाद पोद्दार ने किया। इस गौरवमयी पत्रिका को प्रकाशित करने का श्रेय भी गीता प्रेस, गोरखपुर को  ही है। वर्तमान समय में 'कल्याण' की दो लाख 15 हजार प्रतियां छपती हैं और वर्ष का पहला अंक किसी विषय का  विशेषांक होता है। कल्याण के अब तक 90 विशेषांक प्रकाशित हो चुके हैं। 
             
लोगों का ध्यान भगवन्नाम-स्मरण कराने के उद्देश्य से गीता प्रेस में एक स्थायी कर्मचारी स्थापना काल से ही नियुक्त है  जो हाथ में "हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।" की लिखित तख्ती लिए  परिसर में दिन भर घूमता रहता है। उसे देखते ही ट्रस्टी हो या कर्मचारी तख्ती पर लिखी प्रार्थना को दोहराते हैं। यह  कर्मचारी संस्था में काम करने हर व्यक्ति के पास दिन में कम से कम चार बार जाता है। 
 
संस्था के प्रत्येक कर्मचारी कार्य शुरू होने से पहले 15 मिनट तक एक साथ भगवान की प्रार्थना करते हैं, नारायण की  धुन बजती है। गीता प्रेस के प्रबंधक व ट्रस्टी बैजनाथ अग्रवाल बताते हैं कि ऐसा हर संभव प्रयास किया जाता है जिससे  लोगों में भगवान का स्मरण बना रहे। भगवान याद रहेंगे तो आवरण शुद्ध बना रहेगा। इसी से समाज में ईमानदारी और  कर्तव्यपरायणता आएगी और गीता प्रेस की स्थापना का मूल उद्देश्य भी फलीभूत होगा। (वार्ता)

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