नई दिल्ली। उत्तर पूर्वी दिल्ली के दंगों से संबंधित एक मामले में सुनवाई कर रही एक अदालत को सूचित किया गया है कि पुलिस ने गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून (यूएपीए) कानून के तहत निरुद्ध आरोपियों को दी गई आरोप पत्र की प्रतियों में गलती से एक दस्तावेज लगा दिया जिसमें कुछ संरक्षित गवाहों का विवरण था।
पुलिस की ओर से पेश विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद ने अदालत को इस चूक के बारे में जानकारी दी। जांच एजेंसी के संज्ञान में यह बात आई थी कि मामले के संबंध में निहित स्वार्थ के साथ अनेक लोगों ने कम से कम तीन संरक्षित गवाहों से संपर्क किया।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने कहा कि जांच अधिकारी की तरफ से गलती हुई। उन्होंने मामले में जांच कर रही दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा को निर्देश दिया कि सभी संरक्षित गवाहों को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान की जाए।
अदालत ने आरोपियों और उनके वकील को दस्तावेज लौटाने का आदेश दिया। उसने आरोपी या अन्य किसी व्यक्ति या अधिकारी को संरक्षित गवाहों की पहचान सार्वजनिक नहीं करने तथा उनसे प्रत्यक्ष या परोक्ष संपर्क नहीं साधने का भी निर्देश दिया।
अदालत ने पुलिस को निर्देश दिया कि संरक्षित गवाहों का विवरण हटाकर आरोप पत्र की नई प्रतियां दाखिल की जाएं और उसे इस मामले में आरोपित 15 लोगों और उनके वकीलों को भेजा जाए।(भाषा)