नई दिल्ली। बेटा होने की चाहत में पैदा होने वाली अनचाही बेटियों की संख्या देश में दो करोड़ से भी ज्यादा तथा कोख में ही मार डालने के कारण गायब बच्चियों की तादाद करीब छह करोड़ है।
देश में बेटियों के मुकाबले बेटों की बढ़ती चाहत को दर्शाने वाले ये आंकड़े संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण में सामने आए हैं। अनचाही लड़कियों पर पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर किए गए इस सर्वेक्षण के अनुसार देश की कुल आबादी में 0 से 25 आयु वर्ग की अनचाही लड़कियों की संख्या दो करोड 10 लाख है।
अंतिम बच्चे के यौन अनुपात का विश्लेषण करने के बाद यह पता लगा है कि माता-पिता की चाहत तो बेटे की थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और बेटे के इंतजार में वे इन बच्चियों को जन्मते रहे।
जन्म लेने से पहले ही कोख में मार डालने तथा जानबूझकर उपेक्षा की शिकार होने के कारण गायब बच्चियों की संख्या 1990 में चार करोड़ थी जो 2014 में बढ़कर छह करोड़ तीस लाख हो गई और हर वर्ष ऐसी 20 लाख बच्चियां गायब हो रही हैं।
लड़कियों के प्रोत्साहन के लिए शुरू की गई तमाम योजनाओं के बावजूद हर सौ जन्म पर लड़कियों के प्रतिशत में मामूली सुधार हुआ है। लड़कों के मुकाबले इन लड़कियों का प्रतिशत 2005-06 के 39.5 के मुकाबले 2015-16 में 39 पर आया है।
देश के सबसे समृद्ध राज्य पंजाब और हरियाणा में लड़कियों के मुकाबले लड़कों की चाहत सबसे ज्यादा है जबकि केरल और मेघालय में लड़कियों की स्थिति सबसे अच्छी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि समाज को बेटों की अत्यधिक चाहत की मानसिकता पर सामूहिक रूप से आत्मचिंतन करने की जरूरत है।
महिलाओं को हर क्षेत्र में आगे बढ़ाने के दावों के बीच कामकाजी महिलाओं की संख्या में भी काफी कमी दर्ज होना चौंकाने वाली बात है। वर्ष 2004-05 में रोजगार में लगी महिलाओं का प्रतिशत 36 था जो 2015-16 में कम होकर 24 प्रतिशत रह गया। पति के मुकाबले ज्यादा कमाने वाली महिलाओं का प्रतिशत दोगुना होकर 21 से 42 पर पहुंच गया। गर्भनिरोधक पर फैसला लेने में महिलाओं की भागीदारी 93 प्रतिशत से कम होकर 91 प्रतिशत पर आ गई। (वार्ता)