देहरादून। उत्तराखंड में लिपुलेख दर्रे से होकर जाने वाली कैलाश मानसरोवर यात्रा को लेकर इस साल भी संशय की स्थिति बनी हुई है। पिछले साल कोरोना के चलते यह स्थगित करनी पड़ी थी, लेकिन इस साल इसको लेकर होने वाली जिला प्रशासन, आईटीबीपी, कुमाऊं मंडल विकास निगम और विदेश मंत्रालय की अब तक कोई बैठक नहीं हुई है। इसलिए संशय और बढ़ गया है।
इस यात्रा के लिए विदेश मंत्रालय तीर्थयात्रियों से आवेदन आमंत्रित करता है जो अभी तक नहीं किए गए। पिछले साल से पहले तक इसके लिए विदेश मंत्रालय में लगभग 2000 आवेदन आते रहे थे, जिनमें से लगभग 1080 तीर्थयात्रियों को विदेश मंत्रालय यात्रा में जाने की अनुमति देते रहा है।
पिछले साल कोरोना के चलते न तो आवेदन मांगे जा सके न ही यात्रा हुई यात्रा को लेकर हर साल फरवरी महीने में बैठक की जाती थी, लेकिन अब तक विदेश मंत्रालय के द्वारा यात्रा को लेकर कुमाऊं मंडल विकास निगम, जिला प्रशासन सहित आईटीबीपी के साथ बैठक का आयोजन नहीं किया गया है।
यात्रा को लेकर हर साल फरवरी महीने में बैठक की जाती थी, लेकिन अब तक विदेश मंत्रालय के द्वारा यात्रा को लेकर कुमाऊं मंडल विकास निगम, जिला प्रशासन सहित आईटीबीपी के साथ बैठक का आयोजन नहीं किया गया है। यह यात्रा भारत और चीन दो देशों के बीच होने के कारण इसकी तैयारियां काफी पहले से शुरू की जाती हैं।
इस बार इस संबंध में कोई हलचल नहीं दिख रही है। कुमाऊं मंडल विकास निगम को इस यात्रा से लगभग 56 लाख का राजस्व प्राप्त होता है। इसके अलावा सीमांत जिले पिथौरागढ़ के ग्रामीणों को भी इस यात्रा से रोजी-रोटी मिलती है।
हालांकि भारत सरकार ने इस यात्रा मार्ग के भारतीय क्षेत्र तक सड़क का निर्माण भी कर दिया है, लेकिन मार्ग बनने के बाद से यात्रा को लेकर ही अनिश्चितता बनने से तीर्थयात्री भी निराश हैं। 12 जून को दिल्ली से शुरू होने वाली यह आध्यात्मिक यात्रा का पहला जत्था 13 जून को काठगोदाम, 14 को अल्मोड़ा ओर 15 जून को सीमांत जिले पिथौरागढ़ के धारचुला पहुंच जाता है। यही इस यात्रा का बेस कैम्प है। इस साल अभी तक भी इस यात्रा के लिए देश भर से यात्रियों के पंजीकरण की कोई खबर नहीं है फिर भी कुमाऊं मंडल विकास निगम अपनी तैयारियों में लगा है।
कुमाऊं मंडल विकास निगम के सूत्रों के अनुसार जिन पड़ावों पर यात्री ठहरेंगे, उन होटलों और रिजॉर्ट की मरम्मत का काम भी पूरा कर लिया गया है। हालांकि इन दिनों कैलाश यात्रा मार्ग का अधिकांश हिस्सा बर्फ से ढंका रहता है फिर भी इसकी तैयारियों में जुट जाता है।