कालसर्प योग के लिए असरकारी है शिव गायत्री मंत्र
कालसर्प योग है तो नागपंचमी पर पढ़ें शिव गायत्री मंत्र
जब जन्म पत्रिका में राहु और केतु के बीच शेष सातों ग्रह आ जाते हैं, तो ऐसी पत्रिका कालसर्प से ग्रस्त होती है। जिस जातक की पत्रिका में कालसर्प योग होता है उसका जीवन अत्यंत कष्टदायक एवं दुखी होता है। ये जातक मन ही मन घुटते हैं, कुंठा से भर जाते हैं। आइए जानते हैं कालसर्प योग के अन्य लक्षण क्या है :-
1. आर्थिक तंगी (धन की कमी), चिड़चिड़ापन, बेवजह तनाव, मायूसी, उदासी, चिंता, हीनभावना, आत्महत्या के विचार आना, घर में कलह इत्यादि।
2. पति-पत्नी में कलह, पुरुषार्थ में कमी, नपुंसकता, जमीन संबंधी व्यवधान, मुकदमें आदि से परेशान, बेवजह समय बर्बाद होना, जीवन की गति में कमी आना, पूजा-पाठ में मन नहीं लगना।
3. एकाग्रता व आत्मविश्वास में कमी, बच्चों की चिंता, विवाह में देरी होना, बच्चों का असफल होना, पढ़ाई में मन नहीं लगना।
4. एक ही विचार बार-बार आना, कार्य में विरोध उत्पन्न होना, व्यापार में हानि की संभावना हमेशा बनी रहना, किसी कार्य में मन नहीं लगना।
5. पेट की खराबी, पेट दर्द, नशे की आदत पड़ जाना, नींद न आना, मिर्गी रोग, सिरदर्द, माइग्रेन, हिस्टीरिया, संशय, क्रोध, भूख न लगना, रोगों से हमेशा त्रस्त रहना, क्षणिक उत्तेजना, गुमसुम बने रहना ये सभी प्रकार के लक्षण अर्थात् अनेक प्रकार की परेशानी का कारण कालसर्प योग एवं राहु-केतु हैं।
अत: कालसर्प की शांति कराना आवश्यक है। पाठकों के लिए पेश है कालसर्प योग से राहत के सरलतम उपाय :
1 . जिस जातक के जीवन में उपरोक्त लक्षण हैं, वह नागपंचमी के दिन किसी भी शिव मंदिर में नाग-नागिन का जोड़ा चढ़ा कर आएं। जोड़ा चांदी का, स्वर्ण का, पंचधातु का, तांबे का या अष्ट धातु का हो।
2 . नागपंचमी के दिन ही शिव मंदिर में 1 माला शिव गायत्री का जाप (यथाशक्ति) करें एवं नाग-नागिन का जोड़ा चढ़ाएं तो पूर्ण लाभ मिलेगा।
शिव गायत्री मंत्र :
'ॐ तत्पुरुषाय विद्महे, महादेवाय धीमहि तन्नोरुद्र: प्रचोदयात्।'
आम दिनों में भी कालसर्प दोष से मुक्ति के उपाय किए जा सकते हैं। विशेषकर सोमवार को शिव मंदिर में जो जातक यह मंत्र चंदन की अगरबत्ती लगाकर एवं दीपक (तेल या घी) लगाकर जाप करता है, तो उसे अवश्य ही श्रेष्ठ फल प्राप्त होता है।
यह शिव गायत्री मंत्र सामान्य जातक भी अपने कल्याण के लिए जप सकता है।