लखनऊ। अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस केस (Babri Masjid Demolition Case) मामले पर न्यायालय का फैसला आज आएगा। 28 साल बाद आने वाले इस फैसले पर देशभर की निगाहें हैं। सीबीआई की स्पेशल कोर्ट (Special CBI Court) बुधवार को अपना फैसला सुनाने वाली है।
इस मामले में भाजपा, शिवसेना व विहिप के वरिष्ठ नेताओं के साथ साधु-संत भी आरोपित हैं। आपराधिक मामले में 49 लोगों को अभियुक्त बनाया गया था, जिनमें 17 की मौत हो चुकी है। फैसला सुनाते समय 32 आरोपियों को कोर्ट में पेश होने के आदेश हैं।
ढांचा गिराए जाने के बाद भड़के थे दंगे : अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को राम मंदिर आंदोलन के लिए जुटी भीड़ ने बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को गिरा दिया था। ढांचा गिरने के बाद देशभर में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे थे। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इन दंगों में 1,800 से ज्यादा लोग मारे गए थे।
जमीन मालिकाना मामले से अलग : सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2019 में जो फैसला सुनाया था, वह जमीन के मालिकाना हक को लेकर था। यह फैसला राम जन्मभूमि मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया था। यहां मंदिर का निर्माण चल रहा है। 5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम जन्मभूमि मंदिर का भूमिपूजन किया। यह मामला उससे अलग है।
ये हैं आरोपी : इस केस में सीबीआई ने कुल 49 लोगों को आरोपी बनाया था, जिनमें 17 लोगों की मौत हो चुकी है। बाकी 32 आरोपियों के खिलाफ कोर्ट से फैसला सुनाएगा। इनमें पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, उप्र के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरलीमनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार, राम विलास वेदांती के साथ श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट अयोध्या के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल व महासचिव चंपत राय बंसल, साध्वी ऋतंभरा व आचार्य धर्मेंद्र आरोपी हैं। 28 वर्ष की लंबी सुनवाई के दौरान आरोपित बाला साहब ठाकरे, अशोक सिंघल, विजयाराजे सिंधिया, आचार्य गिरिराज किशोर और विष्णु हरि डालमिया का निधन हो गया।
कुल 49 एफआईआर : उक्त मामले में विभिन्न तारीखों पर कुल 49 प्राथमिकी दर्ज कराई गईं। घटना की पहली एफआईआर नंबर 197 उसी दिन 6 दिसंबर 1992 को श्रीराम जन्मभूमि सदर फैजाबाद पुलिस थाने के थानाध्यक्ष प्रियंबदा नाथ शुक्ल ने दर्ज कराई थी। दूसरी एफआईआर नंबर 198 राम जन्मभूमि पुलिस चौकी के प्रभारी गंगा प्रसाद तिवारी की थी। केस की जांच बाद में सीबीआई को सौंप दी गई। सीबीआई ने 4 अक्टूबर 1993 को 40 अभियुक्तों के खिलाफ पहला आरोप-पत्र दाखिल किया और 9 अन्य अभियुक्तों के खिलाफ 10 जनवरी 1996 को एक और आरोप-पत्र दाखिल किया।
सीबीआई की लंबी लड़ाई : पहले यह मुकदमा दो जगह चल रहा था। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी सहित 8 अभियुक्तों के खिलाफ रायबरेली की अदालत में और बाकी लोगों के खिलाफ लखनऊ की विशेष अदालत में। रायबरेली में जिन आठ नेताओं का मुकदमा था उनके खिलाफ साजिश के आरोप नहीं थे। इन पर साजिश में मुकदमा चलाने के लिए सीबीआई को लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी और अंत में सुप्रीम कोर्ट के 19 अप्रैल 2017 के आदेश के बाद 30 मई 2017 को अयोध्या की विशेष अदालत ने उन पर भी साजिश के आरोप तय किए और सारे अभियुक्तों पर एक साथ संयुक्त आरोपपत्र के मुताबिक एक जगह लखनऊ की विशेष अदालत में ट्रायल शुरू हुआ।
रोजाना सुनवाई के आदेश : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 8 दिसंबर 2011 को रायबरेली के मुकदमे की साप्ताहिक सुनवाई का आदेश दिया था। मामले में गति सुप्रीम कोर्ट के रोजाना सुनवाई के आदेश से आई। इसके बाद भी मुकदमा दो साल में नहीं निबटा और सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई कर रहे जज के आग्रह पर 3 बार समय सीमा बढ़ाई। 19 जुलाई 2019 को 9 महीने और 8 मई 2020 को 4 महीने बढ़ाकर 31 अगस्त तक का समय दिया और अंत में तीसरी बार 19 अगस्त 2020 को एक महीने का समय और बढ़ाते हुए 30 सितंबर तक फैसला सुनाने की तारीख तय हुई।
फैसले को देखते हुए कड़ी सुरक्षा : फैसले को लेकर अयोध्या जिला प्रशासन भी अलर्ट पर है। उच्च न्यायालय के पुराने परिसर के आसपास सुरक्षा एवं कानून-व्यवस्था को ध्यान में रखते यातायात डायवर्ट कर यहां वाहनों को प्रतिबंधित किया गया है। पुलिस सादी वर्दी में भी तैनात रहेगी।