याद है मुझे जब तुम्हें हम सपरिवार नन्हां सा काली थैली में कुछ चमकदार पत्तों के साथ लाए थे। उस काली थैली में तुम्हारे साथ हमारे कुछ सपने, कुछ अरमान और अतीत की हसरतों का पूरा का पूरा पुलिंदा उजास भर रहा था। नन्हे से तुम, उनको पूरा करोगे ऐसा आश्वासन सा देते, विश्वास से चमकते हमें देख तुम भी तो खुश हो रहे थे। तुम्हारी नन्हीं कोमल नाजुक जड़ें कितनी प्यारी थीं।
उसी में तुम्हारी बुनियाद थी। छोटा-सा लचकदार सिंकड़ी डंडी सा तना जो लगभग एक फुट भी नहीं होगा और वो ऊपर ही ऊपर से बाहर निकलने को फूट पड़तीं वो तुम्हारी चंचल पिद्दी-पिद्दी सी पत्तियां जो दुनिया में आने के लिए इतरा इतरा कर रोज थोड़ी-थोड़ी बड़ी हो रहीं थीं किसी बेटी की तरह।
जिसे तुम बड़ी नाजो-अदा से पाल-पोस कर बड़ा कर रहे थे जबकि तुम भी तो उतने ही छोटे थे हमारे लिए। अब तुम तेईस बरस के हो चले थे। ऐसी क्या खता हुई हमसे कि हमें छोड़ अचानक तुम यूं रूठ कर चले गए? निर्मोही तो कभी नहीं रहे तुम? शायद हमारे प्यार में ही कुछ कमी रह गई होगी जो तुम्हें रुकने को मजबूर न कर पाया।
तुमने हमें अपनाया... अपना प्यार बरसाया... हमारे बरसों पुराने सपने और हसरतों को यथार्थ में बदल कर हमें कृतार्थ किया.... तुम धन्य हो.... तुम धन्य हो...
आज मन फूट कर रोने का है। बचपन से अपने मन को हम कुछ पेड़-पौधों के साथ खुद को जुड़े हुए पाते हैं। प्राणों की तरह। वैसा ही नाता था पूरे परिवार का इस दूधिया चांदनी के इस खूबसूरत पेड़ के साथ।
बचपन से घरों में देखा फिर ब्याह कर आई तब भी गली में घुसते ही घर के पहले प्रणामी मंदिर के परकोटे से उचक-उचक कर गली में ऐसे झांकते दिखता जैसे गली में आने-जाने वाले हर एक की खबर रखना इसके लिए कोई जिम्मेदारी हो या इसका मनोरंजन, या शायद फूल, कली, पत्ती, टहनी का गॉसिप टॉपिक जो इन्हें जड़ों तक पहुंचानी हों। उसके बदले ढ़ेरों सफेद फूलो का तोहफा हमें देते। झोली भर देते। और जब जमीं पर गिरे होते तब तो सुबह इतनी सुहानी हो जाती की मन अपने आप कह उठता की कहीं आज तारे जमीन पर ही तो नहीं रह गए?
जब गोराकुंड से सुखदेवनगर रहने आए तब आने के पहले ही सबसे पहले घर के बाहर क्यारी बनवा ली थी ताकि हरियाली पहले से ही रहे। हमारे आने के तीन साल पहले ही तुम उस घर में अपने बाकी साथियों के साथ आ चुके थे और मुलाकात रोज होती थी। असल में तो वो घर पहले से ही तुम्हारा था, हम तो तुम्हारे घर आये थे रहने के लिए।
तुम सबने हमारा स्वागत किया था। झूम-झूम कर हवा को संगीतमय बना रखते थे तुम सब। अपने फूलों से खुशबूदार भी। तुम्हारी घनी छाया के नीचे कईयों ने आराम किया। तुम्हारी डगालों पर कईयों का सामान टंग जाता। विज्ञापन टंग जाते, त्रिशाखा जोड़ पर तो बाकायदा चाट-पकोड़ी, पानी पतासे के ठेले वालों का सामान, रेडियो, स्पीकर भी तुम पर रखा जाते। हां कभी मैंने कीलें न ठोंकने दीं किसी को। कटिंग- छाटिंग के दौरान भी मेरी निगरानी रहती। शाम के अंधियारे के समय तुम्हारे घनेपन का फायदा उठाते हुए कई किशोर स्कूल गोइंग, टीन एज लवर्स भी आ छुपते।
तुम भी सोचते होगे कि कैसी है ये इंसानों की दोगली दुनिया। इनके बच्चे तक इनसे छुप के प्रेम करते। और खुल के सबसे नफरत। सबके राजदार होते हो तुम सब। कितनी खिल्ली उड़ाते रहते होंगे रे तुम सब हरे भरे दोस्त मिल कर हम इंसानों की।
आज सब याद आ रहा है। तुम्हारा धीरे-धीरे बढ़ना, फूल देने की उम्र आते ही हरे-सफेद रंगों से घर को और सुंदर बना देना। अपने साथियों के संग हर मौसम में झूमना। तुमसे सहारा लिए हुए जो नाजुक बदन बेलें-लताएं, जो तुमसे लिपट कर आसमान से मिलने का अरमान लिए, तुम्हारे भरोसे ऊपर और ऊपर जाने के लिये बेताब दिल से बढ़ी जा रहीं थी वे टूट चुकी हैं।
उनके सपने चूर-चूर हो गए,उनके जीने का सहारा थे तुम। हिम्मत हौंसला और संरक्षक भी। कई सारी नन्हीं चिड़ियां, गिलहरी जो रोज तुम पर अपना हक़ समझ कर उछल कूद किया करतीं थीं गीत गाया करतीं थीं बेहद उदास हैं। तुम्हें ढूंढ रही हैं। उनका तो घर-बार उजाड़ गया है। पीढ़ियों से बसेरा जो था उनका वहां।
कभी भी तुमने हमसे कोई शिकायत नहीं की। केवल हम इंसानों को दिया ही दिया। कई बार तो शायद खाद-पानी की व्यवस्था में हम चूक भी गए होंगे पर तुम कभी नहीं भूले न कभी रूठे न कभी फूल ही देने में आनाकानी की। खुशबू तो हवा की सगी सहेली बन चुकी थी। सारे कालोनी के लोग सुबह से फूल तोड़ने आ जाते तुम कभी दुखी नहीं होते।
अगले दिन फिर से उतने ही फूलों के साथ तैयार। मेरी बद्दुआ उस नियम को लगे जिसने तुम्हारे लिए लगाये ‘ट्री गार्ड’ को निकालने पर हमें मजबूर किया। हालांकि तुम काफी बड़े हो चुके थे। पर हम भूल गए कि बच्चा कितना भी बड़ा हो जाए उसे सुरक्षा चाहिए होती है।
दिल वैसे ही दुखी है जैसे किसी अपने बच्चे के एक्सीडेंट में हुई अकस्मात् मौत से होता है। हमारी अनुपस्थिति में किस राक्षस ने तुमको टक्कर मारी हमें पता ही नहीं लगा। तुम्हार जड़ें टूट गईं, तने सहित हरे भरे फूलों से लदे तुम अपनी जड़ों से अलग हो गए। कितना कष्ट हुआ होगा तुम्हें मैं महसूस कर सकती हूं। तुम हमें माफ़ कर देना बेटे हम तुम्हारी रक्षा नहीं कर सके। तुम अपने उन सभी साथियों से भी हमारी ओर से क्षमा याचना करना जिनके साथ हमारी नीच प्रजाति ने दुष्टतापूर्ण व्यवहार किया और तुम सभी को अपने स्वार्थ के लिए घोर पीड़ा दी। शायद कभी भी इस अपराध का, कहीं भी मोक्ष या प्रायश्चित नहीं होगा।
मेरी बद्दुआ है उस गाड़ीवाले को जिसे इतने किनारे पर खड़े तुम नजर नहीं आए और तुम्हें इतनी गहरी चोटें पहुंचाईं कि तुम वापिस चाह कर भी नहीं जुड़ सकते। मेरी दुआ है तुम्हें, तुम्हारे सभी साथियों को जिन्होंने हमारे घरों को सुंदर तो बनाया ही धूल, मिटटी से बचाया, खुशबू से सरोबार किया। इतने जीव-जंतु, पशु-पक्षियों को जगह दी। हमारे घर को ताजी हवा से, फूलों से महकाया। कभी निराश नहीं किया। माफ करना हमें हम केवल लेना जानते हैं। हम तो पाप करते हैं।
तुमसे कुछ सीखते नहीं। तुम जैसे कईयों की बलि अपने अपने तरीकों से ले कर भी इन्हें शर्म ही नहीं आती। निर्लज्ज और नुगरों के बीच में ही तुम्हें भी जीना है... मौन... लाचार... इनके पाप कर्मों को देखते, पीड़ा भोगते हुए... हमें माफ़ कर देना। याद रखना, हमारा प्यार... हमारा दुलार हमेशा साथ है तुम्हारे। तुम बहुत याद आओगे... बहुत ही ज्यादा। वो कोना सूना हो गया है... तुम्हारी कुछ जड़ें वहीं रहने दीं हैं तुम्हारी निशानी के रूप में... जब भी मन करे लौट आना। ये घर तब भी तुम्हारा था, आज भी है और हमेशा रहेगा... जानती हूं शायद ये संभव नहीं। पर फिर भी तुम्हारा इंतजार रहेगा...