नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ में प्रचंड बहुमत और मध्यप्रदेश तथा राजस्थान में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के बाद तीनों राज्यों में कांग्रेस सरकार बनाने जा रही है। इन तीनों ही राज्यों में सभी दिग्गज नेताओं ने जिस समन्वय के साथ चुनाव लड़ा, वह हैरान करने वाला था। बहरहाल चुनाव परिणामों से उत्साहित कार्यकर्ता जिस अंदाज में अपने पसंदीदा नेता की पैरवी कर रहे हैं, वह भी कहीं न कहीं कांग्रेस को परेशान करने वाला है।
कुछ ही महीनों बाद लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं। मुख्यमंत्री के चयन में लग रहा समय गुटबाजी को बढ़ाने वाला साबित हो सकता है। कांग्रेस के थिंक टैंक को यह सोचना होगा कि कमलनाथ, सिंधिया, अशोक गेहलोत, सचिन पायलट, भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव के समर्थकों में बंटें कांग्रेस कार्यकर्ता कहीं एक बार फिर लक्ष्य से भटक नहीं जाएं।
इससे कांग्रेस सरकार की गुटबाजी वाली पुरानी बीमारी एक बार फिर से उभर सकती है। आशंका इस बात की भी है कि गुटबाजी की वजह से कांग्रेस का विजयी रथ का पहिया जल्द ही रूक सकता है। कांग्रेस को आगामी लोकसभा चुनाव में पूरे देश में पीएम मोदी का सामना करना है। ऐसे में उसके लिए यह एक बड़ी चुनौती है।
अगर कांग्रेस विजय मद में गुटबाजी में बंट गई तो पूरे देश में वह विपक्ष को कैसे एकजुट किस तरह रख पाएंगी? असल में कांग्रेस अभी बेहद नाजुक मोड़ पर खड़ी है। उसे इस समय अखिलेश, मायावती, ममता बनर्जी समेत सभी सहयोगियों को साधकर एक मजबूत रणनीति बनाने की आवश्यकता है ताकि 2019 के लोकसभा चुनाव में वह मोदी की लोकप्रियता को चुनौती दी जा सके।
तीनों हिंदी भाषी राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री को लेकर कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं में जो संग्राम मचा हुआ है, वह पार्टी की छवि को खराब कर रहा है। इस व्यवहार से जनता में भी गलत संदेश जा रहा है।
राहुल और उनकी टीम को इस समस्या का हल जल्द ही ढूंढना होगा नहीं तो पार्टी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। कांग्रेस पार्टी के लिए ये कहना लाजमी होगा कि अभी तो अंगड़ाई है, आगे और लड़ाई है...