Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

यह कमाल ही है कि जितने ज्‍यादा युद्ध हुए, उतने ही ज्‍यादा शांति पुरस्कार दिए गए

हमें फॉलो करें यह कमाल ही है कि जितने ज्‍यादा युद्ध हुए, उतने ही ज्‍यादा शांति पुरस्कार दिए गए
webdunia

स्वरांगी साने

सकारात्मक रहने के लिए सबसे अधिक ज़रूरत शांति की होती है। यह भी अजब संयोग है कि जितने अधिक युद्ध हुए, उतने ही अधिक शांति पुरस्कार दिए गए। शांति, युद्ध और साहित्य शब्द जैसे आपस में मिल से गए हैं। युद्ध जनित करुणा की स्थिति में शांति की स्थापना का महत्व बढ़ जाता है और शांति की महत्ता को स्थापित करता साहित्य इसी दौरान अधिक से अधिक लिखा जाता है।

सबसे पहला नोबल शांति पुरस्कार 1901 में दिया गया था, तब से शांति पुरस्कारों की संख्या में वृद्धि होती गई। यह वह सदी थी, जिसने सबसे अधिक युद्ध देखे और इसलिए तब ऐसे अधिक से अधिक लोगों को ढूंढना महत्वपूर्ण हो गया था, जिन्होंने शांति के लिए काम किया था। डायनामाइट के आविष्कारक अलफ़्रैड नोबल उसे जंग में इस्तेमाल किए जाने से दुःखी थे, इसलिए उन्होंने अपनी वसीयत में नोबल शांति पुरस्कार का उल्लेख किया था। देखा जाए तो 1901 से 2022 तक 140 नोबल पुरस्कार विजेताओं, 110 व्यक्तियों और 30 संगठनों को 103 बार नोबल शांति पुरस्कार प्रदान किया जा चुका है।

रूस-यूक्रेन युद्ध की त्रासदी के बीच पिछले साल 2022 में बेलारूस के मानवाधिकार अधिवक्ता एलेस बालियात्स्की, रूसी मानवाधिकार संगठन मैमोरियल और यूक्रेनी मानवाधिकार संगठन सेंटर फ़ॉर सिविल लिबिर्टीज़ को नोबल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया। शांति पुरस्कार विजेता अपने घरेलू देशों में नागरिक समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं।

साहित्य के लिए नोबल पुरस्कार फ़्रांसीसी लेखक एनी एरनॉक्स को दिया गया। शांति की बात कहने वाले और शांति के बारे में लिखने वाले युद्ध का समर्थन नहीं करते। वे युद्ध करने वाले दोनों पक्षों के प्रति मानवीय दृष्टिकोण से रचते हैं। भारतीय संदर्भ में महर्षि वेदव्यास रचित महाकाव्य महाभारत का उल्लेख करना यहां लाज़मी हो जाता है। चंदबरदाई लिखित पृथ्वीराज रासो में भी चंद ने युद्ध को प्रधानता देते हुए भी मोहम्मद गोरी के प्रति अमानवता नहीं दिखाई। साहित्य में युद्ध की अनिवार्यता पर लिखा गया, लेकिन युद्ध के परिणाम दर्शाते हुए शांति की स्थापना से मानवता की रक्षा पर भी बल दिया गया।

हालांकि जर्मन दार्शनिक फ़्रैडरिक नीत्शे ने शांति को महत्व नहीं दिया क्योंकि उन्हें लगता था कि संघर्ष ही सभ्यता की उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है। लेकिन शांति की अनुपस्थिति की भारी कीमत चुकाने के बाद लोग शांति के हिमायती हो जाते हैं। शांति की परिभाषा अधिकतर युद्ध न होने की स्थिति के रूप में की जाती है। पर बात रवांडा या बोस्निया की कर लीजिए तो वहां युद्ध भले ही न हो लेकिन शांति भी तो नहीं थी।

विश्व स्तर पर शांति के प्रयासों को इसीलिए बढ़ावा दिया जाता है कि सकारात्मकता स्थापित हो। युद्ध, असंतोष, अवसाद, पलायन,महामारी की चुनौतियों के बीच हमें शांति और भाईचारे के महत्व को समझना ही होगा। लंबे उपनिवेशवादी दौर से मुक्त हुई दुनिया के सामने आज साम्राज्यवाद, बाज़ारवाद और उपभोक्तावाद की चुनौतियाँ हैं। विज्ञान और तकनीकी विकास के साथ आज भी हम युद्धों में उलझे हैं। युद्ध और आंतरिक विघटन से पलायन की समस्या उत्पन्न हो रही है, जिससे शरणार्थियों की समस्या विश्व के सामने खड़ी है। असंतोष के कारणों को देखते हुए अब ऐसी दुनिया का निर्माण करना होगा जिसमें सबके साथ समान व्यवहार हो।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

भांग का नशा उतारने का अचूक उपाय