बद्रीनाथ। भू-बैकुंठ धाम श्री बद्रीनाथ मंदिर के कपाट शनिवार, 19 नवंबर को शुभ मुहूर्त में शाम 3.35 बजे पूरे विधि-विधान, वैदिक परंपरा एवं मंत्रोच्चारण के साथ शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए। इस बार बद्रीनाथ की कपाट बंदी के दौरान ज्योतिष पीठ के इतिहास में लंबे समय के बाद पहली बार ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य के रूप में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित परंपराओं का निर्वहन करते हुए बद्रीनाथ मंदिर के कपाट बंद होने के अवसर पर अपनी गरिमामयी उपस्थिति दर्ज की।
उल्लेखनीय है कि 1776 में किन्हीं कारणों से ज्योतिष पीठ आचार्य विहीन हो गई थी। उसके बाद से यह परंपरा टूट गई थी, लेकिन स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती की ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य पर अभिषिक्त होने के बाद एक बार फिर से आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित परंपरा प्रारंभ कर दी गई है। इसको लेकर सनातन धर्मावलंबियों में खासा उत्साह और खुशी है।
पंच पूजाओं के साथ शुरू हुई कपाट बंद होने की प्रक्रिया के अंतिम दिन भगवान नारायण की विशेष पूजा-अर्चना की गई। मुख्य पुजारी रावल जी, मंदिर समिति के सदस्यों एवं सैकड़ों श्रद्धालुओं की मौजूदगी में भगवान बद्री विशाल जी के कपाट इस वर्ष शीतकाल के लिए बंद किए गए। कपाट बंद होने के समय आर्मी के मधुर बैंड की ध्वनि ने सबको भावुक कर दिया।
कपाट बंद होने से पूर्व भगवान को घृत कंबल पहनाया गया। इस अवसर पर सैकड़ों श्रद्धालुओं ने भगवान के कपाट बंद होने की प्रक्रिया देखी। पूरी बद्रीनाथ पुरी जय बद्री विशाल के उद्घोष के साथ गूंज उठी। मुख्य पुजारी रावल ईश्वरी नम्बूदरी ने इस वर्ष की अंतिम पूजा की।
कपाट बंद होने का माहौल अत्यंत धार्मिक मान्यताओं, परंपराओं के साथ हुआ। कपाट बंद होने के अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने पूरे भक्ति भाव से भगवान बद्री विशाल के दर्शन किए। मंदिर समिति के मीडिया प्रभारी ने बताया कि इस वर्ष 17 लाख 60 हजार, 649 श्रद्धालु भगवान बद्री विशाल के दर्शनों के लिए बद्रीनाथ पहुंचे।