Shaheen arrested from Lucknow: एक दशक से भी ज्यादा वक्त वक़्त तक लापता रहने के बाद जब लखनऊ की डॉक्टर शाहीन सिद्दीकी AK-47 राइफल और जिंदा कारतूसों के साथ लौटीं, तो यह सिर्फ एक गिरफ्तारी नहीं थी, यह उस चुप्पी का टूटना था, जिसने भारतीय समाज, शिक्षा जगत और सुरक्षा तंत्र सभी को कटघरे में खड़ा करके चेतावनी दी है। किसी न किसी रूप में शामिल रहे हैं।
लखनऊ से हुई शाहीन की गिरफ्तारी आतंकी मॉड्यूल की जुड़ी कड़ी है। गिरफ्तारी के दौरान डॉ. शाहीन के पास से AK-47 राइफल और जिंदा कारतूस बरामद हुए। जम्मू-कश्मीर पुलिस और यूपी एटीएस की संयुक्त कार्रवाई में उनकी गिरफ्तारी के बाद खुलासा हुआ कि वे 2013 से लापता थीं और अब एक अंतरराज्यीय आतंकी नेटवर्क से जुड़ी मिलीं। शाहीन की बैंकग्राउंड में जाते है तो पता चलता हैं यूपी लोक सेवा आयोग से चयन होने के बाद वह कानपुर के गणेश शंकर विद्यार्थी मेमोरियल (GSVM) मेडिकल कॉलेज में प्रवक्ता रही थीं।
एक दिन बिना सूचना के गायब : कॉलेज में उत्कृष्ट अध्यापन के लिए जानी जाने वाली यह डॉक्टर एक दिन बिना सूचना के गायब हो गईं, और अब उनकी वापसी आतंक के साए में हुई है। जांच एजेंसियों का दावा है कि फरीदाबाद से लेकर लखनऊ तक फैले इस ऑपरेशन में शाहीन और उनके साथी डॉ. मुजम्मिल शकील ने फरीदाबाद में किराए के फ्लैट में विस्फोटक सामग्री का भंडार तैयार किया था। इस नेटवर्क से 2,900 किलो विस्फोटक, IED बनाने के इलेक्ट्रॉनिक सर्किट, AK-56 राइफलें और चीनी पिस्टलें उपकरण बरामद हुए हैं। बताया जा रहा है कि यह मॉड्यूल जैश-ए-मोहम्मद और अंसार गजवत-उल-हिंद जैसी संगठनों के लिए सक्रिय था।
डा. शाहीन का मामला केवल एक आपराधिक घटना को नहीं दर्शाता, बल्कि यह सोचने पर मजबूर करता है कि शाहीन ने ऐसा क्यों किया? एक शिक्षित, सम्मानित और बुद्धिमान महिला इस राह पर कैसे पहुंची? क्या यह वैचारिक कट्टरता का असर था या समाज की अनदेखी का परिणाम? यह सवाल उठता है कि उच्च शिक्षा प्राप्त लोग आखिर किस बिंदु पर कट्टरता की गिरफ्त में आते हैं?
बौद्धिक तंत्र पर प्रश्नचिह्न : डॉक्टर जैसे पेशे का आतंक में इस्तेमाल होना हमारे सुरक्षा तंत्र से ज्यादा, हमारे बौद्धिक तंत्र पर प्रश्नचिह्न है। शिक्षा, जो विवेक और मानवता सिखाने का माध्यम है, अगर किसी को हिंसा की ओर मोड़ दे, तो यह संकेत है कि हम कुछ मूलभूत स्तरों पर विफल हो रहे हैं।
केंद्र और राज्य सरकारों ने इस मामले को हाई-लेवल स्तर पर गंभीरता से लिया है। लेकिन असली चुनौती सिर्फ आतंकवाद की नहीं, बल्कि उस अंधे विश्वास पर है जो मानव को इस अंधकार में धकेल रहा है। आज आतंक सिर्फ सीमाओं पर नहीं, अब विचारों और संस्थानों में भी धीरे-धीरे पनप रहा है। समाज को अब यह सोचना होगा कि हम जो ज्ञान दे तो रहे हैं, पर क्या हम सही दिशा भी दे पा रहे हैं?
Edited by: Vrijendra Singh Jhala