नई दिल्ली। सीबीआई ने सार्वजनिक क्षेत्र के 10 बैंकों के समूह से कथित तौर पर 1,530 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी करने के संबंध में लुधियाना की एसईएल टेक्सटाइल लिमिटेड (एसईएलटी) और इसके निदेशकों के खिलाफ मामला दर्ज किया है। इस कंपनी ने उन कंपनियों के माध्यम से धन की हेराफेरी की थी जिनमें से एक का नाम पनामा पेपर्स खुलासे में कथित रूप से सामने आया।
अधिकारियों ने सोमवार को बताया कि सीबीआई की प्राथमिकी में कंपनी के निदेशकों- रामशरण सलूजा, नीरज सलूजा और धीरज सलूजा के नाम हैं। साथ ही कुछ अज्ञात लोगों के खिलाफ भी मामला दर्ज किया गया है। मामला दर्ज करने के बाद सीबीआई ने लुधनिया में आरोपी निदेशकों के कार्यालय और आवासों की तलाशी ली।
उन्होंने कहा कि सीबीआई ने सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया की शिकायत पर कार्रवाई की। बैंक ने आरोप लगाया था कि कंपनी और उसके निदेशकों ने बैंकों के साथ धोखाधड़ी के लिए आपराधिक साजिश रची और 2009-13 के बीच ऋण के धन का दूसरे काम में उपयोग किया और इस तरह समूह में शामिल सार्वजनिक क्षेत्र के 10 बैंकों को 1,530 करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाया।
पिछले साल सीबीआई ने एसईएलटी की मूल कंपनी एसईएल मैन्यूफैक्चरिंग कॉर्पोरेशन लिमिटेड पर बैंक ऑफ महाराष्ट्र को 113 करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाने को लेकर मामला दर्ज किया था। सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया ने आरोप लगाया है कि कंपनी ने धन की हेराफेरी के लिए संबंधित कंपनियों का इस्तेमाल किया।
अपनी शिकायत में इस बैंक ने उन कंपनियों की सूची दी जिनके एसईएलटी में बड़े कारोबारी विनिमय हैं। उनमें एक ऐसी भी कंपनी है जिसका नाम पनामा पेपर्स लीक में सामने आने का संदेह है। बैंक की शिकायत अब प्राथमिकी का हिस्सा है। बैंक ने कहा कि कहा कि ये वास्तविक कारोबारी विनिमय नहीं थे।
इसने कहा कि रामशरण सलूजा और नीरज सलूजा भारत में रहते हैं जबकि धीरज कंपनी का विदेश का कारोबार देखता है और विदेश में रहता है। केंद्रीय जांच ब्यूरो से आरोपियों के पासपोर्ट जब्त करने का अनुरोध किया गया है ताकि वे देश से बाहर नहीं जाएं।
उन्होंने बताया कि सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया ने खाते को गैरनिष्पादित संपत्ति (एनपीए) घोषित किया था और बाद में अन्य बैंकों ने भी यही किया। बैंकों द्वारा विशेष ऑडिट कराए जाने के दौरान कंपनी ने कर्ज पुनर्गठन (सीडीआर) की मांग की थी। उन्होंने बताया कि ऑडिट के दौरान एसईएलटी की तरफ से कुछ अनियमितताएं मिली थीं लेकिन कंपनी ने ऑडिटरों को कुछ महत्वपूर्ण सूचनाएं नहीं दीं जिसके कारण वे अधिकतर ब्योरे का सत्यापन नहीं कर पाए।
बैंक ने आरोप लगाया कि इसके बाद सीडीआर पैकेज से भी कंपनी की माली हालत में सुधार नहीं हुआ। प्राथमिकी में आरोप लगाया गया कि एनपीए घोषित करने के बाद बैंकों ने फॉरेंसिक जांच कराई जिससे बड़े पैमाने पर कर्ज के धन से हेराफेरी का पता चला। (भाषा)