पंजाब में आतंकवादी हमला बड़े खतरे का संकेत

अवधेश कुमार
यह निस्संदेह राहत की बात है कि पंजाब पुलिस ने अमृतसर के निरंकारी भवन पर हमला करने वालों को गिरफ्तार कर लिया है। गिरफ्तार आतंकवादी का संबंध खालिस्तान लिबरेशन फोर्स से है। उसे पाकिस्तानी एजेंसी आईएसआई से समर्थन मिला था। दोनों हमलावर प्रशिक्षित नहीं थे। पाकिस्तान में किसी हैप्पी से ग्रेनेड मिलने की बात उसने कबूली है। यह हैप्पी पाक स्थित केएलएफ का प्रमुख हरमीत सिंह हैप्पी ही है, जो आरएसएस नेताओं तथा कार्यकर्ताओं और ईसाई पादरी की हत्या के लिए रची गई साजिश का भी मास्टरमाइंड है। पंजाब पुलिस ने इससे पहले पांच ऐसे हथगोले, एके 47 राइफल सहित हथियार बरामद किए, जिन्हें सीमा पार से भेजा गया था। 
 
मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जिस दृढ़ता से आतंकवादियों को परास्त करने तथा सांप्रदायिक सौहार्द्र बनाए रखने का ऐलान किया है वह स्वागतयोग्य है। किंतु आरंभ में उनकी पुलिस ने जिस तरह के बयान दिए उससे निराशा हुई थी। वस्तुतः जिन ने 1980 के दशक में पंजाब के भयावह आतंकवाद के दृश्य देखे हैं उनका दिल निश्चय ही अमृतसर जिले के राजासांसी क्षेत्र के अदलीवाल गांव के निरंकारी भवन पर हुए हमले से दहल गया होगा। रविवार को निरंकारी भवनों में हर जगह अनुयायी एकत्रित होते हैं ओर सत्संग चलता है। सत्संग के बीच बाइक सवार दो युवक आएं और मंच के पास बम चलाकर भाग जाएं तो साफ है कि वो निरंकारी के लोगों की हत्या करना चाहते थे।

 
भले ये प्रशिक्षित आतंकवादी नहीं थे, पर 1980 के दशक में खालिस्तानी आतंकवादी ऐसे ही बाइकों पर नकाबपोश के रूप में आकर हमले करते थे। इसलिए यह तरीका भी भविष्य के लिए खतरनाक संकेत है। पंजाब पुलिस अपने बचाव में जो भी तर्क दे लेकिन यह स्थान अमृतसर शहर से केवल सात किलोमीटर की दूरी पर है। इसे दूरस्थ गांव नहीं माना जा सकता।


पंजाब पुलिस का अधिकृत बयान था कि उनके पास किसी भी संभावित खतरे को लेकर कोई इनपुट नहीं था। निरंकारी समाज को लेकर किसी भी तरह का मुद्दा नहीं था और न ही ऐसा कोई इनपुट पुलिस के पास था। क्या पुलिस के पास ऐसी सूचना होगी कि फलां संस्थान और फलां जगह हमला होगा तभी उसे सटीक इनपुट माना जाएगा? धार्मिक स्थलों पर हमले का इनपुट तो था। कुछ ही दिनों पहले थलसेना प्रमुख जनरल विपीन रावत ने कहा था कि पंजाब में आतंकवादी शक्तियां फिर से सिर उठा रही हैं और तुरत कार्रवाई नहीं की गई तो हमारे लिए कठिनाइयां बढ़ जाएंगी।

 
जाहिर है, पंजाब पुलिस ज्ञात तथ्य को छिपाने का प्रयास कर रही थी। हमले के तीन दिनों पहले ही खबर आई थी कि खुफिया एजेंसियों ने दिल्ली पुलिस को इनपुट भेजा है कि कश्मीर का खूंखार आतंकी जाकिर मूसा अपने साथियों के साथ पंजाब के रास्ते दिल्ली या राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पनाह ले सकता है। इनपुट में कहा गया था कि जैश-ए-मोहम्मद के 6 से 7 आतंकवादी हमले की साजिश रच रहे हैं। सीमा पार से छह-सात आतंकवादियों के पंजाब में घुसने की खबर थी। जाकिर मूसा के अमृतसर में देखे जाने की खबर आई थी।

खुफिया ब्यूरो को इनपुट मिला कि जाकिर मूसा गिरोह के सात आतंकवादी फिरोजपुर आए थे। पठानकोट जिले के माधोपुर के नजदीक ड्राइवर की हत्या कर एसयूवी कार छीनने वाले चार लोग भी अभी तक फरार है। पंजाब पुलिस के हवाले से ही यह बताया गया था कि ये चार आतंकवादी आतंकी मंसूबों को अंजाम देने की खातिर पंजाब में घुसे हैं। ये चारों संदिग्ध जम्मू रेलवे स्टेशन के सीसीटीवी फुटेज में भी नजर आए थे। दिल्ली से सुरक्षा एजेंसियों ने पांच और संदिग्ध आतंकवादियों की तस्वीरें पंजाब के पुलिस महानिदेशक सुरेश अरोड़ा को मेल की गई थीं। इनका हमले में हाथ नहीं है लेकिन इन सब सूचनाओं के बाद पिछले कई दिनों से पंजाब में हाईअलर्ट तो था।

 
पिछले 1 नवंबर को पटियाला में शबनमदीप सिंह नामक खालिस्तानी आतंकवादी गिरफ्तार हुआ था। इसने कहा था कि दीपावली से पूर्व हमले की योजना है। इसने बस स्टैंड जैसे भीड़ वाले इलाके में विस्फोट की योजना की बात बताई थी। इसके बाद आखिर पुलिस को क्या इनपुट चाहिए था? जालंधर में ही एक कश्मरी युवक ग्रेनेड के साथ पकड़ा गया था। इतना ही नहीं जम्मू-कश्मीर पुलिस के साथ पंजाब पुलिस ने हाल ही में पंजाब के संस्थानों में पढ़ रहे कश्मीरी छात्रों के दो गिरोहों का पर्दाफाश किया था, जिनके संबंध कश्मीरी आतंकवादी संगठनों से थे। यह खबर भी लंबे समय से थी कि लंदन से कनाडा तक के खलिस्तान समर्थक पंजाब में फिर से हिंसा और अशांति की स्थिति पैदा करने के लिए सक्रिय हैं तथा पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई अपने स्तर पर काम कर रही है। 18 महीनों में स्वयं पंजाब पुलिस ने 15 से ज्यादा आतंकवादी मॉड्यूल को नष्ट करने का दावा किया है।

अगर आपने 15 मॉड्यल पकड़े तो निश्चय ही ऐसे अनेक मॉड्यूल छिपे हुए होंगे। आतंकवादियों ने कैप्टन अमरिंदर सिंह एवं सेना प्रमुख जनरल रावत को जान से मारने की धमकी दी हुई है। इन सबके बाद कैसा इनपुट चाहिए यह समझ से परे है। 12 अगस्त को लंदन के सिख फॉर जस्टिस के बैनर से 2020 सिख जनमत संग्रह रैली निकाली गई। इसमें खालिस्तानी उग्रवादी समूहों के बचे आतंकवादियों को संदेश निहित था कि आप सक्रिय हो, आपके साथ बड़ा समुदाय खड़ा है। यह अलग बात है कि इनसे बड़ी संख्या में सिखों ने ही लंदन में इनके विरोध में रैली निकालकर करारा जवाब दे दिया। किंतु इससे इन दुष्ट समूहों की सक्रियता का पता तो चल ही गया। 
 
इसलिए ऐसे हमले की आशंका नहीं होने के किस बयान को स्वीकार नहीं किया जा सकता। पंजाब में अशांति पैदा करने वाले भारत विरोधी खालिस्तानी समूह भाड़े के हत्यारों से बीच-बीच में अलग-अलग संगठनों की हत्याएं करवा रहे थे। आरएसएस और शिवसेना के नेताओं की हत्या का उद्देश्य यह था कि इससे हिन्दू गुस्से में सिखों से लड़ने लगें और प्रदेश सांप्रदायिक दंगों की चपेट में आ जाए। ठीक यही दृष्टिकोण निरंकारी अनुयायियों पर हुए हमले में भी देखा जा सकता है। निरंकारी मिशन एक बड़ा समूह है। बाबा बूटा सिंह द्वारा 1929 में स्थापित संत निरंकारी मिशन के दुनिया भर में एक करोड़ से ज्यादा अनुयायी माने जाते हैं। ठीक सत्संग के समय हमला करने का सीधा उद्देश्य यही हो सकता है कि ये गुस्से में हिंसा आरंभ कर दें। संत निरंकारी मिशन स्वयं को न तो कोई नया धर्म मानते हैं और न ही किसी मौजूदा धर्म का हिस्सा, बल्कि वे मानव कल्याण के लिए समर्पित एक आध्यात्मिक आंदोलन के रूप में स्वयं को देखते हैं।

 
स्थापना के समय से ही सिख समुदाय का एक वर्ग इसका विरोध करता रहा है। वे इसे सिख विरोधी धर्म कहते हैं। 40 वर्ष पूर्व 13 अप्रैल 1978 को बैसाखी के दिन अमृतसर में निरंकारी भवन पर हुए हमले के बाद पंजाब हिंसा की चपेट में आ गया था और भिंडरावाले एक वर्ग में लोकप्रिय हुआ। हमले के बाद अकाली कार्यकर्ताओं और निरंकारियों के बीच हिंसक संघर्ष हुआ जिसमें 13 अकाली कार्यकर्ता मारे गए थे। इसके विरोध में रोष दिवस मनाया गया। जरनैल सिंह भिंडरांवाले ने इसको उग्र रूप दिया और उसके बाद क्या हुआ हम सब जानते हैं। पंजाब के आतंकवाद पर काम करने वाले कई विद्वान मानते हैं कि अगर वह हमला न हुआ होता तो भिंडरावाले और उसके साथी एक वर्ग के हीरो बनकर नहीं उभरते एवं उस प्रकार के भयावह चरमपंथ का आविर्भाव नहीं होता।

 
तो पंजाब को हिंसा की आग में झोंकने के हाल के वर्षों के सारे प्रयासों, आतंकवादियों से संबंधित इनपुट, गिरफतारियां, आतंकवादी मॉड्यूल को विफल करने तथा अंततः निरंकारी मिशन के सत्संग पर हमले के बाद यह मानने में कोई हिचक नहीं है कि पंजाब को ठीक 1980 के दशक के भयावह दौर में ले जाने की साजिशें रची जा चुकीं हैं। हमले का स्थान और समय बताता है कि निरंकारी मिशन पर हमला बिल्कुल सुनियोजित साजिश का हिस्सा है। भारत विरोधी समूह निश्चय ही इससे 1978 दुहराने की उम्मीद कर रहे होंगे। लेकिन पंजाब के लोगों ने हिंसक संघर्ष का जो दंश झेला है उसमें वे दोबारा किसी सूरत में नहीं फंसेंगे।

निरंकारी अनुयायियों ने जिस तरह का धैर्य दिखाया है, उनके प्रवक्ताओं ने जैसा संतुलित बयान दिया है उससे इनकी साजिश विफल हो चुकी है। किंतु ये आगे भी हमले की कोशिश और भाड़े के हत्यारों से हत्याएं करवाएंगे। उम्मीद है पुलिस आगे कोई बहाना तलाशने की जगह ऐसे साजिशों को समय पूर्व नष्ट करने में सफल होगी। राज्य को केन्द्र तथा दूसरे राज्यों की सुरक्षा एजेंसियों के साथ सतत समन्वय बनाकर अलगाववादी हिंसा को सिर उठाने के पहले ही कुचलने की हरसंभव कार्रवाई करनी चाहिए। जरूरत हो तो केन्द्र सरकार पंजाब और पड़ोसी राज्यों के मुख्यमंत्रियों, गृह सचिवों, पुलिस प्रमुखों सहित अन्य सुरक्षा बलों के प्रमुखों के साथ खुफिया एजेंसियों की बैठक बुलाकर आकलन करे तथा सुरक्षा ऑपरेशन की योजना बनाकर आगे बढ़ा जाए।

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