caste census : बिहार में जाति आधारित गणना के आंकड़े जारी होने के बाद मोदी सरकार पर भी जाति आधारित गणना के लिए दबाव बढ़ गया है। महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में इस तरह की गणना की मांग की जा रही है।
केंद्रीय मंत्री और अपना दल की नेता अनुप्रिया पटेल ने कहा कि अपना दल ने हमेशा जातीय जनगणना की वकालत की है और संसद में हमने अपनी पार्टी का स्पष्ट रूप से पक्ष रखा है कि हम जातीय जनगणना के पक्षधर हैं और ये समय की मांग है।
आप सांसद संजय सिंह ने जातिगत जनगणना का समर्थन किया। उन्होंन कहा कि ये जातीय जनगणना पूरे देश में होनी चाहिए।
शरद पवार के नेतृत्व वाले NCP गुट के विधायक जितेंद्र आव्हाड ने बिहार की जाति आधारित गणना की सराहना करते हुए मांग की है कि महाराष्ट्र सहित देश के सभी राज्यों में इसी तरह की कवायद की जानी चाहिए। उन्होंने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के अधिकार छीने जाने का आरोप लगाया।
आव्हाड ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर शेयर किए गए एक वीडियो में कहा कि बिहार ने आगे की ओर एक साहसिक कदम उठाया है। उसने जाति आधारित गणना करने का फैसला किया और इससे क्या सच्चाई सामने आई? इससे पता चला कि जनसंख्या का करीब 61 प्रतिशत हिस्सा ओबीसी का है। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी मिलकर आबादी का 85 प्रतिशत हिस्सा हैं।
उन्होंने कहा कि बिहार में जो सच सामने आया है, वह पूरे भारत का सच है, इसलिए हम मांग करते हैं... हमने हमेशा मांग की है कि जनसंख्या के जाति-वार सटीक आंकड़े सामने लाए जाएं। आज ओबीसी से सब कुछ छीना जा रहा है।
बिहार में नीतीश कुमार सरकार ने सोमवार को बहुप्रतीक्षित जाति आधारित गणना के आंकड़े जारी किए, जिसके अनुसार राज्य की कुल आबादी में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) की हिस्सेदारी 63 प्रतिशत है।
बिहार के विकास आयुक्त विवेक सिंह द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, राज्य की कुल जनसंख्या 13.07 करोड़ से कुछ अधिक है, जिसमें ईबीसी (36 प्रतिशत) सबसे बड़े सामाजिक वर्ग के रूप में उभरा है, इसके बाद ओबीसी (27.13 प्रतिशत) है।