Hanuman Chalisa

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
Sunday, 18 May 2025
webdunia

#Ayodhya: राम हमारे डीएनए में, गर्भनाल अयोध्या में

Advertiesment
हमें फॉलो करें Ram temple in ayodhya
, बुधवार, 5 अगस्त 2020 (11:15 IST)
विजय मनोहर ति‍वारी, 

लखनऊ में एक हार के बाद बाबर ने अपने गिरोह से मीर बाकी ताशकंदी को उसके लुटेरे हमलावरों की टुकड़ी के साथ अलग कर दिया था।

ताशकंदी ने अपनी किसी गुमनाम कब्र से काबुल के पास दफन बाबर को ताजा खबरें दी होंगी। उसने नहीं तो दिल्ली के लाल मकबरे से हुमायूं ने अपने अब्बू को दिल्ली, लखनऊ और अयोध्या की आज की रौनकदार अपडेट दी होगी। भारत के ये शुभ समाचार सुनकर बेचैन बाबर अंधेरी कब्र में करवट बदल रहा होगा। क्या मंदिर गिराकर मस्जिद बनाने का उसका सवाब आखिरत के दिन मुकम्मल नहीं माना जाएगा?

क्या वह जन्नत जाने से रह जाएगा? उसने अवश्य ही अपनी औलादों पर दांत पीसे होंगे जो 330 साल के कब्जे में हिंदुस्तान का हिसाब बराबर नहीं कर पाईं थीं। आगरा से लेकर खुलताबाद तक जाने कितनी बेनूर कब्रों में कितनी रूहें तड़प रही होंगी! इस दृश्य को आगे बढ़ाने के लिए मैं शीघ्र ही इतिहास की परतों में उतरने वाला हूं। किंतु आज का शुभ मुहूर्त अयोध्या के स्मरण का है।

1528 का साल हजारों वर्ष पुरानी अयोध्या पर भीषण वज्रपात का साल है। जैसे किसी प्रतिष्ठित ऋषि के आश्रम में कोई दुर्दांत आतंकी उनकी प्रतिष्ठा को पल भर में मिट्‌टी में मिला दे। उस साल अयोध्या में एक नया धर्म द्वार नहीं खटखटा रहा था। आज्ञा लेकर आने की शिष्टता तो भूल ही जाइए। वह द्वार-दीवार तोड़कर घुसे और गर्दन दबोच ली। सुरमे लगी और लालच से उबलती लाल आंखों ने घर की हर मूल्यवान चीज पर अपनी डरावनी दृष्टि दौड़ाई। हजारों हाथ हथौड़े लिए टूट पड़े। बारूद की गंध हवाओं में घुल गई। मंदिर मटियामेट कर दिए गए और आश्रम उजाड़ दिए गए। गलियों में लूटपाट और मारकाट का शोर मच गया। अयोध्या का वैभव धूल में मिल गया। अयोध्या अनादिकाल से भारत की मांग में भरा हुआ चमकता सिंदूर थी, जो पौंछ दिया गया था।

इतिहास ने उस साल अयोध्या को पथराई आंखों वाली एक निरीह और निर्वस्त्र स्त्री की तरह सामने देखा था। आभूषणों से सज्जित सुगंधित देह पर खूनी खरोंचें थीं। केश धूल-धूसरित थे। मस्तिष्क सुन्न था। वह अवाक् थी। हजारों वर्षों की स्मृतियों में ऐसा पहली बार देखा और भोगा था। राक्षस कुल के विभीषण को रूपांतरित और अजेय रावण को मारने वाले राम स्मृतियों में थे, लेकिन अयोध्या को लगा कि वे सारे राक्षस नाम और रूप बदलकर लौट आए हैं। अयोध्या ने पहली बार अल्लाहो-अकबर का हो-हल्ला और माले-गनीमत की वीभत्स घोषणाएं सुनीं! कन्नौज के गहड़वाल वंश के राजाओं का बनवाया हुआ विष्णु हरि के मंदिर से धूल का गुबार वायुमंडल में बिखर गया। मलबे पर एक मस्जिद का ढाँचा उगाया गया ताकि धर्म भी हमारे हिसाब से चले! कैसा धर्म!!

अयोध्या शून्य में ताक रही थी। चार सदियों तक लोग लड़े और मरे। अधूरी स्वतंत्रता के इन 70 सालों में सेक्युलर कीड़े-मकोड़े घावों पर मंडराते रहे। पीड़ित अयोध्या मूक दर्शक बन गई। क्या भाग्य लेकर आई थी अयोध्या! उसने राम का युग देखा, राजाओं के वैभवशाली कालखंड देखे। दासता में सब उजड़ते देखा और स्वतंत्रता पश्चात शातिर ठगों के सेक्युलर गिरोह भी। धर्म को उसने बीज से वृक्ष बनते हुए त्रेतायुग में देखा था और धर्म के नाम पर आतंक को जड़ें जमाते कलयुग में देखा। वह ढांचा इन्हीं दुष्ट शक्तियों का प्रतीक बनकर खड़ा रहा था।

अयोध्या गहरे मौन में थी। उसे अपने बच्चों पर पूरा विश्वास था। वे कभी चैन से नहीं बैठे थे। मैदान में भी लड़े थे। अदालतों में भी। महत्वपूर्ण यह नहीं है कि प्रसाद किसे मिला, महत्वपूर्ण यह है कि यज्ञ-अनुष्ठान संपन्न हुआ। सफल हुआ। सबने अपनी आहुतियां अर्पित कीं। किसी ने शीश कटाए। किसी ने नारे लगाए। कोई ईंट ले आया। कोई जल ले आया। आज का दिन सबके हिस्से का परम प्रसाद है!

अयोध्या संकल्प शक्ति की प्रतीक है। यह दिन 492 साल लंबी प्रतीक्षा के बाद आया है, जब अयोध्या की गलियों में बारूद की गंध नहीं है। जन्मभूमि मंदिर में हथौड़ों की ठक-ठक और धूल नहीं है। अयोध्या की आंखों की नमी सरयू में बह रही है। बच्चे रंग-रोगन कर रहे हैं। नदी-सरोवरों के जल से अभिषेक कर रहे हैं। श्रृंगार कर रहे हैं। सुगंध से भर रहे हैं। संसार भर से उपहार आए हैं। अयोध्या के मुख पर मुस्कान लौट रही है। राम ने 14 वर्ष लंबे वनवास में तरह-तरह के नाम वाले राक्षसों का बोझ धरती से कम किया था। वे लंका से लौटे थे तब ऐसी ही रंग और रोशनी आ गई थी। आज फिर स्वर्णिम अतीत इतिहास की अंधेरी सुरंगों से बाहर झांक रहा है। दीपावली आते ही दीवारों पर टंगे मकड़ियों के जाले झाड़ दिए जाते हैं। साल भर की धूल और काई साफ हो जाती है। जीवन श्वांस लेने लगता है। अयोध्या भी भारत के जीवन में एक गहरी और नई श्वांस भर देगी।

अयोध्या का श्रृंगार किसे प्रसन्न नहीं करेगा? जो प्रसन्न न हो वह भारतीय नहीं। अयोध्या केवल उन सौभाग्यशाली हिंदुओं की ही नहीं है, जो दस सदियों की दासता के क्रूर दमन में अपनी हिंदू पहचान बचाकर निकल आने में सफल हुए। अयोध्या उन हिंदुओं की भी है, जिनकी पहचानें गुलामी की भगदड़ में गुम हो गईं! जिन्होंने किसी सदी में खुद को नए नाम और नई शक्ल में देखा! वह सच नहीं है। वह पहचान भी गुलामी का प्रमाण है। चलते-फिरते ढांचे जिन्हें स्वयं ही ढहाना है और लौटना है अपनी अयोध्या में। अयोध्या यही याद दिला रही है।

भले ही पहचान बदली हुई हो किंतु यह किसी के लिए भी रूठने या क्रोध करने की घड़ी नहीं है। अपने पूर्वजों का स्मरण करने का इससे अच्छा शुभ मुहूर्त दूसरा नहीं आएगा। घर के एकांत कोने में सोचें कि इतिहास के किस अपमानजनक मोड़ पर नाम, धर्म और पहचान बदल गई थीं? राम का रास्ता छोड़कर जाने की क्या विवशता रही होगी, कैसे लालच घेरे होंगे, किसने तलवार अड़ा दी थी? यह मुंह लटकाने और मन मसोसने का दिन नहीं है। यह मन के सब मैल धोकर बाहर निकालने का दिन है। अयोध्या उन्हें और उनके पुरखों को भी कभी भूल नहीं सकती, जो अयोध्या को भुलाए अब तक ढांचे में लटके हैं। वह ढांचा इतिहास में खो गया है, जैसे एक दिन उनकी मूल पहचानें खो गई थीं। यह रूठने का नहीं, याददाश्त पर जोर मारने का समय है। यह प्रायश्चित्त का अवसर है।

हम सब राम के वंशज हैं! हमारे महान पुरखे ही राम की कथा में कोई न कोई पात्र रहे हैं। नदी पार कराने वाले, समुद्र पार तक ले जाने वाले हजारों पात्र। अनगिनत राजवंशों के समय अयोध्या की चमक को बढ़ाने वाले पात्र, जिनके हाथ अनगिनत राम मंदिरों को बनाने में लगे थे। अयोध्या के हर घर में मंदिर हैं। उजाला अयोध्या में न होता तो कहां होता? राम की आहट है। अयोध्या के दीप्त मुख पर हंसी लौट रही है। कलाइयों में कंगन खनक रहे हैं। नेत्र प्रकाश से भर गए हैं। मांग अब सूनी नहीं है। कंठ से स्वर फूट रहे हैं। पवित्र नदियों के जल से धुले केश मोगरे से महक रहे हैं। सारी दुनिया में लोग टकटकी लगाए हैं। दिवाली के पहले सबसे बड़ी दिवाली का दिन है।
वाल्मीकि और तुलसी किसी लोक में आनंदित होंगे। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला राम की शक्तिपूजा झूमकर गा रहे होंगे। रामचंद्र दास परमहंस की आंखें झर रही होंगी। अमृतलाल नागर मानस के हंस में ही मगन होंगे। रामानंद सागर करबद्ध प्रणाम की मुद्रा में मौन होंगे। अरुण गोविल अपने बच्चों को तीस साल पुराने किस्से सुना रहे होंगे। लालकृष्ण आडवाणी को राम रथयात्रा के ऊर्जा से भरे दिन याद आ रहे होंगे। राम हमारे डीएनए में हैं और हमारी गर्भनाल अयोध्या में...
(विजय मनोहर ति‍वारी लेखक वरि‍ष्‍ठ पत्रकार और लेखक हैं।)

(इस लेख में ‍व्‍यक्‍त विचार लेखक की निजी अनुभूति‍ है, वेबदुनिया का इससे कोई संबंध नहीं है।)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

श्री राम लला का चमत्कारी सरल तारक मंत्र : श्री राम जय राम जय जय राम