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23 अप्रैल विश्व पुस्तक दिवस : पुस्तकें कभी धोखा नहीं देती

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रीमा दीवान चड्ढा

23 अप्रैल, विश्व पुस्तक एवं स्वत्वाधिकार दिवस। एक विशेष दिन, जो बताना चाहता है कि जीवन में सबसे अच्छा मित्र यदि कोई है तो वह है पुस्तक के रूप में....। ये पुस्तकें कभी धोखा नहीं देती। छल नहीं करती। बुद्धू नहीं बनातीं। ये पुस्तकें तो जीवन में साथ निभाती हैं, ज्ञान बढ़ाती हैं। जीवन की सभ्यता, संस्कृति से परिचय कराती हैं....साथ रहती हैं तो कितना कुछ बताती हैं। दूर तक जाने का रास्ता बताती हैं ये पुस्तकें। 
 
आज के दौर में गुम हो रही हैं, पुस्तकालयों में उदास पड़ी हैं, कहीं धूल खा रही हैं। समय ने जिस गति से अपने आप को भगाया है ....दुनिया तकनीक के मायाजाल में फंस गई है, सब कुछ बटनों में सिमट गया है....पर जज़्बातों को यूं बटनों से बहलाया नहीं जा सकता। प्रेम के पुराने ख़त जो रूहानी एहसास देते हैं वह आप इन संदेशों से कहां महसूस कर सकते हैं। 
 
गूगल पर दुनिया को ढूंढ तो सकते हैं पर संजो कर रख नहीं सकते। सब कुछ यंत्रवत है पर यही यंत्र यदि धोखा दे गया तो आपका लिखा खा जाता है, आपका पढ़ा हुआ बिसरा देता है, पर जब कोई किताब एक बार लिखी जाती है....पढ़ी जाती है.....तो बात दिल तक पहुंचती है। जहां और गहरे पहुंचना चाहती हैं वहां दुबारा ....तिबारा ....कई बार पढ़ी जाती है। 
 
मैंने शिवाजी सावंत की लिखी मृत्युंजय 6 बार पढ़ीं, पर मन नहीं भरा.....फिर ख़रीद ली.....जब मन होता है फिर पढ़ लेती हूं.....जो जो उपन्यास पढ़े पुस्तकालयों या मित्रों के सहयोग से.....बहुत सारे बाद में ख़रीद कर रखे.....फिर पढ़े या दूसरों को पढ़वाएं....। साहित्य, ज्ञान, विज्ञान और अन्य अनेक विषयों पर करोड़ों किताबें होंगी। कई और छप रहीं होंगी.....कई और छपेंगी.....और जब तक जीवन है.....पीले पड़ते कागज़ों में ज़िंदा रहेंगी। गुलज़ार ने भी कहा पन्ना पलटने के सुख के बारे में.....पन्ने को मोड़कर रख देने के बारे में...। 
 
यूनेस्को ने 1995 में आज यानी 23 अप्रैल को विश्व पुस्तक दिवस मनाने का निर्णय लिया, क्यों? क्योंकि आज ही के दिन बहुत से लेखक जन्मे भी और बहुत से लेखक दुनिया से विदा भी हुए। एक कवि या लेखक के जीवन से जुड़ी इस महत्वपूर्ण तिथि को उनके रचना संसार को देखते हुए विश्व पुस्तक दिवस के रूप में घोषित करना, कितनी अच्छी और सही पहल थी। आज सौ से भी ज़्यादा देशों में यह दिवस पुस्तक के प्रति प्रेम ....पुस्तक के प्रति हमारे दायित्व, पुस्तकों की ज़रूरत, उनकी महत्ता, उनसे दोस्ती, उनके ज्ञान के अथाह भंडार की सूचना हेतु, लेखकों के प्रति आभार रूप में कहें या भविष्य में भी पुस्तक का पठन-पाठन जारी रहे उसकी भूमिका में सहयोग देने वाले दिवस के रूप में कहें, यह दिन विशेष है। बहुत विशेष है, क्योंकि यह दिन बताता है कि जब प्रेमी अपनी प्रेमिका को गुलाब का एक सूर्ख सुंदर फूल भेंट करता है तो वह बदले में देती है एक अच्छी सुंदर-सी पुस्तक...। 
 
फूल अपनी महक से बात कहते है ह्रदय तक पहुंचते हैं, वहीं शब्द जो किताबों में छपे होते हैं वे भी अपनी बात कहते हैं ह्रदय तक पहुंचते हैं। फूलों की उम्र लंबी नहीं होती, पर ये किताबें ही है जो बताती हैं जीवन में किसकी उम्र कितनी होगी और कौन है जो दुनिया से चले जाने के बाद भी रहता है ज़िंदा..., किताबों में, किरदारों में, शब्दों में, अर्थों में, गुलाबों सी महक लिए। हाथों में खिलता है और आंखों के रास्ते दिल तक पहुंचता है... समय की हर नदी को पार कर ज्ञान के सागर तक... एक लेखक, एक कवि, एक रचनाकार। 

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