ओ रे रंगरेज
-कविता वर्मा
रीमा का मन आज बहुत उदास था। पति और बच्चों के जाने के बाद वह अनमनी-सी काम निबटा रही थी। ऊब गई थी वह अपनी रूटीन जिंदगी से। तभी फोन की घंटी बजी। शहर के दूसरे छोर पर रहने वाली उसकी मौसेरी बहन का फोन था। क्या कर रही है? सब काम छोड़ और जल्दी से घर आ जा। लेकिन किंतु-परंतु सुनने के मूड में वह नहीं थी। इतनी दूर जाना। और हां, ऑरेंज साड़ी या सूट पहनकर आना, कहकर उसने फोन रख दिया।
पता नहीं क्या है और अब मना भी नहीं किया जा सकता। वहां रीमा का स्वागत हंसी-ठहाकों से हुआ। सारी मौसेरी-ममेरी बहनें और भाभियां वहां इकट्ठा थीं। सारा दिन हंसी-ठहाकों, खाने-पीने और फोटो खींचने में निकल गया। सब एक रंग में रंगी थीं ऑरेंज और प्यार के रंगों में। शाम को जब रीमा घर लौटी तो वह रिश्तों के रंग में सराबोर थी और उसकी उदासी गायब हो चुकी थी।
जबसे नीलू की नानीजी का देहावसान हुआ, वह बचपन की उन यादों से ही बाहर नहीं आ पा रही थी। उसके मूड को देखते हुए घर में सब कुछ खामोश-सा था। उस दिन उसकी बेटी कॉलेज से आकर किचन में घुस गई। लाख कहने पर भी नीलू को न कुछ बताया और न किचन में ही आने दिया गया।
शाम की चाय के साथ उसने रंग-बिरंगी भेल और हरे-भरे कबाब बनाए और लॉन में रंग-बिरंगे फूलों से सजी टेबल पर सब कुछ सजाकर नीलू को आवाज दी। सुंदर-सजीली टेबल और रंग-बिरंगे नाश्ते ने नीलू को जैसे उसके अवसाद से बाहर ला दिया। उस दिन उसने अपनी बेटी के साथ अपनी नानी के संग बिताए बचपन की ढेर सारी बातें शेयर की।
रंगों का त्योहार होली
मन में इसका ख्याल आते ही लाल-हरे, नीले-पीले रंग आंखों के आगे छा जाते हैं, वैसे ही जैसे स्त्री का ख्याल आते ही उसके जीवन में मौजूद जिंदगी के विविध रंग। स्त्री और रंग, विविधता और स्त्री- जीवन तो मानो एक-दूसरे के पूरक हैं। छोटी-सी बच्ची का लाल रंग के प्रति आकर्षण, गुड़ियों के खेल में एक-एक बात का ध्यान रखते हुए विवाह रचाना हो या आंगन के कोने को रंगीन दुपट्टों से सजाना यह जता देता है कि एक लड़की अपने जीवन को पूरे उत्साह और जीवटता से जीने के लिए तैयार है और उसके जीवन में उदासी व हताशा जैसे अनमने रंगों का कोई स्थान नहीं है।
रंग जहां अपने में ढेर सारी सुंदरता समेटे होते हैं, वहीं अपने चाहने वालों के मन को अनकहे ही मुखरित कर देते हैं। वैसे ही जैसे एक स्त्री के जीवन की सुंदरता उसके रहन-सहन व पहरावे से लेकर उसके जीवन की ऊर्जा में छुपी ललक से मुखरित होती है।
स्त्री जीवन बनाम रंग।
कहने को तो स्त्री और पुरुष दोनों ही ईश्वर की बनाई कृति हैं लेकिन गाहे-बगाहे उनके जीवन जीने की शैली की चर्चा तो होती ही है। लड़कपन से ही लड़कियों में रंगों के प्रति आकर्षण देखने को मिलता है और ये रंग सिर्फ चटक खिले हुए रंग ही नहीं होते बल्कि गहरे और उदासीभरे भी होते हैं, बिलकुल वैसे ही जैसे गुड़िया की विदाई के बाद कई दिनों तक उदास रहना या उसकी याद में रोना।
हमारी सामाजिक संरचना व रीति-रिवाज भी उन्हें बचपन से ही जीवन के विविध रंगों के प्रति तैयार कर देते हैं फिर चाहे वो भाई की झिड़की हो या दादी का उसकी चंचलता पर घूरना। वह थोड़ी देर उदासी के गहरे रंग में रहने के तुरंत बाद उसे झटक व झाड़-पोंछकर चटक रंग में खिलखिला उठती है।
कितना कुछ कहते हैं रंग
हर रंग कुछ कहता है। हर रंग अपने में जीवन के, आपके मूड के, आपकी सोच के रंग को प्रकट करता है। लाल रंग सिर्फ प्रेम का ही रंग नहीं है बल्कि ये आपको उत्साहित और ऊर्जावान भी रखता है। यही कारण है कि शादी-उत्सव में इस रंग को प्राथमिकता दी जाती है जिससे कि आप खिली-खिली और उत्साहित दिखें। आपके मन में अगर कोई दु:ख या उदासी है तो उसे कुछ देर के लिए इसके नीचे छुपाया जा सके। महिलाएं खासतौर पर रंगों के माध्यम से इसे बखूबी अंजाम देती हैं।
हरा रंग वह रंग है जिसे समृद्धि से जोड़ा जाता है। वह न जाने कितने रूप में मौजूद होता है स्त्री जीवन में। हरियाली तीज या सावन जिसमें हरे रंग में सज-धजकर जीवन की विषमताओं को परे हटाकर स्त्री मन संतुष्ट महसूस करता है। यह त्योहार विशेष रूप से स्त्रियां इसलिए मनाती हैं, क्योंकि उनके मन की पूर्णता और उत्साह ही घर की धूरी होते हैं।
अब चाहती हैं अपना अधिकार भी
जिन रंगों का पहले स्त्री जीवन में प्रवेश भी निषिद्ध था वही आज उनके जीवन में अपना स्थान बनाने लगे हैं। ब्लैक या कला रंग आधिपत्य को दर्शाता है जिसे पहले अशुभ या असगुन कह कर स्त्रियों से परे रखा जाता था। आज महिलाऐं ना सिर्फ अपना स्थान बना रही हैं बल्कि कई क्षेत्रों में उनका अधिपत्य भी है इसीलिए ब्लैक आजकल फैशन सिंबल बना हुआ है जो आगाह भी करता है की हमें दबाने की कोशिश भी ना करना।
अब हो गई हैं और दोस्ताना
लद गए वो जमाने जब घर की चहारदीवारी ही सब कुछ थी। अब महिलाएं न सिर्फ दहलीज लांघकर बाहर निकली हैं बल्कि अपनी जिंदगी में दोस्ती को भी महत्व देने लगी हैं फिर चाहे वह सोशल साइट पर बचपन की सहेली को ढूंढना हो या साथियों के साथ हैंगआउट करना। और इसीलिए पीले रंग ने उनकी जिंदगी में हल्दी-कुमकुम से आगे जाकर एक अलहदा स्थान ले लिया है। दोस्ती और खुशमिजाजी का ये रंग न सिर्फ दिखने में खिला-खिला-सा लगता है, बल्कि मस्तिष्क और नर्वस सिस्टम को उद्दीप्त कर जीवन को ऊर्जावान भी बनाता है।
शांति, सुकून और सहजता
सफेद रंग जो कल तक वैधव्य का प्रतीक था, अब शांति और सुकून के साथ ही सोफेस्टिकेशन का प्रतीक भी बन गया है। महिलाएं न सिर्फ सफेद परिधान में खुद की एक खास इमेज बना रही हैं बल्कि जिंदगी में खुद के लिए सुकून भी खुद ही तलाश कर रही हैं। यह प्राकृतिक रंग उनकी सहज जीवनशैली का परिचायक बन रहा है।
और भी बहुत रंग हैं जीवन में
इसके अलावा भी ढेर सारे रंग हैं एक स्त्री के जीवन में, जैसे पिंक रोमांटिक रंग हो या पर्पल, जो रॉयल्टी दर्शाता हो और सब कुछ रहन-सहन व व्यवहार से ही तो प्रकट होता है। और सच देखा जाए तो अपने जीवन से दु:ख या उदासी के ग्रे रंगों को छुपाकर महिलाएं इन रंगों के साथ बेहतरीन सामंजस्य बैठाकर आगे बढ़ रही हैं।
साल-दर-साल रंगों और गुजरते महिला दिवसों के साथ हर महिला अपने जीवन के विविध रंगों के खूबसूरत तालमेल के साथ आगे बढ़े, हर रंग पूरी शिद्दत से जिए, बस यही तो कहता है हर रंग और हर महिला दिवस।