नई दिल्ली। भारत के निर्यात में जारी गिरावट के अगले साल थम जाने का अनुमान है। हालांकि बढ़ते संरक्षणवाद के कारण वैश्विक व्यापार को लेकर कायम अनिश्चितता से निर्यात की वृद्धि दर कम रह सकती है। वाणिज्य सचिव अनूप वधावन ने कहा कि निर्यात की मौजूदा सुस्ती पेट्रोलियम उत्पादों के निर्यात में गिरावट कारण है। पेट्रोलियम उत्पादों की देश के कुल निर्यात में 13.42 प्रतिशत हिस्सेदारी है।
उन्होंने कहा कि पेट्रोलियम की कीमतें गिरने से पेट्रोलियम उत्पादों के निर्यात का मूल्य कम हो गया है। उन्होंने कहा कि हालांकि इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएं, दवाएं, कार्बनिक और अकार्बनिक रसायन जैसे गैर-पारंपरिक वस्तु समूहों के निर्यात में सकारात्मक वृद्धि से भविष्य की वृद्धि का आधार तैयार हुआ है।
उल्लेखनीय है कि भारत के निर्यात की वृद्धि दर अगस्त 2019 के बाद से नकारात्मक है। इसका मुख्य कारण पेट्रोलियम उत्पादों, इंजीनियरिंग तथा रत्नों एवं आभूषणों के निर्यात में गिरावट आना है। विश्व व्यापार संगठन ने 2019 में वैश्विक व्यापार की वृद्धि दर का अनुमान 2.6 प्रतिशत से घटाकर 1.2 प्रतिशत कर दिया है। हालांकि उसने कहा है कि 2020 में यह वृद्धि दर 2.7 प्रतिशत पर पहुंच सकती है।
निर्यातकों के शीर्ष संगठन फिओ का कहना है कि बढ़ते संरक्षणवाद के कारण अनिश्चितता बढ़ रही है जिससे वैश्विक परिस्थितियां बेहद चुनौतीपूर्ण होती जा रही हैं। फिओ के निदेशक अजय सहाय ने कहा कि 2020 की पहली छमाही में वैश्विक परिस्थितियां सुधर सकती हैं जिसका भारत के निर्यात पर सकारात्मक असर होगा।
उन्होंने कहा कि यदि वैश्विक परिस्थितियों में सुधार होता है, जो कि 2020 की पहली छमाही में होने का अनुमान है तो हम 2020-21 में निर्यात में 15 प्रतिशत की वृद्धि का लक्ष्य तय कर सकते हैं। अगले साल निर्यात सकारात्मक वृद्धि की राह पर लौट आएगा लेकिन वृद्धि दर शायद 10 प्रतिशत के नीचे ही रहेगी।
आईआईएफटी के प्रोफेसर राकेश मोहन जोशी ने कहा कि सरकार द्वारा उठाए गए कदमों से 2020 में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि वैश्विक बाजारों में भारतीय उत्पादों की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिए संरचनात्मक सुधारों की जरूरत है।