Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

अक्षय वेंकटेश : बचपन से सुलझाता रहा गणित की गूढ़ उलझनें, 36 वर्ष की आयु में मिला 'गणित का नोबेल'

हमें फॉलो करें अक्षय वेंकटेश : बचपन से सुलझाता रहा गणित की गूढ़ उलझनें, 36 वर्ष की आयु में मिला 'गणित का नोबेल'
, रविवार, 5 अगस्त 2018 (15:12 IST)
नई दिल्ली। यदि कोई बच्चा 12 वर्ष की आयु में पीएचडी के किसी छात्र के विश्लेषणात्मक सार को समझ ले, 13 साल की उम्र में हाईस्कूल की पढ़ाई कर ले, 16 साल में गणित में स्नातक हो जाए और 20 वर्ष में पीएचडी कर जाए तो उसे 36 वर्ष की आयु में 'गणित का नोबेल' समझा जाने वाला प्रतिष्ठित 'फील्ड्स मेडल' मिलने पर किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए।
 
भारत में जन्मे ऑस्ट्रेलियाई गणितज्ञ अक्षय वेंकटेश ने असंभव सी लगने वाली ये तमाम उपलब्धियां हासिल की हैं। हालांकि उन्हें जानने वाले लोगों का मानना है कि असाधारण प्रतिभा के धनी अक्षय गणित की गूढ़ पहेलियों को सुलझाने में दुनिया के कुछ सबसे प्रसिद्ध शोधकर्ताओं में शामिल होने के रास्ते पर हैं। उन्हें गणित के क्षेत्र में असाधारण योगदान के लिए यह पुरस्कार प्रदान किया गया है।
 
अक्षय का जन्म दिल्ली में हुआ और जब वे 2 वर्ष के थे तो उनके माता-पिता उन्हें लेकर ऑस्ट्रेलिया के पर्थ शहर चले गए। यहीं रहते हुए अक्षय की प्रारंभिक शिक्षा हुई और उन्होंने 13 वर्ष की उम्र में यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया से स्नातक के पाठ्यक्रम की पढ़ाई शुरू करने से पहले ही 11 और 12 वर्ष की आयु में हाईस्कूल छात्र के तौर पर गणित ओलंपियाड में बहुत से पदक अपने नाम कर लिए थे।
 
3 साल में स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद अक्षय ने प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी से पीएचडी किया और इस दौरान क्ले मैथमैटिक्स इंस्टीट्यूट में क्ले रिसर्च फैलो हो गए। 36 वर्ष के अक्षय स्टैनफोर्ड में प्रोफेसर हैं। गणित के अपने सफर में आगे बढ़ते हुए अक्षय ने बहुत से अवॉर्ड अपने नाम किए हैं। इनमें इंफोसिस पुरस्कार, रामानुजम पुरस्कार और ओस्ट्रोवस्की शामिल हैं। फील्ड्स पुरस्कार इन सब में श्रेष्ठ है, क्योंकि इसे 'गणित का नोबेल' कहा जाता है।
 
पुरस्कार की स्थापना कनाडा के गणितज्ञ जॉन चार्ल्स फील्ड्स के नाम पर वर्ष 1936 में की गई थी। इनाम के तौर पर विजेता को 15,000 कनाडाई डॉलर की राशि दी जाती है। हर 4 साल में एक बार दिए जाने वाले इस पुरस्कार के बारे में एक दिलचस्प तथ्य यह है कि यह 40 वर्ष से कम उम्र के गणितज्ञों को ही दिया जाता है।
 
अक्षय के प्रोफेसर, उनके साथ काम करने वालों और उनके साथियों का कहना है कि वे किसी भी पेचीदा विषय का बड़ी आसानी से अध्ययन करके उसका सार निकाल लेते हैं। अक्षय की मां श्वेता वेंकटेश कम्प्यूटिंग साइंस की प्रोफेसर हैं और डायकिन यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर पैटर्न रिकगनिशन और डाटा एनालिटिक में निदेशक हैं। वे एक बार 12 साल के अक्षय को लेकर वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर चेरिल प्रेगेर के पास गईं। वे प्रोफेसर प्रेगेर से बात कर रही थीं और नजदीक ही बैठे अक्षय की नजर उनके पीछे ब्लैकबोर्ड पर थी, जिस पर पीएचडी के एक छात्र के विश्लेषण का सार लिखा था।
 
अक्षय कुछ देर तक ब्लैक बोर्ड पर लिखे विश्लेषण को पढ़ता रहा और उसके बाद उसने प्रोफेसर प्रेगेर से उसके बारे में पूछना शुरू किया। प्रोफेसर प्रेगेर को पहले तो लगा कि यह बच्चा इस गूढ़ विषय तो नहीं समझ पाएगा, लेकिन जब अक्षय ने अनुरोध किया तो उन्होंने उसे समझाना शुरू किया। वे यह देखकर हैरान रह गए कि अक्षय उस सार को फौरन समझ गया। इतने छोटे बच्चे का इस तरह से इतने गूढ़ विश्लेषण को इतनी आसानी से समझ लेना अद्भुत था।
 
वेंकटेश की पत्नी सारा पाडेन संगीतकार हैं और उनकी 2 बेटियां हैं। बेटियों के साथ उनके जुड़ाव का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हाल ही में उन्होंने अपने एक साक्षात्कार में कहा था कि बेटियों के बाल बनाना गणित की गुत्थियों को सुलझाने से कहीं ज्यादा मुश्किल है। (भाषा)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

राजस्थान में चुनाव के बाद तय होगा मुख्यमंत्री, राहुल के नेतृत्व में लड़ा जाएगा चुनाव