Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

क्‍यों खास है 26/11 हमले के ‘शहीद तुकाराम ओंबले’ की ये कहानी?

हमें फॉलो करें क्‍यों खास है 26/11 हमले के ‘शहीद तुकाराम ओंबले’ की ये कहानी?
webdunia

नवीन रांगियाल

शहीदी के कई किस्‍से हैं, लेकिन मुंबई आतंकी हमले में शहीद हुए तुकाराम ओंबले का किस्‍सा थोड़ा जुदा है। करीब एक दशक बाद आज भी सोशल मीडि‍या पर तुकाराम ओंबले को याद किया जा रहा है, क्‍योंकि धुंधली पड़ चुकी हमले की इस तस्‍वीर में यह तो साफ साफ दिखाई दे रहा है कि तुकाराम ही वे शख्‍स थे, जिन्‍होंने सीमा पार से आए आतंकी अजमल कसाब की नि‍यति‍ तय की थी।

मुंबई से करीब 284 किलोमीटर दूर, महज़ 250 परिवारों का केदाम्बे गांव तुकाराम ओंबले का गांव है। दरअसल, तुकाराम ओंबले के पहले तक उनके गांव से कोई व्यक्ति पुलिस में भर्ती नहीं हुआ‍ था। लेकिन उनके बलिदान के बाद 13 युवा पुलिस में भर्ती हुए। यह सिर्फ और सिर्फ तुकाराम के बलि‍दान की वजह से ही हो सका है। उनकी बहादुरी के किस्‍से सुनकर जवान लड़के उन्‍हीं की तरह मुंबई पुलिस या दूसरी फोर्स में भर्ती होने के लिए मेहनत और तैयारी कर रहे हैं।

ओंबले बचपन में आम बेचते का काम करते थे और बाकी समय में गाय-भैंस चराते थे। उनके मौसा सेना में ड्राइवर थे और तभी से उन्हें सेना वालों और पुलिसकर्मियों की वर्दी से लगाव हो गया और 1979 में वे अपनी पुरानी बि‍जली विभाग की नौकरी छोड़कर पुलिस में चले गए।

इंडियन एक्सप्रेस द्वारा प्रकाशित किताब 26/11 स्टोरीज़ ऑफ़ स्ट्रेंथ के मुताबिक़ तुकाराम ओंबले के चचेरे भाई रामचन्द्र ओंबले का एक बेटा है स्वानन्द ओंबले। जब ओंबले मुंबई में शहीद हुए थे, तब उसकी उम्र साल भर भी नहीं थी। अपने स्‍कूल में गाना गाते हुए वो कहता है,– ‘माझ्या कक्कानी कसाबला पकड़ला’ यानी मेरे चाचा ने ही कसाब को पकड़ा था।

मीडि‍या में जब तुकाराम के साथी अपने साक्षात्‍कार देते हैं तो वे कहते हैं कि ओंबले हम सभी से अलग थे। जहां हर पुलिसकर्मी ड्यूटी खत्म पर जल्द से जल्द घर की राह देखता था, वहां ओंबले अपनी ड्यूटी से ज़्यादा रुक जाते थे। ओंबले अक्सर नाइट शिफ्ट में देर तक रुक जाते थे, जिससे दूसरे पुलिसकर्मियों को कोई असुविधा न हो। इसके बाद अगले दिन सुबह समय से आ भी जाते थे।

कैसे शहीद हुए थे तुकाराम?
27 नवंबर की रात जब ओंबले का गिरगांव चौपाटी पर अजमल कसाब से सामना हुआ तब ओंबले पूरी तरह निहत्थे थे। इसके बावजूद कि उसके हाथों में एके-47 है, ओंबले बिना परवाह किए उस पर टूट पड़े। अपने हाथों से उसकी एके-47 का बैरल पकड़ लिया। ट्रिगर दबा और पल भर में कई गोलियां चलीं और ओंबले मौके पर बलिदानी हो गए। इसके पहले अजमल कसाब और उसके साथी छत्रपती शिवाजी टर्मिनल पर गोलीबारी कर चुके थे।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

शुक्र प्रदोष व्रत : किस समय करें भोलेनाथ का पूजन, जानिए शुभ मुहूर्त