बात यहां से शुरू करते हैं : सत्ता और संगठन में विनय सहस्त्रबुद्धे का दबदबा बढ़ने लगा है। बढ़ते रुतबे के कारण उनके दरबार में भीड़ भी बढ़ने लगी है। दरअसल भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने जो वर्किंग स्टाइल तय की है उसमें अब दिल्ली दरबार में बारास्ता विनय सहस्त्रबुद्धे ही दस्तक दी जा सकती है। इसी का फायदा सहस्त्रबुद्धे को मिलने लगा है।
चाहे मंत्री हो या संगठन में जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग, सब सहस्त्रबुद्धे से नजदीकी बनाने में लगे हुए हैं। जिनकी नजदीकी पहले से है उनका वजन बढ़ गया है। वैसे जिस तरह विनय जी का वजनदार होना मंत्रिमंडल के मामले में ओमप्रकाश सकलेचा के लिए फायदेमंद रहा वैसा ही संगठन के मामले में डॉ. हितेश वाजपेई के लिए हो सकता है।
अतिउत्साह में कटे जीतू के नंबर : इसे समय का फेर ही कहा जाएगा। बारास्ता राहुल गांधी मध्य प्रदेश की कांग्रेस राजनीति में सारे सूत्र अपने हाथ में केंद्रित करने की उम्मीद लगाए बैठे जीतू पटवारी इन दिनों अपनी ही पार्टी के नेताओं के निशाने पर आ गए हैं। अतिउत्साही जीतू जल्दी नंबर बढ़ाने के चक्कर में पीछे होते जा रहे हैं। दुर्भाग्य यह भी है कि कांग्रेस की राजनीति में उनके एक और बड़े पैरोकार दिग्विजय सिंह भी इन दिनों मदद की स्थिति में नहीं हैं। पिछले दिनों एक विवादास्पद ट्वीट के बाद तो कमलनाथ ने जीतू को कांग्रेस के मीडिया सेल से मुक्ति देने का मन बना लिया था। बात हालांकि जैसे तैसे संभल गई पर पूछ परख पहले जैसी नहीं रही।
भार्गव और सिंह की पूछपरख बढ़ी : रमाकांत भार्गव और राजेंद्र सिंह, यह दो ऐसे किरदार हैं जिनकी इन दिनों बड़ी पूछ परख है। रमाकांत भार्गव विदिशा से सांसद हैं और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बहुत भरोसेमंद। राजेंद्र सिंह भाजपा कार्यालय के अघोषित सर्वेसर्वा हैं। यहां सब कुछ इनके इर्द-गिर्द ही है। 15 महीने बाद भाजपा की सत्ता में वापसी का सबसे ज्यादा लाभ जिन लोगों को मिल रहा है, उनमें ये दोनों शामिल हैं। बात उठना स्वाभाविक है कि आखिर इन दोनों में ऐसा क्या है, जवाब मिलेगा एक श्यामला हिल्स यानी मुख्यमंत्री निवास। वैसे दोनों का बढ़ता वजन कईयों की आंख की किरकिरी बना हुआ है।
जस्टिस मित्तल की नई भूमिका : मध्यप्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस अजय कुमार मित्तल सितंबर महीने में अपना कार्यकाल पूरा कर रहे हैं। कार्यकाल पूरा होने में भले ही डेढ़ महीने का समय हो लेकिन जस्टिस मित्तल की नई भूमिका को लेकर अभी से चर्चा चल पड़ी है। कहा यह जा रहा है कि वह केंद्र में लोकपाल होने जा रहे हैं। यहां अभी एक पद खाली है। चर्चा तो यह भी है कि कार्यकाल पूरा होने के पहले भी जस्टिस मित्तल को यह मौका मिल सकता है।
जयदीप प्रसाद की राह पर राजाबाबू : जयदीप प्रसाद के बाद अब राजाबाबू सिंह भी केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर जाने की तैयारी में हैं। ग्वालियर से भोपाल तबादले के बाद जिस तरह से राजाबाबू की पदस्थापना में बदलाव किया गया और अपेक्षाकृत कम जिम्मेदारी वाली भूमिका सौंपी गई उसी के बाद उन्होंने दिल्ली जाने का मानस बनाते हुए राज्य सरकार से स्वीकृति चाही थी। चूंकि उनका 3 साल का कूलिंग ऑफ पीरियड अक्टूबर में समाप्त हो रहा है इसलिए राज्य सरकार ने भी उन्हें इजाजत दे दी। अब दिल्ली में फैसला होना है कि राजाबाबू सिंह को क्या भूमिका दी जाए।
प्रमोटी अफसरों का दबदबा : प्रमोटी आईएएस यानी राज्य प्रशासनिक सेवा से भारतीय प्रशासनिक सेवा में आए अफसरों का कमिश्नरी के मामले में ऐसा दबदबा पहले कभी देखने को नहीं मिला। यह इसलिए हकीकत है कि इस समय मध्य प्रदेश के 10 में से 9 संभागों में प्रमोटी अधिकारी कमिश्नर हैं। सिर्फ इंदौर को छोड़कर। भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर, उज्जैन, रीवा, सागर, चंबल, होशंगाबाद और शहडोल संभाग की कमान प्रमोटी अफसरों के हाथ में है।
इनमें से चार कमिश्नर एमबी ओझा, महेश चौधरी, जनक कुमार जैन और रवि कांत मिश्रा इसी साल रिटायर हो रहे हैं, बाकी भी साल छह महीने में हो जाएंगे। इतना ही नहीं ओझा, शर्मा और मिश्रा तो एक से ज्यादा संभागों की कमान संभाल चुके हैं और चौधरी को एक ही संभाग में दो बार कमिश्नर रहने का मौका मिला है। इसके पहले प्रमोटी अफसरों को चंबल, रीवा और होशंगाबाद जैसे संभागों में ही मौका मिल पाता था।
आज बात करेंगे इसी महीने सेवानिवृत्त होने जा रहे भारतीय प्रशासनिक सेवा के 2 बेहतरीन अफसरों की। एक हैं, अशोक कुमार भार्गव और दूसरे श्रीकांत पांडे। भार्गव राज्य प्रशासनिक सेवा से भारतीय प्रशासनिक सेवा में आए थे और पांडे अन्य सेवाओं से भारतीय प्रशासनिक सेवा में। दोनों का बहुत शानदार कॅरियर रहा। इंदौर के एक बहुत सामान्य परिवार से ताल्लुक रखने वाले भार्गव जिस पद पर भी रहे उसकी गरिमा में चार चांद लगा दिए और नए प्रतिमान स्थापित किए। उनकी हर पदस्थापना के साथ एक उपलब्धि जुड़ी हुई है। पांडे कॉलेज की प्रोफेसरी छोड़कर जिला पंजीयक बने थे और बाद में आईएएस हुए। अपने बेदाग प्रशासनिक कॅरियर के लिए वह भी हमेशा याद रखे जाएंगे।
मोदी के चहेते अफसरों में शुमार विवेक : मध्य प्रदेश कैडर के दमदार आईएएस अफसर विवेक अग्रवाल इन दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चहेते अफसरों में एक हैं। केंद्रीय कृषि मंत्रालय के संयुक्त सचिव की हैसियत से अग्रवाल किसानों से संबंधित मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट पीएम किसान देखते हैं। इसके प्रभारी के नाते वे प्रधानमंत्री से तो सीधे संवाद में रहते ही हैं राज्यों और केंद्र के बीच सेतु की भूमिका भी निभाते हैं। विजनरी अफसर के रूप में पहचाने जाने वाले अग्रवाल कृषि मंत्रालय में ऐसे कई प्रोजेक्ट मॉनिटर कर रहे हैं जो पीएमओ की प्राथमिकता में हैं। यहां मंत्री के रूप में नरेंद्र सिंह तोमर की मौजूदगी भी अग्रवाल का कद बढ़ाने में मददगार साबित हो रही है।
नगर निगम में तो इनकी ज्यादा चलती है : नगर निगम में इन दिनों सबसे ज्यादा किसकी चल रही है? जवाब मिलेगा निगमायुक्त प्रतिभा पाल और कुछ हद तक कलेक्टर मनीष सिंह की। पर हकीकत यह नहीं है। सबसे ज्यादा चल रही है नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह के ओएसडी राजेंद्र सिंह सेंगर की। आप भी पता कीजिए।
क्या मान जाएंगे नंदकुमार? : चर्चा यह चल पड़ी है कि यदि मांधाता से कांग्रेस अरुण यादव को मैदान में लाती है तो उनसे मुकाबले के लिए भाजपा नारायण पटेल के बजाय अर्चना चिटनिस को मैदान में ला सकती है। प्रश्न यह है कि क्या इसके लिए नंदकुमार सिंह चौहान तैयार होंगे?
पुछल्ला : ऐसी संभावना है कि माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के नए कुलपति का चयन श्री सच्चिदानंद जोशी, डॉक्टर कुलदीपक अग्निहोत्री और प्रोफेसर प्रकाश बरतुनिया करेंगे। अंदाज़ लगाइए किसे मौका मिल सकता है।