Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

पद्मावती विवाद, यहां दफन है अलाउद्दीन खिलजी

हमें फॉलो करें पद्मावती विवाद, यहां दफन है अलाउद्दीन खिलजी
नई दिल्ली , गुरुवार, 23 नवंबर 2017 (14:27 IST)
नई दिल्ली। जमाने भर में उसके नाम पर बवाल मचा है, लेकिन उसकी कब्र के करीब से लोगों का हुजूम खामोशी से गुजर जाता है। कब्र के चारों ओर लोग खड़े होकर दिल्ली सल्तनत के बिखरे पन्नों के साथ सेल्फी लेने में मशगूल हैं,  लेकिन किसी को खबर नहीं कि वो सामने ही अलाउद्दीन खिलजी अपनी कब्र में सोया हुआ है। संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती को लेकर देशभर में हो रहे हो हल्ले के बीच अलाउद्दीन खिलजी फिर से सुर्खियों में है।
 
दक्षिणी दिल्ली में एक इलाका है महरौली और इसी में कुतुब मीनार है। मामलुक वंश के कुतुबुद्दीन ऐबक ने इस विशाल मीनार की आधारशिला रखी थी। कुतुब मीनार को देखने देश परदेस से हजारों लोग रोजाना आते हैं।
 
कुतुब मीनार से सटे परिसर में अलाउद्दीन खिलजी का मदरसा है। मदरसे के बाहर पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की ओर से एक पत्थर लगा है जिस पर कुछ यूं लिखा है, 'ये चतुर्भुजीय अहाता जो ऊंची दीवारों से घिरा है, यह मूल रूप से एक मदरसा था जिसका प्रवेश द्वार पश्चिम में है। इसका निर्माण पारंपरिक तालीम देने के लिए अलाउद्दीन खिलजी (ईसवी 1296-1316 ईसवी) द्वारा करवाया गया था। अहाते के दक्षिणी हिस्से के बीच में शायद खिलजी का मकबरा है।
 
मदरसे के साथ ही मकबरे के चलन का यह हिंदुस्तान में पहला नमूना है। यह शायद सलजुकियान रवायत से मुत्तासिर है। दोपहर होने को है..... उधर खिलजी अपनी कब्र में आराम फरमा रहा है और बगल से स्कूली बच्चे एक दूसरे का हाथ पकड़े जा रहे हैं। ढह चुकी इमारतों और पत्थरों के बीच से गुजरते ये बच्चे दक्षिणी दिल्ली के ही जल विहार इलाके के प्राइमरी स्कूल से आए हैं।
 
बच्चों को नहीं मालूम कि किसकी कब्र है। उनके साथ चल रही उनकी मास्टरनी साहिबा को भी इल्म नहीं है कि उस कमरे के बीचों बीच कौन इतनी बेफिक्री से सोया हुआ है। जब उन्हें बताया गया कि ये पद्मावती वाले अलाउद्दीन खिलजी हैं तो वह कुछ हैरानी से कहती हैं, 'ओहो, अच्छा तो ये है वो?'
 
दिल्ली के इतिहास को अपने कदमों से नापने वाले स्तंभकार और आम आदमी के इतिहासकार आरवी स्मिथ से जब अल्लाउद्दीन खिलजी को लेकर बात हुई तो उन्होंने खिलजी का कुछ इस तरह बखान किया, 'अलाउद्दीन खिलजी औरतबाज नहीं था, जैसा कि पद्मावती फिल्म में उसे दिखाया गया है। पद्मावती फिल्म ने एक ऐसे बादशाह की छवि को बिगाड़ कर रख दिया है जिसने मंगोलों से हिंदुस्तान की हिफाजत की। अगर अलाउद्दीन खिलजी नहीं होता तो आज हिंदुस्तान की शक्ल कुछ और होती।
 
'दिल्ली दैट नो वन नोज' और 'दिल्ली : अननोन टेल्स ऑफ ए सिटी' जैसी किताबों के लेखक स्मिथ कहते हैं, खिलजी ने अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए चित्तौड़ पर आक्रमण किया था, पद्मावती को जीतने के लिए नहीं। चित्तौड़ के राजा रतनसिंह को हराने के बाद जब उसने रानी पद्मिनी की खूबसूरती के चर्चे सुने तो वह उत्सुकतावश उसे देखना चाहता था।' जैसा कि सब किस्सों कहानियों में सुनते आए हैं कि राजपूत रानी एक विशाल आईने के सामने आकर खड़ी हो गई और खिलजी ने उस आईने में केवल रानी पद्मिनी का अक्स देखा था।
 
स्मिथ कहते हैं कि खिलजी की मौत के करीब ढाई सौ साल बाद भक्तिकाल की निर्गुण प्रेमाश्रयी धारा के कवि मलिक मुहम्मद जायसी ने ‘पद्मावत’ की रचना की और उसे रोचक बनाने के लिए उसमें बहुत सी काल्पनिक बातें जोड़ी। फिल्म उसी काल्पनिक कहानी पर आधारित है।
 
वह इस आम धारणा को भी गलत बताते हैं कि अलाउद्दीन खिलजी के हाथों में पड़ने से बचने के लिए रानी पद्मावती ने जौहर किया था। वह राजपूत राजा रतन सिंह के जंग में हार जाने के बाद रवायत के चलते महल की बाकी महिलाओं के साथ चिता में कूद गई थी। लौह स्तंभ के पास खड़े एक गार्ड से जब खिलजी की दरगाह का पता पूछा तो उसने हाथ का इशारा किया लेकिन उन्हें यह नहीं पता कि उसमें क्या खास बात है। पता चलने पर उनके चेहरे पर हैरानी कुछ इस तरह की थी, 'अच्छा, ये वही अलाउद्दीन खिलजी है?'
 
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर राकेश बाताबयाल पद्मावती को लेकर छिड़े विवाद में कहते हैं कि इस विषय में इतिहासकारों के लिए कुछ बोलने की गुंजाइश ही नहीं बची है क्योंकि यह अभिव्यक्ति की आजादी, कलात्मकता और राजनीतिक बहस का रूप ले चुका है।
 
प्रोफेसर बाताबयाल कहते हैं, 'हिस्ट्री इज प्रोडक्शन ऑफ नॉलेज लेकिन आज देश में ऐसी ताकतें पैदा हो गई हैं जो इतिहास को नहीं मानतीं।' उनका कहना है कि इतिहास के ज्ञान के नाम पर जहालत इतनी है कि फिल्मों को ही इतिहास मान लिया जाता है। हमें यह समझना होगा कि फिल्म इतिहास नहीं है।
 
वह बताते हैं कि खिलजी दिल्ली का पहला ऐसा शासक था जिसने कालाबाजारी रोकने के लिए वस्तुओं के दाम तय किए और कीमतें घटाईं। साहूकारों की लूट खसोट को रोकने के लिए उन्होंने घोड़ों को दागने की प्रथा की शुरुआत की।
 
चाचा का हत्यारा अलाउद्दीन : इतिहास बताता है कि अलाउद्दीन खिलजी ने अक्टूबर 1296 को अपने चाचा जलालुद्दीन की हत्या धोखे से उस समय करवा दी थी जब वो उससे गले मिल रहे थे। उसने अपने सगे चाचा के साथ विश्वासघात कर खुद को सुल्तान घोषित कर दिया और दिल्ली में स्थित बलबन के लालमहल में अपना राज्याभिषेक 22 अक्टूबर 1296 को सम्पन्न करवाया।
 
दिल्ली के निजामुद्दीन बस्ती इलाके में स्थित बलबन का यह लाल महल भी ढह चुका है। घनी बस्ती के बीच लाल महल के निशान ढूंढ पाना मुश्किल है।
 
ओकिडा जापान से आई हैं। अपने मित्र के साथ खिलजी के मदरसे की गिरती हुई दीवारों को देख रही हैं लेकिन वह भी बेखबर हैं कि सामने ये किसकी कब्र है? कब्र को चारों ओर से दीवारों ने घेर रखा है। मकबरे के गुम्बद को वक्त के थपेड़े कब का उड़ा ले गए लेकिन बगल की एक दीवार पर किसी ने लिख दिया है, 'गुड्डू लव्स रिंकी।' मदरसे के कोनों में कई ओर जोड़े खड़े हैं। 'अबे, औरंगजेब ने बनवाई थी कुतुब मीनार।'
 
पास से कुछ बड़े स्कूली बच्चे एक दूसरे के कंधे पर हाथ रखे जा रहे हैं। यह सुनकर खिलजी को बेहद सुकून मिला होगा कि जब कुतुब मीनार जैसी विशाल मीनार को बनवाने का सेहरा मुगल शासक औरंगजेब के सिर बांधा जा रहा है तो ऐसे में उसका गुमनाम रहना ही बेहतर होगा। (भाषा) 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

अब नरेन्द्र मोदी लेंगे गुजरात में ताबड़तोड़ सभाएं