सियासी शतरंज पर क्या होगी कैप्टन की अगली चाल?

नवीन जैन
शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2021 (21:45 IST)
इतनी जटिल और कठिन परिस्थितियों से निज़ात पाने का कोई स्थाई इलाज कांग्रेस के पास है या नहीं? खबरों पर भरोसा करें, तो पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह अपने आप को इतना रुसवा मान बैठे हैं कि उन्होंने कांग्रेस छोड़ने की घोषणा कर दी है।अभी तो वे कहते सुने जा रहे हैं कि मैं कांग्रेस का विरोध अवश्य करूंगा, लेकिन भाजपा में शामिल नहीं होने वाला। इसी के साथ यह खबर भी लहरा रही है कि दरअसल कैप्टन को केंद्र में कृषि मंत्री पद की पेशकश की गई थी। यदि यह दांव चल जाए, तो भाजपा की बल्ले-बल्ले तक हो सकती है।

कारण दो हैं- सरकार को महीनों पुराने किसान आंदोलन से कैप्टन अमरिंदर सिंह की वजह से निर्णायक सफलता मिल सकती है और पंजाब के सामने खड़े विधानसभा चुनावों में वह फायदा मिल सकता है, जिसका भाजपा बड़ी बेताबी से इंतज़ार कर रही है। आखिर लगभग साढ़े नौ साल से कैप्टन का सूबे में शासन चल रहा था। ठीक है कि उन्हें परेशान करने में नवजोत सिंह सिद्धू और उनके परगट सिंह जैसे सहयोगियों ने कोई कमी नहीं छोड़ी, मगर अपने पुराने सैन्य बैकग्राउंड के अनुसार वे राजनीति के मोर्चे पर भी युद्ध मैदान की तरह एक कैप्टन के रूप में डटे रहे।

खास बात यह है कि कैप्टन राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं। उन्हें मालूम है कि कौनसी गोट कब और कैसे चलनी है।इसलिए सभी पत्ते खोलने की इतनी भी जल्दी क्या है? भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं के साथ नई दिल्ली में उनकी बैठकें मात्र शिष्टाचार मुलाकातें नहीं मानी जा सकतीं।हां, कैप्टन की राजनीतिक गुफा में छुपा एक सत्य शायद दूरबीन से देखना पड़ेगा और वह यह कि जब वे एक बार निर्दलीय के रूप में विधानसभा चुनाव लड़े थे, तब स्व. अटलबिहारी वाजपेयी उनके चुनाव प्रचार के लिए खासतौर पर आए थे।

दीगर बात है कि कैप्टन के हाथ से सीट जाती रही।खबर तो यह भी है कि केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह से कैप्टन अमरिंदर सिंह की शाह के निवास पर करीब पौन घंटे बातचीत हुई।इस चर्चा का सब्स्ट्रेक्ट इतना ही आया है कि भाजपा में आना या नहीं आना कैप्टन की मर्ज़ी पर छोड़ दिया गया है। दूसरा यह कि भाजपा उन्हें बाहर से भी समर्थन दे सकती है।मंथन का विषय यह है कि एक बार जब कैप्टन ने भाजपा में जाने से इनकार ही कर दिया है,तो क्या वे अपने इस कथन पर हरदम अडिग ही रहेंगे?

याद दिलाना आवश्यक है कि जब उन्होंने कुछ दिनों पहले मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था,तब पत्रकारों के सवाल के जवाब में उन्होंने कहा था कि राजनीति में तो कभी भी कुछ भी हो सकता है। दरअसल, मीडिया ने उनसे उनके भाजपा में शरीक होने को लेकर प्रश्न पूछा था।तब तो उन्होंने कोई ठोस उत्तर नहीं दिया था। ज़ाहिर है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह भारत की वर्तमान राजनीति की मनोदशा को तलछट तक समझ चुके हैं और कदाचित इसी वास्ते सरोकारों की राजनीति करने के ऊलजलूल तर्क देने से परहेज करते हैं।

जान लें कि कैप्टन प्रारंभ से ही अति विवादित तीन किसान कानूनों की वापसी की लगातार मांग करते रहे हैं।माना जा सकता है कि उनका यह स्टैंड भाजपा की उलझनों को और बढ़ा सकता है।इसी आधार पर ही शायद सूत्रों ने यहां तक खबर दी है कि किसान आंदोलन को लेकर वे नया ब्ल्यू प्रिंट भी बनाने को तैयार हो गए हैं। उसके बाद वे फिर अमित शाह से मिल सकते हैं और यदि सब कुछ अनुकूल रहा तो पीएम नरेंद्र मोदी से भी उनकी भेंट हो सकती है, ताकि किसी अंतिम नतीजे पर पहुंचने का रास्ता साफ़ हो।जो प्रत्येक पार्टी की मूल दिक्कत रहती आई है,वही कमोबेश पंजाब कांग्रेस और नवजोत सिंह सिद्धू की रही है।

कुछ बड़े अखबारों ने प्रमुखता से खबर लगाई है कि दरअसल, सिद्धू पंजाब के गृहमंत्री, डीजीपी और एडवोकेट जनरल पद अपने बंदों को देखना चाहते थे। राजनीति का कच्चा से कच्चा खिलाड़ी जानता है कि उक्त पदों पर यदि आपके विश्वस्त बैठे हों, सरकार में मुख्यमंत्री चाहे जो हों, उसकी सरकार की 'मास्टर की' सिर्फ़ आपके पास रहती है।नवजोत सिंह सिद्धू खुशफ़हमी में थे कि राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री चरनजीत सिंह चन्नी पहले दलित मुख्यमंत्री हैं, तो नवजोत सिंह उन्हें कठपुतली की तरह इस्तेमाल कर सकेंगे, पर चन्नी ने अभी तक तो अपनी रीढ़ की हड्डी सीधी ही रखी है। आगे की राम जाने।

गांधी-नेहरू परिवार के अंधभक्तों की इस अति नाजुक घड़ी में हालात ये हैं पार्टी की नीतियों का एक बार फिर तर्कसंगत विरोध करने वाले और लगभग 32 सालों में विभिन्न नेताओं के लिए सफल डैमेज कंट्रोलर रहे सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल के निवास पर तख्तियों के साथ हल्ला बोलने उतर पड़े। इस वक़्त में तो पूर्व विदेश मंत्री और गांधी परिवार के अति विश्वस्त रहे वयोवृद्ध नटवर सिंह तक को बयान देना पड़ा है।

हरदम काला चश्मा लगाए हुए दिखने वाले नटवरसिंह ने यहां तक कह दिया है कि तीन लोगों सोनिया, राहुल और प्रियंका की वजह से पार्टी की यह गत हो हो गई है। उन्होंने इसका कारण ये बताया कि ये तीनों अपने आपको तीस मारखां समझते हैं। नटवर सिंह ने राहुल को शहज़ादा और प्रियंका को शहज़ादी संबोधित करते हुए कहा है कि इस बुरी घड़ी में स्व. इंदिराजी या स्व. राजीव नई दिल्ली में रहकर पूरे मसले को सुलझाते,जबकि शहज़ादे और शहजादी तो दिल्ली से बाहर हैं।

भले ही कैप्टन ने अपने आपको अलग कर लिया हो, लेकिन चन्नी को मुख्यमंत्री बनवाने में उन्हीं की हिकमत काम आई वरना नवजोत सिंह सिद्धू के अलावा प्रताप सिंह बाजवा, सुखजिंदर सिंह जैसे तमाम जाट सिक्ख नेताओं ने जमकर रोड़े डाले। वैसे चरणजीत सिंह को रामदसिया सिक्ख संप्रदाय से ताल्लुक रखने वाला माना जाता है।हालात को इतना बिगड़ने से रोकने के लिए मुख्यमंत्री रहते हुए कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सिद्धू को उप मुख्यमंत्री पद तक की पेशकश की, लेकिन सिद्धू के राजहठ ने पार्टी के लिए ही संकट खड़ा कर दिया।

इसके चलते आशंका व्यक्त की जा रही है कि अगले साल होने वाले चुनाव में राज्य में कांग्रेस सरकार और संगठन की कहीं भारी फजीहत न हो जाए। आपकी कमज़ोरी ही दूसरे की ताकत बन जाती है।पंजाब की राजनीति के गोताखोरों का कहना है कि नवजोत सिंह सिद्धू को यद्यपि पंजाब की राजनीति में 17 साल का अनुभव हो चुका है। उनकी राष्ट्रीय पहचान भी बन चुकी है, लेकिन इस पहचान के पीछे मूल कारक क्या हैं, इसके बारे में उनसे बेहतर शायद ही कोई और जानता हो।

उलट इसके कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपने आर्मी बैकग्राउंड की वजह से लगभग हरदम एक ग्रेसफुलनेस से काम लिया। जब सिद्धू ने सारी हदें तक तोड़ दीं, तब भी कैप्टन के मुंह से इतना ही निकला कि मुझे लगता है कि सिद्धू अस्थिर चिंतन वाला व्यक्ति है।जानकारों का कहना है कि कैप्टन के सुशासन से ही यह संभव हो पाया कि लगभग पिछले दो साल से ही नवजोत सिंह एंड कंपनी निजी महत्वाकांक्षाओं के चलते कैप्टन के खिलाफ लामबंद हो सके, वरना तो इस पूर्व फौजी ने अपने सूबे की भलाई के लिए कई किले लड़ाए, जिनमें महीनों पुराने तीन विवादास्पद कानूनों का सख्त और लगातार विरोध प्रमुख है।

जान लें कि उनकी सरकार की ओर से ही अधिकृत जानकारी दी गई थी कि उनकी सरकार ने 5.64 किसानों को 4,624 करोड़ और 2.68 खेतिहर मजदूरों को 526 करोड़ की राहत दी। नशा मुक्ति के लिए टास्क फोर्स का गठन किया।इस एक्ट के तहत अब तक 62,744  व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया। कुल 202 ओट क्लिनिक डाले गए।घर-घर योजना के लिए 22 जिला रोज़गार केंद्र और रोजगार ब्यूरो शुरू करवाए गए, जिनसे काम-धंधे मिलने वालों की संख्या 19.29 लाख है।

इस फेहरिस्त में कैप्टन अमरिंदर सिंह की कई उपलब्धियां हैं। अब ये सभी सफलताएं पंजाब की पांच नदियों में तो बह नहीं जाएंगी।कैप्टन द्वारा हारी हुई बाजी को जीत में बदलने के नुस्खे बताए जा रहे हैं कि करीब 25 विधायक कैप्टन के साथ हैं। फिलहाल यह अंदर की बात है, मगर इन्हीं के बूते कैप्टन फ्लोर टेस्ट में चन्नी सरकार को अल्पमत में ला सकते हैं। मुमकिन यह भी बताया जा रहा है कि वे कोई नया संगठन या पार्टी को बनाकर केंद्र सरकार से किसान आंदोलन को समाप्त करने की कोई जुगत भिड़ा लें, ताकि किसान उनके वोट बैंक में तब्दील हो जाएं।

एक आशंका यह भी जताई जा रही है कि शिरोमणि अकाली दल और आप पार्टी से अलग हुए नेताओं को जोड़कर वे एकं नया मंच बना लें। जो भी हो, कहा जा रहा है कि राजनीति में बड़बोलेपन की हवा कभी भी निकल सकती है और अंततः कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सिद्धू के मामले में फिलवक़्त तो यही किया।(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)

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