बकस्वाहा के 2.15 लाख पेड़ों की बलि लेगी हीरों की चाहत,बचाने के लिए बॉलीवुड अभिनेता भी सरकार से लगा रहे गुहार
#savebuxwahaforest की मुहिम को ट्विटर पर ट्रेंड कराने की फिर तैयारी
आज विश्व पर्यावरण दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तक पर्यावरण की रक्षा के लिए पेड़ लगाने और पर्यावरण के संरक्षण की अपील लोगों से कर रहे है। सोशल मीडिया पर मंत्रियों के साथ जिम्मेदारों की पेड़ लगाने की रस्म अदायगी की तस्वीरें भी खूब वायरल हो रही है लेकिन क्या हमारी सरकारें वास्तव में पर्यावरण के प्रति सजग है? क्या सच में प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक पेड़ों को बचाने के लिए संकल्पित है? यह कुछ ऐसे सवाल है जो आज मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड के छतरपुर जिले के बकस्वाहा के जंगल को बचाने के लिए युवाओं से लेकर देश भर के पर्यावरण प्रेमी पूछ रहे है।
बकस्वाहा के 2 लाख 15 हजार पेड़ों को बचाने की मुहिम ग्राउंड जीरो से लेकर सोशल मीडिया तक ट्रेंड हो रही है। वहीं बकस्वाहा के जंगल को कटने से बचाने के लिए के लिए बॉलीवुड अभिनेता आशुतोष राना सीधे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से गुहार लगा चुके है।
बकस्वाहा पर बवाल क्यों?-आखिर बकस्वाहा के जंगल को बचाने के मुहिम क्यों शुरु करनी पड़ी पहले आपको यह बताते है। मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में छतरपुर जिले में एक छोटा सा कस्बा है बकस्वाहा है। वैसे तो बकस्वाहा अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए हमेशा से चर्चा में रहा है लेकिन अब बकस्वाहा के सुर्खियों में रहने की वजह है यहां पर देश के सबसे बड़ा हीरा भंडार का पाया जाना। बकस्वाहा के जंगल की जमीन में 3.42 करोड़ कैरेट हीरे दबे होने का अनुमान है, और इन्हें निकालने के लिए 382.131 हेक्टेयर पर फैले जंगल की बलि लिए जाने की तैयारी हो रही है। वन विभाग ने बकस्वाहा के जंगल के पेड़ों की जो गिनती की है उनमें 2 लाख 15 हजार 875 पेड़ बताए गए। इनमें लगभग 40 हजार पेड़ सागौन के हैं,इसके अलावा केम,पीपल, तेंदू,जामुन, बहेड़ा, अर्जुन जैसे औषधीय पेड़ भी हैं।
दरअसल बंदर डायमंड प्रोजेक्ट के तहत इस स्थान का सर्वे 20 साल पहले शुरू हुआ था। दो साल पहले प्रदेश सरकार ने इस जंगल की नीलामी की, जिसमें आदित्य बिड़ला समूह की एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने सबसे ज्यादा बोली लगाई। प्रदेश सरकार यह जमीन इस कंपनी को 50 साल के लिए लीज पर दे रही है। इस जंगल में 62.64 हेक्टेयर क्षेत्र हीरे निकालने के लिए चिह्नित किया है। चिह्नित क्षेत्र पर ही खदान बनाई जाएगी लेकिन कंपनी ने कुल 382.131 हेक्टेयर का जंगल मांगा है, जिसमें बाकी 205 हेक्टेयर जमीन का उपयोग खनन करने और प्रोसेस के दौरान खदानों से निकला मलबा डंप करने में किया जाएगा।
बकस्वाहा के जंगल को बचाने की मुहिम- हीरे निकालने के लिए बकस्वाहा के जंगल से केवल सरकारी आंकड़ों के मुताबिक ही 2.15 लाख पेड़ काटे जाएंगे, जबकि वास्तविकता में यह संख्या और भी अधिक है, कारण वन विभाग ने गिनती में केवल पेड़ों को ही लिया है। पेड़ों के काटने के साथ इस इलाके की 383 हेक्टेयर वन भूमि बंजर हो जाएगी। पहले से ही पानी की समस्या से जूझ रहा बुंदेलखंड में इतने बड़े पैमाने पर पेड़ों के काटने को मानव त्रासदी ही कहा जाएगा। हीरे निकालने के लिए जंगल के बीच से गुजरने वाली एक छोटी सी नदी को डायवर्ट कर बांध बनाया जाना भी प्रस्तावित है, जो प्राकृतिक पर्यावरण के लिए खतरा है।
बकस्वाहा के जंगल को बचाने की जो शुरुआत स्थानीय स्तर पर युवाओं की ओर से की गई थी वह अब राष्ट्रीय स्तर पर एक मुहिम का रूप ले चुका है। आज पर्यावरण दिवस पर देश भर के पर्यावरण प्रेमी बकस्वाहा से एक चिपको आंदोलन की शुरुआत करने जा रहे है जिसमें वह पेड़ों से चिपक कर अपना विरोध दर्ज कराने की तैयारी में है।
पर्यावरण बचाओ अभियान के शरद सिंह कुमरे की अगुवाई में पर्यावरण प्रेमियों का एक दल बकस्वाहा पहुंचकर ग्राउंड जीरो की वर्तमान की पूरी स्थिति का जायजा लेगा। वेबदुनिया से बातचीत में शरद सिंह कुमरे कहते हैं कि बकस्वाहा के जंगल को बचाने के लिए उन्होंने राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री से लेकर सभी मंत्रियों को कड़े शब्दों में एक पत्र लिखा। इसके साथ ही आज उनके साथ देश भर के पर्यावरण प्रेमियों का एक दल बकस्वाहा पहुंच रहा है और पूरे स्थिति को समझकर आगे की रणनीति पर मंथन करेंगे।
वहीं बुंदेलखंड के युवाओं ने 2 बार इस मुद्दे को ट्विटर पर ट्रेंड कराया जा चुका है। आज पर्यावरण दिवस पर दोपहर 2 बजे से युवाओं ने #savebuxwahaforest को ट्विटर पर ट्रेंड कराने जा रहे है। इसके साथ लोगों को इस मुद्दें से जोड़ने के लिए "एक दीया प्रकृति के नाम" अभियान में आज शाम सभी देशवासियों से एक दीया जलाने का आव्हान किया है। इसके साथ स्थानीय स्तर पर लोगों को जागरुक करने के लिए गांवों की दीवारों पर स्लोगन लिखने के साथ सोशल मीडिया पर बैनर और पोस्टर के जरिए पूरा कैंपेन चलाया जा रहा है।
बकस्वाहा के लिए आगे आए आशुतोष राना- बकस्वाहा के जंगल को बचाने के लिए अभिनेता और लेखक आशुतोष राना ने सोशल मीडिया पर एक लंबी पोस्ट लिखी है। आशुतोष लिखते हैं कि “जन और जीवन की रक्षा के लिए जल, जंगल, ज़मीन का संरक्षण और संवर्धन आवश्यक होता है। इन सभी का रक्षण-संवर्धन जनतंत्र की प्राथमिकता होती है। किंतु मनुष्य के हृदय में इनके संवर्धन का संकल्प कितना गहरा है इसकी परीक्षा के लिए प्रकृति कई खेल रचती है और वही जाँचने के लिए प्रकृति ने मध्यप्रदेश में बुंदेलखंड स्थित बकस्वाह के विशाल जंगलों में देश के सबसे बड़े हीरा भंडारण का पता दे दिया। अब धर्म संकट यह है की मनुष्य को यदि हीरे चाहिए हैं तो उसे कम से कम दो लाख पंद्रह हज़ार पेड़ों को निर्ममता से काटकर अलग करना होगा !! अब हुई झंझट क्योंकि वृक्षों के बारे में मान्यता है- “अमृत दे करते विषपान। वृक्ष स्वयं शंकर भगवान॥” वृक्ष महादेव शिव की भाँति कार्बन डाई ऑक्सायड रूपी विष को स्वयं सोखकर हमें ऑक्सिजन रूपी अमृत प्रदान करते हैं। महामारी के इस भीषण दौर में ऑक्सिजन ही अमृत है इस तथ्य और सत्य की जानकारी भी हमें अच्छे से हो गयी है, प्राणवायु के महत्व से हम भलीभाँति परिचित हो गए हैं। ध्यान में रखने योग्य यह की एक पेड़ 230 लीटर ऑक्सीजन एक दिन में वायुमंडल में छोड़ता है जो सात मनुष्यों को जीवन देने का काम करती है। इसका अर्थ हुआ की २ लाख १५ हज़ार पेड़ प्रतिदिन 15 लाख 5 हज़ार व्यक्तियों को प्राणवायु प्रदान करने का काम करते हैं। ( इसमें उन लाखों वन्य पशु-पक्षियों की संख्या नहीं जोड़ी गयी है जिनका जीवन ही जंगल हैं और जो मनुष्य के जैसे ही प्रकृति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।) अब समस्या यह है की जंगल कटने देते हैं तो शिवसंकल्प जाता है और शिवसंकल्प की रक्षा करते हैं सम्पत्ति जाती है ? जल, जंगल, ज़मीन के साथ-साथ यदि हम ज़मीर का भी संवर्धन करें तो प्राण भी बचे रहेंगे और प्रतिष्ठा भी, जन भी सुरक्षित रहेगा और जीवन भी। किसी भी सुशासक के लिए नग नहीं, नागरिक महत्वपूर्ण होते हैं, उसके लिए धन से अधिक महत्व जन का होता है, इसलिए वह इस सत्य को सदैव स्मरण रखता है कि हीरे यदि हमें प्रतिष्ठा प्रदान करते हैं तो वृक्ष हमारे प्राणदाता होते हैं। क्योंकि जब प्राण ही ना बचें तो प्रतिष्ठा का कोई मूल्य नहीं रह जाता। सुशासक जानते हैं कि सम्पत्ति की शान से अधिक महत्वपूर्ण संतति की जान होती है क्योंकि जान है तो जहाँन है और जहाँन ही हमारी शान है। इसलिए मुझे विश्वास है की मध्यप्रदेश शासन अपनी संवेदनशीलता के चलते हर क़ीमत पर प्रकृति के पक्ष में ही निर्णय लेगा। क्योंकि प्रकृति की लय से लय मिलाकर ना चलना ही प्रलय का कारण होता है"।