प्रयागराज। तीर्थराज प्रयाग में आयोजित होने वाले दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक समागम कुंभ में केन्द्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति श्री पंचायती तपोनिधि निरंजनी अखाड़े की महामंडलेश्वर बन जाएंगी।
कुंभ मेला क्षेत्र में गंगा पार स्थित झूंसी में बने निरंजनी अखाड़ा के शिविर में 14 जनवरी को विधि-विधान से उनका पट्टाभिषेक होगा। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष एवं निरंजनी अखाडा के सचिव महंत नरेन्द्र गिरी ने बताया कि निरंजन ज्योति पहली महिला हैं, जो केन्द्रीय मंत्री के साथ महिला महामंडलेश्वर के रूप में 15 जनवरी को मकर संक्रांति के अवसर पर शाही स्नान भी करेंगी। उन्होंने बताया कि इससे पहले किसी भी अखाड़े में कोई केन्द्रीय मंत्री महामंडलेश्वर नहीं बना है।
उन्होंने बताया कि निरंजन ज्योति निरंजनी अखाड़े की 11वीं महिला महामंडलेश्वर होंगी। गौरतलब है कि सनातन परंपरा में संन्यासी बनना सबसे कठिन कार्य है। शिक्षा, ज्ञान और संस्कार के साथ सामाजिक स्तर को ध्यान में रखते हुए संन्यासी को महामंडलेश्वर जैसे पद पर बिठाया जाता है। अखाड़ा प्रमुख के पद हासिल करने में संतों को वर्षों लग जाते हैं। शैव एवं वैष्णव संप्रदाय के अखाड़ों में अलग-अलग परंपरा है। शैव मत के अखाड़ों में संन्यास और नागा परंपरा का प्रचलन है।
संन्यासी को साधु-संन्यास परंपरा से होना चाहिए, वेद का अध्ययन, चरित्र, व्यवहार एवं अच्छा ज्ञान हो, अखाड़ा कमेटी उसके निजी जीवन की पड़ताल से संतुष्ट हो, इसके बाद ही पट्टाभिषेक होता है।
सब कुछ सामान्य होने के बाद संन्यासी का विधिवत पट्टकाभिषेक कर महामंडलेश्वर पद पर अलंकृत किया जाता है। फिर महामंडलेश्वर के बीच आपसी सहमति से आचार्य के पद पर अलंकृत किया जाता है। इसके बाद अखाड़े की सारी गतिविधियां आचार्य महामंडलेश्वर के हाथ संपन्न कराई जाती हैं।
अखाड़े में महामंडलेश्वर सम्मान का पद होता है। शाही जुलूस में नागा संत अखाड़े के देवता को सबसे आगे लेकर चलते हैं। आचार्य महामंडलेश्वर के बाद वरिष्ठता के क्रम पर छत्र, चंवर और सुरक्षा के साथ महामंडलेश्वर का रथ चलता है। (वार्ता)