पणजी। गोवा में वर्ल्ड आयुर्वेद कांग्रेस (WAC) में भाग लेने वाले विशेषज्ञों ने कहा कि औषधीय पौधों के जीवित रहने पर खतरे के कारण पृथ्वी हर 2 साल में एक संभावित औषधि खो रही है और उनके विलुप्त होने की दर प्राकृतिक प्रक्रिया के मुकाबले 100 गुना तेज है। उन्होंने अत्यधिक दोहन, वन्यजीव आबादी पर उद्योग की अत्यधिक निर्भरता, निवास स्थान का विध्वंस और शहरीकरण को इसकी वजह बताया।
उन्होंने जागरूकता अभियान चलाने के अलावा औषधीय पौधों के संरक्षण की आवश्यकता पर भी जोर दिया।डब्ल्यूएसी के नौवें संस्करण और आरोग्य एक्सपो 2022 में औषधीय पौधों के संरक्षण की जरूरतें विषय पर एक सत्र में वक्ताओं ने कहा कि भारत में 900 प्रमुख औषधीय पौधों के 10 प्रतिशत अभी खतरे की श्रेणी में हैं। चार दिवसीय डब्ल्यूएसी का समापन रविवार को हुआ।
विभिन्न विशेषज्ञों के हवाले से कहा गया, पृथ्वी हर दो साल में एक संभावित औषधि खो रही है और इसके विलुप्त होने की दर प्राकृतिक प्रक्रिया के मुकाबले 100 गुना तेज है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को कहा कि दुनिया ने उपचार की विभिन्न पद्धतियां आजमाई और अब वह आयुर्वेद की प्राचीन उपचार पद्धति की ओर लौट रही है।
स्टेट मेडिसिनल एंड एरोमेटिक प्लांट्स बोर्ड, छत्तीसगढ़ के मुख्य कार्यकारी अधिकारी जेएसीएस राव ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) का अनुमान है कि दुनिया की संवहनी पौधों की तकरीबन 20000-25000 प्रजातियों में से करीब 10 प्रतिशत खतरे में हैं।
राव ने कहा कि भारत में लाल सूची में 387 पौधे शामिल हैं जबकि 77 प्रजातियां गंभीर खतरे में हैं और छह प्रजातियां विलुप्त की श्रेणी में हैं। उन्होंने अत्यधिक दोहन, वन्यजीव आबादी पर उद्योग की अत्यधिक निर्भरता, निवास स्थान का विध्वंस और शहरीकरण को इसकी वजह बताया।
Edited By : Chetan Gour (भाषा)