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भारत का Chandrayaan-3 या रूस का मून मिशन लूना-25, कौन पहले करेगा चांद पर कब्‍जा?

हमें फॉलो करें chandrayaan 3
, बुधवार, 9 अगस्त 2023 (15:16 IST)
भारत का चंद्रयान-3 और रूस का लूना-25 एक ही समय में चंद्रमा पर कर सकते हैं लैंडिंग
भारत ने चंद्रयान-3 को 14 जुलाई को लॉन्च किया था

mission moon: करीब 50 साल के अंतराल के बाद रूस 11 अगस्त को मून मिशन शुरू करने और चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर रोवर उतारने के लिए दुनिया का पहला देश बनने की दौड़ की तैयारी कर रहा है। दरअसल, वैज्ञानिकों को चांद के साउथ पोल पर पानी का सोर्स मिलने की उम्‍मीद है। यही वो सोर्स है, जिससे भविष्य में मनुष्‍य के चांद पर रहने की संभावनाओं को प्रबल करेगा।

इसे हासिल करने के लिए भारत पहले ही अपने मिशन चंद्रयान-3 को लॉन्‍च कर दिया है। चंद्रयान को 14 जुलाई को लॉन्च किया गया था। अब अटकलें लगाई जा रही है कि क्‍या रूस का मिशन भारत के चंद्रयान से पहले चांद के साउथ पोल पर उतर पाएगा? दोनों में पहले कौन चांद पर कब्‍जा करेगा, इस बात पर पूरी दुनिया की नजरें टिकीं हुईं हैं।

क्‍या कहा ISRO ने : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने कहा है कि वह 23 अगस्त के आसपास चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग करने की योजना बना रहे हैं। ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक वहीं रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रोस्कोस्मोस (Roscosmos) ने कहा कि उसके लूना-25 (Luna-25) अंतरिक्ष यान को चंद्रमा तक उड़ान भरने में 5 दिन लगेंगे। फिर उसके दक्षिणी ध्रुव के पास संभावित लैंडिंग की तीन जगहों में से एक पर उतरने से पहले लूना-25 चांद की कक्षा में 5-7 दिन बिताएगा। अब सवाल यह है कि पहले कौन चांद पर उतरता है।

दोनों मून मिशन में क्‍या अंतर : बता दें कि पहले चांद पर कौन कब्‍जा करेगा, यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि दोनों मिशन में क्‍या अंतर है और दोनों का डिजाइन कैसा है।  बता दें कि चंद्रयान-3 को दो हफ्ते तक चलाने के लिए डिजाइन किया गया है, जबकि लूना-25 चंद्रमा पर एक साल तक काम करेगा। 1.8 टन के द्रव्यमान और 31 किलोग्राम (68 पाउंड) वैज्ञानिक उपकरण ले जाने के साथ लूना-25 जमे हुए पानी की मौजूदगी का परीक्षण करने के लिए 15 सेमी. (6 इंच) की गहराई से चट्टान के नमूने लेने के लिए एक स्कूप का उपयोग करेगा। जो चंद्रमा पर मानव जीवन को संभव बना सकता है। मूल रूप से अक्टूबर 2021 में लॉन्च किए जाने वाले लूना-25 मिशन में लगभग दो साल की देरी हुई है। यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने अपने पायलट-डी नेविगेशन कैमरे को लूना-25 से जोड़कर उसका परीक्षण करने की योजना बनाई थी। मगर पिछले साल फरवरी में रूस के यूक्रेन पर हमला करने के बाद उसने इस परियोजना से अपना नाता तोड़ लिया।

क्‍या दोनों का चांद पर उतरना मुश्‍किल है : हालांकि अस्‍त व्‍यस्‍त और उबड़-खाबड़ जगह होने की वजह से चांद के साउथ पोल पर उतरना मुश्किल रहता है। लेकिन दक्षिणी ध्रुव एक अमूल्‍य जगह है,क्योंकि वैज्ञानिकों का मानना है कि वहां काफी मात्रा में बर्फ मौजूद हो सकती है। जिसका इस्तेमाल ईंधन और ऑक्सीजन निकालने के साथ-साथ पीने के पानी के लिए भी किया जा सकता है। ऐसे में दोनों मिशन एक-दूसरे के रास्ते में नहीं आएंगे, क्योंकि दोनों की लैंडिंग अलग अलग जगह होगी। वैज्ञानिकों के मुताबिक ऐसा कोई खतरा नहीं है कि दोनों मिशन एक दूसरे से टकराए। इसके साथ ही यान के लिए चंद्रमा पर पर्याप्त जगह भी है।
Edited By navin rangiyal

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