कोविशील्ड वैकसीन के बाद अब स्वदेशी कोवैक्सीन को लेकर बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के एक रिसर्च में कई तरह के दावे किए गए है। रिसर्च में कोविशील्ड की तरह ही कोवैक्सीन के गंभीर साइड इफेक्ट की बात सामने आई है। भारत बायोटेक कंपनी की कोवैक्सीन को लेकर बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की ओर से रिसर्च में दावा किया गया है कि वैक्सीन को लगवाने के करीब एक साल बाद लोगों में इसके साइड इफेक्ट देखे गए।
कोवैक्सीन को लेकर बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी की रिसर्च को लेकर वेबदुनिया ने बनारस हिंदू यूनिर्विसटी के कोविड पर कार्य करने वाले जीन वैज्ञानिक प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे से खास बातचीत की
कोवैक्सीन को लेकर रिसर्च पर आपका नजरिया- भारत बायोटेक की कोवैक्सीन के लेकर BHU के शोधकर्ताओ को जो रिसर्च सामने आई है उस पर BHU के ही साइंटिस्ट प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे कहते हैं कि कोवैक्सीन को लेकर जो रिसर्च सामने आई है उसमें वैक्सीन के साइड इफेक्ट की फीक्वेंसी काफी हाई जो अलर्मिंग बात है। रिसर्च के मुताबिक वैक्सीन के चलते 19 वर्ष से कम लोगो में 48% और वयस्क लोगों में 43% लोगों को अपर रेसपेरेट्री ट्रैंक इंफेक्शंस देखा गया जो बहुत हाई है।
वह आगे कहते हैं कि चूकि, पूरा पेपर उपलब्ध नहीं है जर्नल के वेबसाइट पर ऐसे में अब शोधकर्ताओं को सामने आकर अपने शोध के हर पहलू को लोगों को बताना चाहिए जिससे किसी भी प्रकार का भ्रम नहीं फैले। रिसर्च पेपर के सारांश से यह समझ में आ रहा है की, लोगों से टेलीफोन पर पूछा गया है और साथ में कोई कंट्रोल ग्रुप भी नहीं लिया गया है। इसके साथ ही वह कहते हैं कि अब तक उनके संज्ञान में ऐसी किसी भी रिसर्च की जानकारी नहीं थी। वहीं प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे कहते हैं कि मेरा अनुमान है कि आने वाले समय और भी रिसर्च आएगी, जो वैक्सीन के बारे में स्थिति को साफ़ करेगी।
क्या कोवैक्सीन के साइड इफेक्ट अब भी?-पहले कोविशील्ड औऱ अब कोवैक्सीन के साइड इफेक्ट की खबरें सामने आने के बाद अब यह सवाल भी लोगों के मन में उठ रहा है कि क्या वैक्सीन का साइड इफेक्ट अब भी लोगों पर देखा जाएगा. इस पर प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे कहते हैं कि किसी भी वैक्सीन का साइड इफेक्ट सामान्य तौर पर 4-6 सप्ताह के बीच ही देखा जाता है, ऐसे में लोगों को वैक्सीन लिए अब काफी लंबा समय बीत गया है, ऐसे में वैक्सीन के किसी भी प्रकार के साइड इफेक्ट की संभावना बहुत कम या न के बराबर है। इतने समय बाद वैक्सीन के एडवर्स इफेक्ट नहीं होंगे, अगर कुछ होता है, तो इसके लिए अलग फैक्टर होंगे।
इसके साथ हमें ये भी समझना पड़ेगा की मानव विकास काल में हर व्यक्ति कुछ ना कुछ म्युटेशन रखता है, जिसमे से कौन सा म्युटेशन उसको वायरस से बचा रहा है या वैक्सीन के साथ क्या कर रहा है ये बहुत ही गूढ़ विषय है, जैसे दक्षिण भारत में वैश्य नाम की जाती है, जिसको अगर एनेस्थीसिया का इंजेक्शन दे दिया जाये तो वो लोग बेहोशी से निकल ही नहीं पाते। इसलिये वैक्सीन का किसके ऊपर क्या प्रभाव उसके जीनोम के हिसाब से पड़ रहा है इसको समझना बहुत ही मुश्किल है।
पहले कोविशील्ड और अब कोवैक्सीन पर सवाल?-पहले कोविशील्ड और अब कोवैक्सीन को लेकर उठ रहे सवाल पर प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे कहते हैं कि हमको इस बात का समझना चाहिए कि वैक्सीन डेवलपमेंट के प्रोसेस में जब कुछ लोगों पर टेस्ट किए गए थे तो यह बात सामने आई थी कि कुछ एडवर्स इफेक्ट होंगे लेकिन बहुत सीवियर इफेक्ट बहुत ही कम लोगों पर पड़ेगा। ऐसे में कोरोना संक्रमण काल में बहुत सारे लोगों की जान बचानी थी इसलिए वैक्सीन लाई गई। और इस विषय में कई शोध आ चुके है कि वैक्सीन ने लगभग 15.5 करोड़ लोगों की जान बचायी। इसलिये बिना किसी पर्याप्त मानक के वैक्सीन पर सवाल उठाना लाज़मी नहीं है।
भारत बायोटेक ने रिसर्च पर उठाए सवाल?- कोवैक्सीन को बनाने वाली कंपनी भारत बायोटेक ने रिसर्च को लेकर कई सवाल खड़े किए है। कंपनी की ओऱ से जारी बयान में कहा गया है कि कोवैक्सीन का सेफ्टी ट्रैक रिकॉर्ड काफी अच्छा है। कोवैक्सीन को लेकर पहले भी कई रिसर्च और स्टडी में वैक्सीन के सुरक्षित होने के प्रमाण मिले है।