आखिर कैसे अखाड़े की मिट्टी से विदेशी मेट पर आ गई भारतीय कुश्ती?
भारतीय पहलवान नए सिरे से सीख रहे कुश्ती की तकनीक और टाइमिंग, इंदौर में मेट में बदल रहे अखाड़े
दुनिया बदली तो हेल्थ और फिटनेस से जुड़ी कई चीजें भी बदल गईं, यहां तक कि व्यायाम करने के तौर- तरीके भी बदल गए और अखाड़ों की जगह जिम आ गए। ऐसे में कुश्ती भी अब बदल गई है। वो दंगल से रैसलिंग तक आ गई है। पहले कुश्ती अखाड़े की मिट्टी पर होती थी अब वो मिट्टी से सीधे विदेशी मेट पर आ गई।
कुश्ती एक समय में भारत में बहुत लोकप्रिय थी, भारत में जीतने वाले पहलवानों को कई तमगों से नवाजा जाता था, सालों तक उनका नाम चलता था। लेकिन बहुत दुखद बात है कि अब विदेशी तकनीक और तरीका कुश्ती पर हावी हो गया है। मेट आने के बाद भारतीय पहलवानों को भी मिट्टी की कुश्ती छोड़ कर मेट पर आना पड़ रहा है, लेकिन मेट की प्रतियोगिता में अपना दांव दिखाने में उन्हें खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
आइए जानते हैं आखिर कैसे कुश्ती का भारतीय संस्करण अपग्रेड होकर मिट्टी के अखाड़ों से निकलकर विदेशी मेट पर आ गई और वो अब रैसलिंग बन गई है। यह कुश्ती का अपग्रेडेशन है या मजबूरी में भारतीय पहलवानों को मेट पर शिफ्ट होना पड़ा, इसकी की पड़ताल करने के लिए हमने इसकी एक रिपोर्ट तैयार की है। वेबदुनिया ने अखाड़ों और कुश्ती से जुड़े कुछ लोगों से चर्चा कर जाना कि आखिर कैसे यह बदलाव आया। यह फायदेमंद है या नुकसानदायक।
मिट्टी से मेट पर कुश्ती : एक साजिश है
चंद्रपाल उस्ताद व्यायामशाला के संचालक मनोज सोमवंशी ने बताया कि पिछले कुछ साल में कुश्ती का पैटर्न भी बदल गया है, अब कुश्तियां मिट्टी में न होकर मेट पर होने लगी हैं। इसे अखाड़ों से जुड़े लोग एक अंतरराष्ट्रीय साजिश बताते हैं। वो कहते हैं कि इतना ही नहीं, लाल मिट्टी का बहुत महत्व है, इस पर कुश्ती लड़ने से कई तरह की बीमारियां नहीं होती हैं। वहीं, हम दुनिया में कुश्ती और शस्त्र कला में सबसे आगे थे, लेकिन एक रणनीति और साजिश के तहत मेट आ गया। भारतीय पहलवान मिट्टी में खेलने के अनुभवी हैं, मेट पर वो ग्रिप नहीं बनती है, न ही हमारी प्रैक्टिस है मेट वाली, इसलिए कई बार मेट पर हमारे पहलवान गच्चा खा जाते हैं। लेकिन समय की मांग के चलते हमें भी मेट कुश्ती लाना पड़ी। मेट आने के बाद हमारे पहलवानों की इंटरनेशनल लेवल पर भागीदारी भी कम हुई है। इंदौर में 40 साल पहले करीब 100 अखाड़े हुआ करते थे, लेकिन अब 15 से 20 ही रह गए हैं, जो ठीक-ठाक तरीके से चल रहे हैं। सरकार को इस बारे में सोचना चाहिए।
इसलिए मिट्टी से मेट पर हुए शिफ्ट
पहलवान अर्जुन ठाकुर लंबे समय तक अखाड़े में कुश्ती लड़ते थे, अखाड़े का ही व्यायाम करते थे, वे कई कुश्तियां लड़ चुके हैं, लेकिन अब उन्हें समय की मांग के साथ मिट्टी से मेट पर शिफ्ट होना पड़ा। उन्होंने बताया कि मिट्टी में इंफेक्शन का खतरा नहीं रहता है। मेट पर पसीना आता है। दोनों की तकनीक और दावपेंच अलग हैं। मेट पर ताकत के साथ ही तकनीक और टाइमिंग का भी ध्यान रखना होता अभी भारतीय पहलवान मेट की कुश्ती को लेकर अभ्यस्त हो रहे हैं।
मेट में असीमित अवसर, मिट्टी में नहीं
विजय वर्मा मेट की कुश्ती के कोच हैं,पहले वे अखाड़े में कुश्ती सिखाते थे अब मेट पर रैसलिंग की कोचिंग देते हैं। वे बताते हैं कि मेट पूरी तरह से तकनीक का काम है, स्पीड और फूर्ति का फर्क है। वहीं अखाड़े की कुश्ती में अवसर सीमित है, ज्यादा से ज्यादा केसरी बन जाएंगे, लेकिन मेट में इंटरनेशनल स्तर पर जा सकते हैं। सरकारी नौकरी के भी अवसर है। ऐसे में अब मेट की कुश्ती में शिफ्ट होना पड़ रहा है। मेरे पास करीब 30 बच्चे हैं जो रैसलिंग सीख रहे हैं।
रैसलिंग को सरकार का साथ
इंदौर की स्थिति को देखा जाए तो जहां जहां अखाड़े चलते हैं वहां मैट की व्यवस्था भी की गई है। क्योंकि बच्चों का रूझान मेट की रैसलिंग की तरफ ही है। दूसरी तरफ परंपरागत कुश्ती को सरकार या राज्य सरकार की तरफ से कोई सुविधा आदि नहीं मिलती, जबकि रैसलिंग के लिए सरकार मेट मुहैया कराती है। दूसरा कारण है कि इसमें असीमित संभावनाएं हैं, एक रैसलर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जाकर खेल सकता है, जबकि कुश्ती में ऐसा नहीं है। ज्यादातर ठंडे देशों कुश्ती मेट पर ही हो रही है, क्योंकि ठंडी जलवायू होने की वजह से वहां मिट्टी में कुश्ती संभव नहीं हो पाती है।
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इंदौर में 40 साल पहले करीब 100 अखाड़े हुआ करते थे
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अब सिमटकर 15 से 20 ही रह गए हैं
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कुश्ती पर दंगल और सुल्तान जैसी फिल्में बनी हैं, जिससे खूब कमाई हुई
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लेकिन हकीकत में अखाड़ों में मायूसी पसरी हुई है
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रैसलिंग के लिए सरकार की तरफ से मेट की मदद मिलती है, लेकिन कुश्ती के लिए कोई सुविधा नहीं
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भारतीय पहलवान नए सिरे से सीख रहे तकनीक और टाइमिंग का खेल