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लॉकडाउन के बाद स्वैच्छिक सतर्क जीवन

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अनिल त्रिवेदी (एडवोकेट)

, मंगलवार, 2 जून 2020 (16:37 IST)
लॉकडाउन को हम जीवनरक्षा की समझ का खुला विश्वविद्यालय भी मान सकते हैं। इससे पहले किसी महामारी से सारी दुनिया का इतना व्यापक लोक शिक्षण नहीं हुआ। लॉकडाउन ने आज तक हम जिस तरह बिना चिंता के लापरवाह अंदाज में जीते रहने के आदी थे, उसे इतिहास का हिस्सा बना दिया है। अब यदि हम खुद इतिहास नहीं बनना चाहते हैं तो हमें हर दिन हर पल स्वेच्छा से सतर्क जीवन जीने का नया इतिहास बनाना या लिखना होगा।
लॉकडाउन में हमें जीवनावश्यक कारणों से कुछ छूट मिली, पर लॉकडाउन खुलने पर सतर्कता में छूट का कोई सवाल ही नहीं है। अब हम सब अपने मन में यह गांठ बांध लें कि अब हमें जरा भी लापरवाही नहीं करनी है और न ही किसी पर दोष डालना है। हम सबने विपरीत परिस्थिति में कठिन आपदा से अपनी समझ और क्षमता अनुसार मुकाबला किया है और आगे भी पूरी समझदारी से सामने आई चुनौती से हिल-मिलकर निपटेंगे।
 
सतर्कता और चिंता दोनों में गुणात्मक अंतर होता है। चिंतकों ने चिंता को चिता समान माना है, चिंता चित्त को भयभीत करती है। सतर्कता चित्त को सचेत करती है। अब आगे की दुनिया की जीवनशैली सतर्कता पर केंद्रित सचेत जीवन के आधार पर हम सबको चलानी होगी। इस महामारी ने हमें पहला पाठ यह पढ़ाया है कि वायरस भले ही सूक्ष्म हो, पर उसका विस्तार वैश्विक है।
 
भविष्य में दुनिया में कभी भी किसी हिस्से में वायरस का प्रभाव दिखाई देता है तो तत्काल सारी दुनिया को हर हिस्से में सुरक्षा उपायों को सरकार और समाज के स्तर पर तत्काल कदम उठाने ही चाहिए। इसमें देरी और भौगोलिक दूरी की गफलत में नहीं पड़ना चाहिए, क्योंकि आज की दुनिया परस्पर आवागमन के मामले में इतने निकट है जितनी पहले कभी नहीं थी। इसे समझने में सारी दुनिया की सरकारों और लोगों से भारी चूक हुई है। इसे स्वीकारते हुए भविष्य के लिए सतर्कता बरतना होगी।
 
अभी तक बीमारियों को लेकर हमारी समझ व्यक्तिगत थी। कोई बीमार होता था तो घर, परिवार और पहचान वाले आगे बढ़कर सेवा को तत्पर रहते थे। इस महामारी ने सिखाया कि एक-दूसरे से सुरक्षित दूरी बनाकर रखो। महामारी में सबसे पहले सब एक-दूसरे से दूर रहें, कोई पास न आए। जो पास आए हो, वे भी एकांतवास में चले जाएं, यह सुरक्षा उपाय सुझाया। ऐसी महामारी जिसमें मरीज, चिकित्सक, घर-परिवार, समाज सरकार, व्यवस्था सबके हावभाव एवं व्यवहार ही एकाएक बदल गए। जीवन का ऐसा विकट भाष्य समूची दुनिया ने इससे पहले नहीं पढ़ा या देखा, वह भी घर बैठे।
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अब हम सबकी हर पल परीक्षा है हर क्षण सतर्क रहकर अपनी और सारी दुनिया के लोगों का निरोगी और निरापद जीवन कायम रखने के लिए। आज की दुनिया बहुत भीड़भरी है। पहली चुनौती है भीड़ से परहेज़। लॉकडाउन के हटने पर भी स्वैच्छिक लॉकडाउन खुद ही खुद पर लागू करें। जीवनावश्यक जरूरत के लिए पूरी सुरक्षा रखते हुए घर से बाहर जाकर काम पूरा होते ही घरवापसी का ध्यान रखें। न तो हमें भीड़ का हिस्सा बनना है, न ही अपनी उपस्थिति से भीड़ बढ़ानी है।
बड़े शहरों व महानगरों के लोगों को यह सामान्य पूर्वानुमान करना जीवन की सुरक्षा की स्वैच्छिक अनिवार्य शर्त होगा कि किस समय, कहां जाना है और कहां जाने से बचना है। बड़े शहरों में आवागमन भौगोलिक परिस्थितिवश प्राय: वाहनों से ही करना होता है अत: शुरुआत में निजी वाहनों का ही प्रयोग ही ज्यादा होगा। अत: बाहर निकलने से पहले दूरी के हिसाब से भोजन-पानी साथ में रखने का ध्यान रखना होगा। बहुत अनिवार्य स्थिति को छोड़ बाहर खाने से बचना होगा। निजी और सार्वजनिक जीवन की मर्यादाओं की स्पष्ट समझ पूरी संवेदनशीलता के साथ बढ़ाते रहना होगा।
 
व्यक्तिगत जीवन के प्रसंगों को अपने घर तक ही सीमित रखें, उन्हें भव्य आयोजन का स्वरूप देने के लोभ-मोह से बचें। धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक भीड़भरे रोजमर्रा के आयोजन, भजन, सत्संग, नाटक मेले, पर्यटन, साहित्य संगोष्ठी, शिविर, गीत-ग़ज़ल संगीत संध्या, शोभायात्रा, जुलूस, प्रदर्शन, कथा, तकरीर, भाषणमाला जैसी सार्वजनिक गतिविधियों, समारोहों को संकट टलने तक स्थगित रखें और इस संबंध में संचार माध्यमों से सतर्कता रखने बाबद निवेदन करें।
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रोज़मर्रा की ज़िंदगी में कम खाने और गम खाने का ध्यान रखें। कम खाने का अर्थ घर पर ही प्राय: खाना है। पहले की तरह रास्ते चलते खाते रहने को स्वनियंत्रित करना है। गम खाने का मतलब बिना बात की किसी भी बहस या निजी तथा सार्वजनिक विवाद से बचना है। जितना शांत और संयत रहेंगे, उतना ही हम महामारी को रोकने में सतर्क और चौकस रह पाएंगे।
 
लॉकडाउन की समाप्ति पर अपने निकटतम रिश्तेदारों, नए-पुराने परिचितों, घनिष्ठ मित्रों, साथी-सहयोगियों से सामान्य स्थिति होने तक लॉकडाउन काल की तरह फोन, मोबाइल से ही हालचाल पूछें। सौजन्य भेंट को प्रत्यक्ष रूप से टालना ही सतर्कता की दृष्टि से उचित होगा। बिना बुलाए घनिष्ठतम साथी, सहयोगी, परिचित या परिजन के यहां न पहुंचें और न ही उन्हें आमंत्रित कर दुविधा में डालें।
 
आपातकालीन स्थिति में दोनों की सुरक्षा की मर्यादा का पालन करते हुए सामाजिक व पारिवारिक संबंधों का निर्वाह करने में मदद करना या करवाना चाहिए। प्रत्यक्ष मदद करना करवाना संभव न हो सकने की परिस्थिति में मोबाइल फोन से मार्गदर्शन तथा मदद पहूंचाने की तत्परता भी सामाजिक सतर्कता का हिस्सा है।
 
लॉकडाउन की समाप्ति पर हम सबको परस्पर आपसी व्यवहार में बोलचाल की भाषा के प्रयोग में अतिरिक्त सतर्कता रखनी होगी। हम सब एक असामान्य काल से गुजर रहे हैं। पूरी मनुष्यता को इस काल में जिस असामान्य, अनचाही व कठिन परिस्थितियों से गुजरना पड़ा है, वह समूची मनुष्यता के जीवनकाल का अप्रिय काल है। ऐसी स्थिति में एक-दूसरे के साथ संवेदनशीलता के साथ सकारात्मक व्यवहार हमारे जीवन को सामान्य बनाने में परस्पर मदद करेगा।
 
विपरीत परिस्थिति में ही हमारी हिम्मत और हौसले की परीक्षा होती है। विपरीत एवं आकस्मिक परिस्थिति में हम सबने मिल-जुलकर लॉकडाउन का काल पूरा कर महामारी को रोकने का हौसला जुटाया और अब पूरी सजगता व सतर्कता के साथ पूरी दुनिया के मनुष्य हिल-मिलकर संवेदनशीलता के साथ निरापद ज़िंदगी के लक्ष्य को हासिल करने का हौसला भी जुटाएंगे। यह हम सबका एकजुटता के साथ एकमात्र सामान्य लक्ष्य होना चाहिए जिसे हम हिल-मिल पूरा करेंगे।

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