Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

LoC के गांवों से उठती बंकरों की मांग, पाक गोलीबारी में जा रही हैं जानें

हमें फॉलो करें LoC के गांवों से उठती बंकरों की मांग, पाक गोलीबारी में जा रही हैं जानें
webdunia

सुरेश एस डुग्गर

, सोमवार, 28 सितम्बर 2020 (14:10 IST)
जम्मू। एलओसी से सटे मनकोट की रूबीना कौसर की बदस्मिती यह थी कि पाक (Pakistan) गोलाबारी से बचने की खातिर उसके घर के आसपास कोई बंकर नहीं था। नतीजतन उसके दो बच्चे और वह खुद भी मौत की आगोश में इसलिए सो गई क्योंकि पाक सेना ने रिहायशी बस्तियों को निशाना बना गोले बरसाए थे।
 
रूबीना की तरह 814 किमी लंबी भारत-पाकिस्तान को बांटने वाली एलओसी (LoC) पर अभी भी ऐसे हजारों परिवार हैं जो उन सरकारी 14 हजार से अधिक बंकरों के बनने की प्रतीक्षा कर रहे हैं जिनके प्रति घोषणाएं दर घोषणाएं अभी भी रुकी नहीं हैं।
 
पिछले करीब दो सालों से 14 हजार 460 के करीब व्यक्तिगत तथा कम्यूनिटी बंकरों को बनाने की प्रक्रिया कछुआ चाल से चल रही है। यह कितनी धीमी है अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि इस अवधि में 102 बंकर ही राजौरी तथा पुंछ में तैयार हुए और तकरीबन 800 इंटरनेशनल बॉर्डर के इलाकों में।
 
यह संख्या ऊंट के मुंह में जीरे के समान है क्योंकि एक बंकर में 10 से अधिक लोग एक साथ नहीं आ सकते। हालांकि एलओसी के इलाकों में रहने वालों ने अपने खर्चों पर कुछ बंकरों का निर्माण किया है पर वे इतने मजबूत नहीं कहे जा सकते। इंटरनेशनल बॉर्डर के इलाके में बनाए जाने वाले आधे से अधिक बंकरों में अक्सर बारिश का पानी घुस जाता है।
 
अभी भी यही हुआ। पुलवामा हमले के बदले की खातिर सर्जिकल स्ट्राइक 2.0 हुई तो लोगों को दो दिन बंकरों से पानी निकालने में लग गए। पुंछ के झल्लास के रहने वाले आशिक हुसैन कहते हैं- ‘साहब बम तो जान लेगा ही, बंकर में घुसा हुआ पानी और उसमें अक्सर रेंगने वाले सांप-बिच्छू सबसे पहले जान लेंगें'। 
 
कुछ प्रशासनिक अधिकारियों का मानना था कि बंकरों को बनाने का काम बहुत ही धीमा है। कारण बताने में वे अपने आपको असमर्थ बताते थे। जबकि जिन बंकरों में बारिश का पानी अक्सर घुसकर जान के लिए खतरा पैदा करता है उसके लिए जांच बैठाई गई तो साथ ही यह फैसला हुआ था कि अब आगे का निर्माण रक्षा समिति के अंतर्गत होगा।
एलओसी के उड़ी इलाके को ही लें, पुराने बंकर वर्ष 2005 के भूकंप में नेस्तनाबूद हो गए थे पर सरकार अभी भी नए बनाने को राजी नहीं है। जबकि इसे भूला नहीं जा सकता कि राजौरी व पुंछ की ही तरह उड़ी अक्सर पाक गोलाबारी के कारण सुर्खियों में रहता है।
 
एलओसी पर रहने वालों का आरोप था कि क इन बंकरों की आवश्यकता इंटरनेशनल बार्डर से अधिक एलओसी के इलाकों में है। उनकी बात में दम भी है क्योंकि अगर इंटरनेशनल बॉर्डर पर साल में औसतन 50 दिन गोलाबारी होती है तो एलओसी पर सीजफायर के बावजूद गोलाबारी का औसतन प्रतिदिन 3 से 4 रहा है पर उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। (फाइल फोटो) 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

रिलायंस जियो ने श्री हेमकुंड साहिब यात्रा क्षेत्र के लिए शुरू की 4G सर्विस