Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

गुरु नानक देवजी के अवतरण दिवस पर विशेष

हमें फॉलो करें Guru Nanak
गुरुनानक देवजी का अवतरण संवत्‌ 1469 में कार्तिक पूर्णिमा को माता तृप्ता देवीजी और पिता कालू खत्रीजी के घर श्री ननकाना साहिब में हुआ। उनकी महानता के दर्शन बचपन से ही दिखने लगे थे। 
 
उन्होंने बचपन से ही रूढ़िवादिता के विरुद्ध संघर्ष की शुरुआत कर दी थी, जब उन्हें 11 साल की उम्र में जनेऊ धारण करवाने की रीत का पालन किया जा रहा था। जब पंडितजी बालक नानकदेवजी के गले में जनेऊ धारण करवाने लगे तब उन्होंने उनका हाथ रोका और कहने लगे- 'पंडितजी, जनेऊ पहनने से हम लोगों का दूसरा जन्म होता है, जिसको आप आध्यात्मिक जन्म कहते हैं तो जनेऊ भी किसी और किस्म का होना चाहिए, जो आत्मा को बांध सके। आप जो जनेऊ मुझे दे रहे हो वह तो कपास के धागे का है जो कि मैला हो जाएगा, टूट जाएगा, मरते समय शरीर के साथ चिता में जल जाएगा। फिर यह जनेऊ आत्मिक जन्म के लिए कैसे हुआ? और उन्होंने जनेऊ धारण नहीं किया।' 
 
अपने अंदर झांके : अंतर मैल जे तीर्थ नावे तिसु बैंकुठ ना जाना/ लोग पतीणे कछु ना होई नाही राम अजाना, अर्थात सिर्फ जल से शरीर धोने से मन साफ नहीं हो सकता, तीर्थयात्रा की महानता चाहे कितनी भी क्यों न बताई जाए, तीर्थयात्रा सफल हुई है या नहीं, इसका निर्णय कहीं जाकर नहीं होगा। इसके लिए हरेक मनुष्य को अपने अंदर झांककर देखना होगा कि तीर्थ के जल से शरीर धोने के बाद भी मन में निंदा, ईर्ष्या, धन-लालसा, काम, क्रोध आदि कितने कम हुए हैं। 
 
सब ईश्वर के बंदे : एक बार कुछ लोगों ने नानक देवजी से पूछा- आप हमें यह बताइए कि आपके मत अनुसार हिंदू बड़ा है या मुसलमान। 
 
उन्होंने उत्तर दिया- अवल अल्लाह नूर उपाइया कुदरत के सब बंदे/ एक नूर से सब जग उपजया को भले को मंदे, अर्थात सब बंदे ईश्वर के पैदा किए हुए हैं, न तो हिंदू कहलाने वाला रब की निगाह में कबूल है, न मुसलमान कहलाने वाला। रब की निगाह में वही बंदा ऊंचा है जिसका अमल नेक हो, जिसका आचरण सच्चा हो। 
 
मां-बाद की सेवा करें : गुरुनानक देवजी जनता को जगाने के लिए और धर्म प्रचारकों को उनकी खामियां बतलाने के लिए अनेक तीर्थस्थानों पर पहुंचे और लोगों से धर्मांधता से दूर रहने का आग्रह किया। उन्होंने पितरों को भोजन यानी मरने के बाद करवाए जाने वाले भोजन का विरोध किया और कहा कि मरने के बाद दिया जाने वाला भोजन पितरों को नहीं मिलता। हमें जीते जी ही मां-बाप की सेवा करनी चाहिए। 
 
मन का मैल धोने की सीख : एक बार नानक जी ने तीर्थ स्थानों पर स्नान के लिए इकट्ठे हुए श्रद्धालुओं को समझाते हुए कहा- मन मैले सभ किछ मैला, तन धोते मन अच्छा न होई, अर्थात अगर हमारा मन मैला है तो हम कितने भी सुंदर कपड़े पहन लें, अच्छे-से तन को साफ कर लें, बाहरी स्नान, सुंदर कपड़ों से हम संसार को तो अच्छे लग सकते हैं मगर परमात्मा को नहीं, क्योंकि परमात्मा हमारे मन की अवस्था को देखता है। 
 
एक अन्य प्रसंग के अनुसार बड़े होने पर नानकदेवजी को उनके पिता ने व्यापार करने के लिए 20 रु. दिए और कहा- 'इन 20 रु. से सच्चा सौदा करके आओ। नानक देवजी सौदा करने निकले। रास्ते में उन्हें साधु-संतों की मंडली मिली। नानकदेवजी ने उस साधु मंडली को 20 रु. का भोजन करवा दिया और लौट आए। पिताजी ने पूछा- क्या सौदा करके आए? उन्होंने कहा- 'साधुओं को भोजन करवाया। यही तो सच्चा सौदा है।'

नानक जी ने लोगों को सदा ही नेक राह पर चलने की समझाइश दी। वे कहते थे कि कि साधु-संगत और गुरबाणी का आसरा लेना ही जिंदगी का ठीक रास्ता है। उनका कहना था कि ईश्वर मनुष्य के हृदय में बसता है, अगर हृदय में निर्दयता, नफरत, निंदा, क्रोध आदि विकार हैं तो ऐसे मैले हृदय में परमात्मा बैठने के लिए तैयार नहीं हो सकता है। अत: इन सबसे दूर रहकर परमात्मा का नाम ही हृदय में बसाया जाना चाहिए।
 
प्रस्तुति - राजश्री कासलीवाल

ALSO READ: जब गुरु नानक के आगे झुका बगदाद के शासक का सिर...

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

जानिए श्रीगणेश पूजा की प्रामाणिक विधि और सही सामग्री...