साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हिंदी के कवि चंद्रकांत देवताले का सोमवार देर रात यहां निधन हो गया। वे 81 वर्ष के थे।
चन्द्रकांत देवताले का जन्म 7 नवंबर 1936 को बैतूल के जौलखेड़ा हुआ था। उच्च शिक्षा इंदौर से हुई तथा पी-एच.डी. सागर विश्वविद्यालय, सागर से। साठोत्तरी हिंदी कविता के प्रमुख हस्ताक्षर देवताले जी उच्च शिक्षा में अध्यापन कार्य से संबद्ध रहे थे।
देवताले जी की प्रमुख कृतियां हैं- हड्डियों में छिपा ज्वर, दीवारों पर खून से, लकड़बग्घा हँस रहा है, रोशनी के मैदान की तरफ़, भूखंड तप रहा है, हर चीज़ आग में बताई गई थी, पत्थर की बैंच, इतनी पत्थर रोशनी, उजाड़ में संग्रहालय आदि।
देवताले जी की उनकी कविता में समय के सरोकार हैं, समाज के सरोकार हैं, आधुनिकता के आगामी वर्षों की सभी सर्जनात्मक प्रवृत्तियां इनमें हैं। उत्तर आधुनिकता को भारतीय साहित्यिक सिद्धांत के रूप में न मानने वालों को भी यह स्वीकार करना पड़ता है कि देवताले जी की कविता में समकालीन समय की सभी प्रवृत्तियाँ मिलती हैं।
सैद्धांतिक दृष्टि से आप उत्तरआधुनिकता को मानें या न मानें, ये कविताएँ आधुनिक जागरण के परवर्ती विकास के रूप में रूपायित सामाजिक सांस्कृतिक आयामों को अभिहित करने वाली हैं।
देवताले जी को उनकी रचनाओं के लिए अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। इनमें प्रमुख हैं- माखन लाल चतुर्वेदी पुरस्कार, मध्य प्रदेश शासन का शिखर सम्मान। उनकी कविताओं के अनुवाद प्रायः सभी भारतीय भाषाओं में और कई विदेशी भाषाओं में हुए हैं।
देवताले की कविता की जड़ें गाँव-कस्बों और निम्न मध्यवर्ग के जीवन में हैं। उसमें मानव जीवन अपनी विविधता और विडंबनाओं के साथ उपस्थित हुआ है। कवि में जहां व्यवस्था की कुरूपता के खिलाफ गुस्सा था, वहीं मानवीय प्रेम-भाव भी था। वह अपनी बात सीधे और मारक ढंग से कहते थे। कविता की भाषा में अत्यंत पारदर्शिता और एक विरल संगीतात्मकता दिखाई देती है।