अनुच्छेद 370 की विदाई के बाद यह भी कश्मीर का एक नया सच है

सुरेश एस डुग्गर
इस पर तर्क-वितर्क हो सकते हैं कि संविधान के अनुच्छेद 370 की कश्मीर से विदाई के बाद कश्मीर सच में नया कश्मीर बन चुका है। धरातल पर देखें तो अधिकतर वे ही प्रोजेक्ट पूरे होते दिख रहे हैं जो पिछली सरकारों द्वारा चालू किए गए थे।

हिंसा में कमी तो आई पर टारगेट किलिंग का माहौल पैदा हो गया। प्रतिदिन 51 हजार करोड़ के निवेश के दावे भी हैं। पर वे अभी तक प्रस्ताव तक ही सीमित नजर आते थे।

अनुच्छेद 370 और 35-ए दुनियाभर के गैर कश्मीरियों को प्रदेश में जमीन जायदाद लेने से रोकता था। और अब जबकि यह रूकावट दूर हो चुकी है, पौने तीन साल के अरसे में मात्र 34 लोगों द्वारा संपत्तियां खरीदने को बड़े तीर के समान पेश किया जा रहा है।

पांच अगस्त 2019 को राज्य के दो टुकड़े करने और उसकी पहचान खत्म किए जाने की कवायद के बाद शायद वैसा नहीं हुआ जिसकी उम्मीद केंद्र सरकार ने अनुच्छेद को हटाते समय रखी थी।

कुछ इसे दांव उल्टा पड़ जाने की भी संज्ञा देते थे। विकास के जो भी दावे हैं वे आंकड़ों की बाजीगरी से ज्यादा नजर नहीं आते। पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के शब्दों में वर्ष 2013 से लेकर 2017 तक राष्ट्रीय स्तर पर जीवन प्रत्याशा 69 थी जबकि जम्मू कश्मीर में यह दर 74.1 थी। और केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद इसकी तुलना उत्तर प्रदेश जैसे उस राज्य से की जाने लगी जो सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों में सबसे ऊपर था।

मात्र एक ही ऐसा उदाहरण नहीं था जिससे यह लगे कि अनुच्छेद 370 लागू होने के कारण जम्मू कश्मीर के लोगों को जीवन यापन बहुत बुरा था। अगर डाक्टरों की संख्या की बात की जाए तो 2019 तक जम्मू कश्मीर देश में सातवें स्थान पर था। अर्थात जम्मू कश्मीर में 3060 लोगों के लिए एक डाक्टर उपलब्ध था। यही नहीं गरीबी के मामले में भी जम्मू कश्मीर की स्थिति बहुत अच्छी थी जहां गरीबी सूचकांक 10.4 प्रतिशत था, जबकि छत्तीसगढ़ में वर्ष 2011-12 में यह 39.9 परसेंट था।

ऐसे और भी कई उदाहरण हैं जिनके आधार पर यह कहा जा सकता था कि जम्मू कश्मीर में विकास न होने का दावा धरातल से परे था।

और अब जबकि अनुच्छेद 370 के बाद जिस विकास की बात की जा रही है उनमें उपरोक्त आंकड़ों में कोई परिवर्तन ही नहीं हुआ है। पर इतना जरूर था कि जिस बनिहाल, नाशरी, काजीगुंड तथा जोजिला टनलों समेत कई अन्य प्रोजेक्टों को पूरा करने का श्रेय लिया जा रहा है, उनके प्रति सच्चाई यह थी कि इन सबकी शुरूआत कांग्रेस काल में हुई थी और उद्घाटन समारोह सिर्फ भाजपा सरकार द्वारा किए जा रहे हैं।

ऐसे ही दावे 370 के बाद कश्मीर को नया कश्मीर बनाने के प्रति जो किए गए हैं उनमें कश्मीरी पंडितों की वापसी का दाव भी सबसे प्रमुख है।

सरकारी दावा कहता है कि 2105 कश्मीरी पंडित इस अरसे में कश्मीर लौटे। पर साथ ही वे इस सच्चाई को भी उगलते थे कि यह संख्या उन कश्मीरी पंडितों की है जो सरकारी नौकरी मिलने के बाद लौटे हैं। उन्हें दी गई सरकारी नौकरियों में यह शर्त बांधी गई थी कि उन्हें कश्मीर में जाकर रहना होगा और उनके इसलिए सुरक्षित स्थानों पर कालोनी अर्थात फ्लैटस तैयार किए गए हैं।

कश्मीर में आतंकवाद फैलने के बाद 1990 में कश्मीरी पंडितों ने पलायन आरंभ किया तो करीब पंडितों के 3 हजार परिवार कश्मीर में ही टिके रहे। पर समय के साथ साथ आतंक के खतरे, पेट पालने की मजबूरी के चलते बाकी परिवारों ने भी पलायन कर लिया और अब गैर सरकारी तौर पर 808 कश्मीरी पंडितों के परिवार अपने मुस्लिम पड़ौसियों के सहारे साथ रह रहे हैं। हालांकि 3800 के करीब कश्मीरी पंडित प्रधानमंत्री पैकेज के तहत घाटी वापस लौटे पर सभी सरकारी नौकरी के लिए और कोई भी अपने गांव नहीं गया बल्कि उन्हें सुरक्षा में फ्लैटस में रखा गया है।

इसमें से 1700 धारा 370 की विदाई से पहले ही लौट चुके थे। धारा 370 की विदाई के बाद कश्मरी पंडितों के  वापस लौटने का दावा ये आंकड़े और तथ्य खुद ही औंधे मुंह गिरा देते थे।

ऐसा ही कुछ हाल कश्मीर में निवेश को लेकर है। केंद्र सरकार लोकसभा में भी दावा कर चुकी है कि 51000 करेाड़ के प्रस्ताव मिले हैं जो सरकार की नजर में हकीकत में बदलने पर हजारों युवाओं को रोजगार प्रदान करेंगें। पर इन प्रस्तावों की कड़वी सच्चाई यह है कि इस साल 3 फरवरी तक कोई भी प्रस्ताव हकीकत में नहीं बदला था जिससे यह लगता की वाकई कश्मीर नया कश्मीर बन गया है।

इतना जरूर था कि करीब 900 करोड़ का निवेश स्थानीय बिजनेस घरानों द्वारा इस अवधि में जरूर किया गया था, पर उसमें से अधिकतर जम्मू संभाग में हुआ था। यह बात अलग है कि कश्मीर में निवेश के लिए यूएई ने भी अपनी रूचि दिखाई है जिस पर कश्मीरियों व अलगाववादियों को कोई एतराज भी नहीं है, क्योंकि सयुंक्त अरब अमीरात के साथ कश्मीरियों के संबंध फिलहाल दोस्ताना ही हैं।

अनुच्छेद 370 को हटाने के लिए सबसे बड़ा हौव्वा देश के अन्य लोगों द्वारा जमीन जायदाद नहीं खरीद पाने का था। इस साल 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 की विदाई को 3 साल पूरे हो जाएंगें और अभी तक मात्र 34 लोग ही संपत्तियां खरीद पाए हैं।

इनमें एक दो संपत्तियां ही बड़ी मानी जा रही हैं बाकी छोटे स्तर के घर हैं जो जम्मू संभाग में ही खरीदे गए हैं। मात्र एक संपत्ति कश्मीर के गांदरबल में किसी प्रवासी को बेची गई है।

दरअसल कश्मीर में हिंसा के स्तर में कमी आने के बावजूद संपत्ति बेचने और खरीदने का डर अभी भी कश्मीर में बना हुआ है। आतंकी खौफ सबसे ज्यादा इसलिए है क्योंकि स्थानीय कश्मीरी कभी भी इसके लिए राजी नहीं होता है। हालत तो यह है कि वे जम्मूवासियों को भी जमीन जायदाद बेचने के लिए आज तक कभी राजी नहीं हुए हैं जबकि जम्मू में वे कई कालोनियों का निर्माण कर चुके हैं। ऐसे में सिर्फ जम्मू संभाग ही देश के अन्य नागरिकों को संपत्तियों में निवेश करने का न्यौता दे पाया है जिसे नया कश्मीर के तौर पर निरूपित किया जा रहा है।
धारा 370 की विाइर्द के बाद इतना जरूर था कि पत्थरबाज लापता हो गए और हिंसा में कमी आ गई। पर इसका श्रेय सिर्फ धारा 370 की विदाई को नहीं दिया जा सकता।

दरअसल पाकिस्तान के अपने हालात बहुत खराब हो चुके हैं। एलओसी और इंटरनेशनल बार्डर पर घुसपैठ ना के बराबर बना दी गई है। उस पार से मदद मिलनी रूक सी गई है। ऐसे में बचे खुचे आतंकी हथियारों की कमी के चलते आसानी से सुरक्षाबलों के हाथों मारे जा रहे हैं। पर बावजूद इसके वे टारगेट किलिंग को अंजाम देकर नया कश्मीर को रक्तरंजित करने में जरूर जुटे हुए हैं जहां प्रवासी नागरिक ही सबसे प्रमुख निशाने पर हैं।

ऐसा कर आतंकी प्रवासी नागरिकों व टूरिस्टों के कदमों को रोकने का अथक प्रयास कर रहे हैं। पर वे इसमें नाकाम ही साबित हो रहे हैं।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

जरूर पढ़ें

tirupati laddu पर छिड़ी सियासी जंग, पशु चर्बी के दावे पर तेदेपा-वाईएसआरसीपी आमने-सामने

Kolkata Doctor Case : जूनियर डॉक्‍टरों ने खत्‍म की हड़ताल, 41 दिन बाद लौटेंगे काम पर

कटरा चुनावी रैली में कांग्रेस-नेकां पर गरजे PM मोदी, बोले- खून बहाने के पाकिस्तानी एजेंडे को लागू करना चाहता है यह गठबंधन

Mangaluru : 2 सिर और 4 आंख वाला दुर्लभ बछड़ा पैदा हुआ, देखने के लिए उमड़ा हुजूम

वन नेशन वन इलेक्शन में दक्षिण भारत पर भारी पड़ेगा उत्तर भारत?

सभी देखें

नवीनतम

Ground Report : तिरुपति के लड्डू प्रसाद में पशु चर्बी वाला घी, कमीशन के लालच में आस्था से खिलवाड़, क्या है सच

tirupati laddu पर छिड़ी सियासी जंग, पशु चर्बी के दावे पर तेदेपा-वाईएसआरसीपी आमने-सामने

बिहार में कोई कानून-व्यवस्था नहीं, नीतीश कुमार विफल हो गए : लालू यादव

अयोध्या : CM योगी ने किया 1005 करोड़ की योजनाओं का लोकार्पण, अखिलेश यादव पर साधा निशाना

Kolkata Doctor Case : जूनियर डॉक्‍टरों ने खत्‍म की हड़ताल, 41 दिन बाद लौटेंगे काम पर

अगला लेख
More