नीर और नारी, Water & Women, स्त्री और पानी... कैसा लगता है जब ये दो महत्वपूर्ण जीवन देने वाले शब्द साथ में आते हैं। कैसा लगता है जब नीर की बात हो और नारी दिखाई देने लगे.... नारी की चर्चा हो और नीर बह चले.... यह रिश्ता हमने नहीं बनाया है प्रकृति ने, सृष्टि ने, विधाता ने इन रिश्तों को साथ में गुंथ दिया है... एक सी कहानी है, एक सा इतिहास है, एक सा वर्तमान है, एक सा भविष्य नजर आ रहा है... सिर पर नीर भरने से लेकर लाने और घर में आने पर एक गिलास पानी देने तक उसी स्त्री से जुड़ा है जल का रिश्ता...पनिहारिन से लेकर घर की हर प्रमुख महिला तक पानी से जुड़ी हर जिम्मेदारी औरत के हिस्से में आई है....
दृश्य हर घर, हर गांव, हर शहर का अलग हो सकता है लेकिन चिंता एक है, जद्दोजहद एक है, संघर्ष एक है पानी....पीने से लेकर वापरने तक, उपयोग से लेकर सदुपयोग तक. ....पानी कहां से बचेगा, पानी कहां कितना बहेगा, हर स्त्री की जुबान पर होता है यह हिसाब....
जल के लिए हर लड़ाई है, जल के लिए हर चढ़ाई है....
जल है क्या? वह आश्चर्यजनक नेमत जो हर सूखे कंठ की प्यास बुझाती है, शरीर और घर की हर वस्तु की सफाई से शरीर के भीतर के तापमान नियंत्रण तक, पाचन से लेकर उत्सर्जन तक....पृथ्वी का जहां 3 चौथाई भाग 71 प्रतिशत जल से ढंका है वहीं मानव शरीर का लगभग 70 प्रतिशत भाग जल से बना है। जीव, जंतु, जानवर, पौधे, कृषि, बिजली, कागज, अन्य संयंत्र, उर्वरक सभी को जल की जरुरत है...जल सबकी आधारभूत आवश्यकता है और स्वच्छ पेयजल हर लोकतांत्रिक देश की जनता का अधिकार है....
पृथ्वी पर जल हमें जिस जल चक्र से मिलता है ऐसा ही जीवन चक्र एक स्त्री के जीवन में घटित होता है.... कैसे आता है हम तक जल?
जब समुद्र की अथाह जलराशि, महासागर की उत्ताल तरंगे, नदियों का कलकल छलछल चमचम करता मीठा जल, जलाशयों का ठहरा पानी, झरनों का झरझर बहता पानी जब सूरज के ताप से तप्त होकर आकाश में जाता है तब गहरे काले, सफेद, भूरे, स्लेटी बादलों का झुंड तैयार होता है। इन्हीं बादलों से फिर झमाझम बरखा होती है, पानी आता है धरा पर..कभी बर्फ के रूप में, कभी ओलों के रूप में, कभी मुसलधार बारिश के रूप में... प्यासे को बूंद भर भी मिल जाए तो यह पानी जीवन देता है और बाढ़ का विकराल रूप धारण कर ले तो यही पानी तबाही लाता है....
स्त्री, औरत, नारी भी जीवन देती है उसका जीवन चक्र भी नन्ही बेटी से लेकर, बहन, पत्नी, मां के बाद विभिन्न रूपों में प्रतिबिंबित होता है.... हर जगह उसके होने से नमी है, आर्द्रता है, कोमलता है, तृप्ति है... उसके ना होने से शुष्कता है, नीरसता है, बंजरता है....वह भी देने पर आए तो सर्वस्व लुटा दे और तबाही चाहे तो पानी भी मांगने का मौका ना दे...
नीर और नारी बचाने की जरूरत दोनों को है....दोनों अपना नियंत्रण सहज नहीं खोते... कोई परिस्थिति कोई गतिविधि उसे ऐसा करने को विवश करते हैं...
जो हमें जीवन देते हैं, जो हमें बचाते हैं हमारे जीवन के आनंद को बचाते हैं जरुरत आन पड़ी है उनको सहेजने की है उनके संरक्षण की, उनके सम्मान की, उनकी कद्र की....
जल एक रासायनिक चमत्कार है, स्त्री का चमत्कार हमारे समक्ष साकार है...
नीले अंबर पर पानी वाष्प रूप में है बादलों की बांहों में है....समुद्र में जल विशाल राशि के रूप में है, हिम शैल के रूप में है...पहाड़ों पर हिमनद है, भूमि पर तरल रूप में नदियों के रूप में है....जो उपयोगी जल 1 प्रतिशत हमारे लिए उपलब्ध है उसका हम 0.006 प्रतिशत ही उपयोग करते हैं....
फिर सोचिए कि स्त्री हमारे पास, हमारे आसपास जितनी उपलब्ध है, उसकी प्रतिभा का, उसकी शक्ति, उदारता और रचनात्मकता का तो हम शायद उतना भी लाभ नहीं ले पाते हैं, सारा प्रयास उससे ले लेने में, उसे समाप्त कर देने में लगा रहे हैं....कैसे बचेगी वह अपनी आत्मिक सुंदरता और सहजता के साथ...क्यों उसे हम कठोर बनाने पर तुले हैं? उसका तरल रूप बना रहे इसके कितने प्रयास हम अपने स्तर पर करते हैं?
देखिएगा कभी एक स्त्री हमारे परिवेश में कितने कितने रूपों में अभिव्यक्त होती है...भावनात्मक, मानसिक, आत्मिक लेकिन स्त्री की नमी को मापने का कोई हाइग्रोमीटर हमारे पास नहीं, भावनात्मक और संवेदनात्मक रूप से भी हम इतने संज्ञाशून्य हैं कि उसके योगदान जो तो छोड़िए उसके अस्तित्व को ही महसूस नहीं कर पाते हैं...
जल कहां से आकर कहां कहां बंट जाता है, स्त्री भी अपने उद्गम स्थल को भूल कर ना जाने कितने टुकड़ों में बंट जाती है....
पर जब भी नीर याद आता है तो नारी ही याद आती है... सुबह के घड़े-मटके बाल्टी-तपेलों को भरने से लेकर.....सिर पर भारी भरकम जलपात्र लेकर जाने तक, कुंए से भर कर लाने तक...शहर की उस एक आवाज तक - जरा एक ग्लास पानी देना...
नीर और नारी का यह अंतर्सबंध आपको पता है आप जानते हैं लेकिन आश्चर्य तो इस बात का है कि आप इन्हें सहेजते नहीं....सहेज नहीं रहे, ना स्त्री को ना पानी को....