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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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रूप चौदस पर क्यों करते हैं अभ्यंग स्नान, क्या है कथा?

हमें फॉलो करें Roop Chaudas
What is abhyanga massage: दिवाली के पांच दिनी उत्सव में नरक चतुर्दशी उत्सव का दूसरा दिन होता है। इस दिन को रूप चौदस कहते हैं। इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने का महत्व है, जिसे अभ्यंग स्नान कहते हैं। अभ्यंग स्नान क्यों करते हैं या है इसके पीछे की कथा?
 
अभ्यंग स्नान समय : 12 नवंबर 2024 को  सुबह 05:28 से 06:41 के बीच।
 
कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी तिथि 2023:
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ- 11 नवम्बर 2023 को दोपहर 01:57 से।
चतुर्दशी तिथि समाप्त- 12 नवम्बर 2023 को दोपहर 02:44 तक।
 
नोट : चूंकि इस दिन प्रात: स्नान करने का महत्व है इसलिए 12 नवंबर को यह त्योहार मनाया जाएगा। लेकिन जो लोग माता कालिका, हनुमानजी और यमदेव की पूजा करने जा रहे हैं वे 11 नवंबर को यह पर्व मनाएंगे।
 
रूप चौदस पर क्यों करते हैं अभ्यंग स्नान? 
मान्यता है कि अभ्यंग स्नान से सौंदर्य और ऐश्‍वर्य की प्राप्ति होती है और सभी तरह के संकट दूर होते हैं।
 
अभ्यंग स्नान की कथा क्या है?
  • कहते हैं कि इस दिन श्रीकृष्ण और सत्यभामा ने मिलकर नरकासुर का वध किया था।
  • वध करने के बाद उन्होंने तेल से स्नान करके शरीर और मन को शुद्ध किया था। तभी से यह प्रथा चली आ रही है।
  • इस दिन इस यम पूजा, कृष्ण पूजा और काली पूजा होती है।
  • इस दिन पूजा करने से नरक से मुक्ति मिलती हैा।
  • नरक चतुर्दशी के दिन दिन संध्या काल में दीये के प्रकाश से अंधकार को प्रकाश पुंज से दूर कर दिया जाता है।
  • इसी वजह से नरक चतुर्दशी को छोटी दीपावली भी कहते हैं।
  • नरक चतुर्दशी का पूजन अकाल मृत्यु से मुक्ति, सौंदर्य और स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए किया जाता है।
  • नरक चतुर्दशी से पहले कार्तिक कृष्ण पक्ष की अहोई अष्टमी के दिन एक लोटे में पानी भरकर रखा जाता है।
  • नरक चतुर्दशी के दिन इस लोटे का जल नहाने के पानी में मिलाकर स्नान करने की परंपरा है।
  • मान्यता है कि ऐसा करने से नरक के भय से मुक्ति मिलती है।
  • प्रात: स्नान के बाद सूर्यदेव को अर्ध्य दिया जाता है। इससे सौंदर्य और ऐश्‍वर्य की प्राप्ति होती है।
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अभ्यंग स्नान क्या है?
सभी तरह के उबटन और तेल को लगाकर स्नान करना ही अभ्यंग स्नान करना है।
 
कैसे करते हैं अभ्यंग स्नान?
  • प्रात:काल सूर्य उदय से पहले अभ्यंग (मालिश) स्नान करने का महत्व है। 
  • इस दौरान तिल के तेल से शरीर की मालिश करनी चाहिए
  • उसके बाद अपामार्ग यानि चिरचिरा को सिर के ऊपर से चारों ओर 3 बार घुमाएं।
  • फिर उसको जल में मिलाकर उससे स्नान करें। 
  • उबटन लगाकर नीम, अपामार्ग यानी चिचड़ी जैसे कड़ुवे पत्ते डाले गए जल से स्नान करें। 
  • उक्त कार्य नहीं कर सकते हैं तो मात्र चंदन का लेप लगाकर सूख जाने के बाद तिल एवं तेल से स्नान किया जाता है।
  • स्नान करने के बाद दक्षिण दिशा में मुख करके हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना करें।
  • ऐसा करने से मनुष्य द्वारा अब तक किए गई सभी पापों का नाश होकर स्वर्ग का रास्ता खुल जाता है।
 

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