Loksabha Election 2024 News: लोकसभा चुनाव 2024 के रण से पहले भारत में 'महाभारत के युद्ध' के पूर्व जैसे हालात हैं। दोनों ही पक्ष- सत्ता पक्ष और विपक्ष अपनी-अपनी ताकत को बढ़ाने के लिए खेमेबंदी में जुट गए हैं। इस बीच, दोनों ने ही अपनी-अपनी ताकत का प्रदर्शन किया है। विपक्ष में जहां 26 दल एकजुट दिखाई दिए, वहीं सत्ता पक्ष के साथ 39 दल खड़े दिखाई दिए। आने वाले समय में इन आंकड़ों में घट-बढ़ भी हो सकती है। वहीं कई ऐसे दल भी हैं, जिन्होंने खुद को तटस्थ रखा हुआ है। हालांकि इस बार जो राजनीतिक माहौल दिखाई दे रहा है, उसके अनुसार लोकसभा चुनाव के बाद यही न्यूट्रल पार्टियां 'किंगमेकर' की भूमिका में दिखाई दें तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
कितना ताकतवर विपक्षी खेमा : विपक्षी खेमे में कुल 26 दल दिखाई तो दे रहे हैं, लेकिन इनकी अपनी-अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं। विपक्षी खेमे में शामिल हर बड़ा नेता प्रधानमंत्री बनने का मंसूबा मन में पाले हुए है। हालांकि वर्तमान लोकसभा की बात करें तो सबसे बड़ा दल कांग्रेस है। कांग्रेस के पास इस समय 53 लोकसभा सीटें हैं। दूसरे नंबर पर एमके स्टालिन की पार्टी डीएमके है, जिसके पास 24 सांसद हैं। तृणमूल कांग्रेस और जनता दल (यूनाइटेड) के पास क्रमश: 23 और 16 सांसद हैं।
इनके अलावा इस खेमे में कोई ऐसा दल नहीं है, जिसका आंकड़ा दहाई में हो। आगामी चुनाव में अखिलेश यादव जरूर यूपी में अपनी सीटें बढ़ा सकते हैं। शिवसेना और एनसीपी दो फाड़ हो चुकी हैं। ऐसे में अगले चुनाव में उनकी क्या स्थिति होगी अभी से कहना मुश्किल है। इन दोनों ही दलों का बड़ा हिस्सा भाजपा यानी एनडीए के खेमे में शामिल हो चुका है।
विपक्षी दलों के साथ सबसे बड़ी मुश्किल है, ये अपने-अपने राज्यों में आमने-सामने चुनाव लड़ते हैं। बंगाल में टीएमसी और कांग्रेस-वामदल आमने सामने होते हैं तो दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ते हैं। यही स्थिति उत्तर प्रदेश में होती है, जहां सपा और कांग्रेस चुनावी प्रतिद्वंद्वी होते हैं।
यदि ये दल लोकसभा चुनाव में एकजुट हो जाते हैं तो निश्चित ही भाजपा की सीटें कम कर सकते हैं और पूर्व की स्थिति में चुनाव लड़ते हैं तो इनके गठबंधन का कोई फायदा होता दिखाई नहीं देता। तमिलनाडु, बिहार और महाराष्ट्र में जरूर कांग्रेस का गैर-भाजपाई पार्टियों के साथ गठबंधन है।
यदि भारत के नक्शे पर देखें तो विपक्ष काफी मजबूत दिखाई देता है, लेकिन यह बिखरा-बिखरा है। जैसा कि जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा कि विपक्षी दलों को हर जगह से अपना एक ही उम्मीदवार उतारना चाहिए, यदि ऐसा विपक्ष कर पाता है तो वह न सिर्फ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बल्कि समूचे एनडीए को तगड़ी चुनौती दे सकता है।
भाजपा ही एनडीए : रही बात सत्ता पक्ष की तो भाजपा ही एकमात्र ऐसा दल है, जिसके पास 303 सीटें हैं, जो कि बहुमत (273 सीट) से काफी ज्यादा है। इसके अलावा एनडीए में शामिल सभी दल ऐसे हैं, जिनकी सीटों की संख्या 10 से कम है। इसके अलावा भाजपा को बिहार में चिराग पासवान और उनके चाचा पशुपति पारस को साधना काफी मुश्किल होगा। फिलहाल दोनों एनडीए में हैं, लेकिन चुनाव आते-आते स्थितियां बदल भी सकती हैं।
महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी का बड़ा हिस्सा एनडीए के साथ है, लेकिन लोकसभा चुनाव के लिए जब सीटों के बंटवारे की नौबत आएगी तब सभी को साधना भाजपा के लिए टेढ़ी खीर होगा। अजित पवार गुट की एंट्री के बाद शिंदे गुट में तो अभी से असंतोष दिखाई दे रहा है। यह असंतोष लोकसभा चुनाव में नुकसान भी पहुंचा सकता है।
यदि एनडीए की ताकत का आकलन करें तो इसमें शामिल 24 दल ऐसे हैं, जिनके पास एक भी लोकसभा सीट नहीं है। 7 पार्टियों के पास सिर्फ 1-1 लोकसभा सीट है, जबकि 2 दलों के पास 2-2 सीटें हैं। ऐसे में यह कहना जल्दबाजी होगी कि इस तरह के दल लोकसभा चुनाव में भाजपा को फायदा पहुंचा पाएंगे।
इस बार मोदी सरकार को महंगाई के साथ एंटी-इनम्बेंसी का भी सामना करना पड़ेगा। महंगाई आगामी चुनाव में बड़ा मुद्दा हो सकता है। रसोई गैस, पेट्रोल से लेकर खाने-पीने की सभी वस्तुओं के दाम आसमान पर हैं। हालांकि यह इस बात पर भी निर्भर होगा कि विपक्ष इस मुद्दे को किस तरह अपने पक्ष में भुनाएगा।
ये बनेंगे किंगमेकर? : राजनीतिक गलियारों में जिस तरह की अटकलें हैं, उससे लगता है कि इस बार भाजपा बहुमत के आंकड़े से पीछे रह सकती है। यदि ऐसा हुआ तो अभी तटस्थ दिखाई दे रहे बीजद, वाएसआर कांग्रेस और बीआरएस जैसे क्षेत्रीय दल किंगमेकर की भूमिका में आ सकते हैं।
वर्तमान में वायएसआर कांग्रेस के पास 22, बीजद के पास 12 और बीआरएस के पास 9 लोकसभा सीटें हैं। हालांकि यह उस समय की परिस्थितियों पर भी काफी हद तक निर्भर करेगा। लेकिन, चुनाव से पहले दोनों ही पक्षों ने खेमेबंदी शुरू कर यह संकेत तो दे दिए हैं मुकाबला रोमांचक होने जा रहा है।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala