नई दिल्ली। आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू को हालात के अनुकूल तत्काल फैसला कर अपनी शीर्ष राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने वाले कुशल नीतिकार और विपक्षी एकता के सबसे प्रबल पैरोकारों में गिना जाता है।
पिछले कुछ समय में राजग से तल्ख होते रिश्तों के बीच चन्द्रबाबू एक बार फिर विपक्षी एकता की मशाल जलाने के लिए प्रयासरत हैं। चन्द्रबाबू नायडू अपने राजनीतिक सफर में कई रास्तों से गुजरे और इस दौरान कई बार विपक्षी एकता के लिए पुरजोर प्रयास भी किए।
वे कई विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने में सफल तो हुए, लेकिन उन्हें एक रखने का दुरूह कार्य नहीं कर पाए। कांग्रेस पर आंध्रप्रदेश से विश्वासघात करने का आरोप लगाकर भाजपा का दामन थामने वाले चन्द्रबाबू ने आंध्रप्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग नहीं माने जाने से नाराज होकर राजग से नाता तोड़ दिया है और अब यह देखना दिलचस्प होगा कि किंग मेकर बनने की ख्वाहिश रखने वाले चन्द्रबाबू पूरे देश में बिखरे-बिखरे और नेतृत्वविहीन विपक्ष को नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा के खिलाफ कैसे खड़ा कर पाएंगे।
1989 में राष्ट्रीय मोर्चा (नेशनल फ्रंट), 1996 में संयुक्त मोर्चा (यूनाइटेड फ्रंट) और 2007 में यूनाइटेड नेशनल प्रोग्रेसिव अलायंस के गठन में चन्द्रबाबू की भूमिका रही। नेशनल फ्रंट के गठन के समय जहां वे एनटी रामाराव के दाएं हाथ के रूप में मौजूद रहे, वहीं बाकी दोनों मोर्चों पर वे एक कुशल रणनीतिकार की तरह बिसात बिछाने में कामयाब रहे।
संयुक्त मोर्चा के संयोजक के तौर पर उन्हें 1997 में प्रधानमंत्री के पद की पेशकश की गई थी लेकिन उन्होंने इसे यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वे खुद को आंध्रप्रदेश के विकास के लिए समर्पित करना चाहते हैं। चन्द्रबाबू नायडू ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत कांग्रेस से की थी और वे 28 साल की उम्र में तत्कालीन मुख्यमंत्री टी. अंजैया की सरकार में आंध्रप्रदेश के सबसे युवा मंत्री थे।
कांग्रेस छोड़ने के बाद वे एनटी रामाराव की तेलुगुदेशम पार्टी में शामिल हो गए। इसके बाद वे इसी पार्टी के सर्वेसर्वा बन गए। बहरहाल, लोकसभा चुनाव की आहट अब सुनाई देने लगी है और चन्द्रबाबू नायडू गैर भाजपा मोर्चा बनाने के लिए दिल्ली में सियासत के गलियारों में विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं से मिलकर अगले सियासी दांव की संभावनाएं तलाश रहे हैं।
हाल ही में उन्होंने शरद पवार, ज्योतिरादित्य सिंधिया, वीरप्पा मोइली, फारूक अब्दुल्ला सहित विभिन्न दलों के नेताओं से मुलाकात की। इस बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि वे कई मोर्चों के गठन में शामिल रहे हैं तथा भारतीय राजनीति में मोर्चों के गठन में आने वाली दुष्वारियां उनसे बेहतर और कोई नहीं समझ सकता। वे तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी की तरह राज्यों में सबसे मजबूत विपक्षी पार्टी की अगुवाई में विपक्षी मोर्चा बनाने के पक्ष में हैं। नेतृत्व के मुद्दे को वे फिलहाल टालना चाहते हैं और इस बात को लेकर आशान्वित हैं कि मुनासिब समय पर मोर्चा बनेगा। (भाषा)