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रुबिया सईद अपहरण मामले की कानूनी परिणति बदले समय का प्रमाण

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अवधेश कुमार

समय का चक्र घूमते हुए एक समय न्याय की परिधि तक अवश्य पहुंचता है। क्या किसी ने कल्पना की थी कि 32 वर्ष पहले कश्मीर में स्वर्गीय मुफ्ती मोहम्मद सईद की छोटी बेटी रुबिया सईद अपहरण का मामला फिर से खुलेगा और न्यायिक प्रक्रिया मुकाम पर पहुंचने की ओर अग्रसर होगी?

पिछले 16 जुलाई को जम्मू के टाडा न्यायालय में रुबिया सईद ने यासीन मलिक समेत चारों आरोपियों की पहचान की। जम्मू-कश्मीर ही नहीं, पूरा देश मान चुका था कि रुबिया अपहरण का मामला आया गया हो चुका है। लेकिन जैसी स्थिति पैदा हो चुकी है उसमें यासीन मलिक सहित शेष आरोपियों को सजा मिलना निश्चित है। यासीन मलिक आतंक के वित्तपोषण मामले में राजधानी दिल्ली की तिहाड़ जेल में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहा है।

यह दूसरा मामला होगा, जिसमें यासीन को सजा मिलने की संभावना है। जिस दिन नरेंद्र मोदी सरकार ने अलगाववादी नेताओं तथा पूर्व आतंकवादियों से नेता बने लोगों के विरुद्ध गैरकानूनी गतिविधियां निवारक कानून के तहत मामला दर्ज किया उसी दिन साफ हो गया था कि कश्मीर में 90 के दशक में हुए भयावह अन्याय के न्यायिक प्रतिकार का रास्ता बन चुका है।

आतंकवाद के वित्तपोषण मामले में लोगों की गिरफ्तारियां हुई और सजा मिलनी शुरू हो चुकी है। जो भी गिरफ्तार हुए जाहिर है उनसे संबंधित सारे मामले खंगाल कर नए सिरे से उन पर कानूनी प्रक्रिया भी आरंभ हुई। इसी के तहत यासीन मलिक से जुड़े मामले भी पुलिस और एनआईए ने खोल दिया।

इस मामले में यासीन मलिक के साथ उन्हीं के संगठन जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट यानी जेकेएलएफ के कमांडर मेहराजुद्दीन शेख, मोहम्मद उस्मान मीर और मंजूर अहमद सोफी भी सुनवाई के दौरान न्यायालय में मौजूद रहे। यासीन मलिक ने दिल्ली में होने के कारण वर्चुअली  न्यायिक प्रक्रिया में भाग लिया किंतु उसने खुद जम्मू के न्यायालय में पेश होकर जिरस करने का आग्रह किया। न्यायालय ने यासीन के विरुद्ध प्रोडक्शन वारंट जारी कर दिया है।

न्यायिक प्रक्रिया पर हम नजर रखेंगे। रुबिया सईद अपहरण तब सर्वाधिक चर्चित मामला था। केंद्रीय गृह मंत्री की बेटी के अपहरण की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार में  गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद पर ही कई हलकों में आरोप लगा था कि उन्होंने जेल में बंद आतंकवादियों को छुड़ाने के लिए अपनी बेटी के अपहरण का नाटक रचवाया था। श्रीनगर के सदर पुलिस थाने में 8 दिसंबर, 1989 को रुबिया सईद अपहरण का मामला दर्ज हुआ था। इसके अनुसार रुबिया ट्रांजिट बैन में श्रीनगर के ललदेद अस्पताल से नौगांव अपने घर जा रही थी। तब वह एमबीबीएस के बाद अस्पताल में इंटर्नशिप कर रही थी। जब वह चांदपुरा चौक के पास पहुंची तो उसी में सवार तीन लोगों ने बंदूक के दम पर वैन रोका और रुबिया का अपहरण कर लिया। बाद में उन्होंने अपने साथियों को जेल से छोड़ने की मांग की।

ये कुख्यात आतंकवादी थे। अपहरण के मामले में थाने में यासीन मलिक, मेहराजुद्दीन शेख ,मोहम्मद जमाल ,अमीर मंजूर अहमद सोफी के अलावा अली मोहम्मद अमीर, इकबाल अहमद, जावेद अहमद मीर, मोहम्मद रफी, वजाहत बशीर और शौकत अहमद बख्शी के नाम शामिल है।

गृहमंत्री की कुर्सी पर बैठे बड़े नेता की बेटी का अपहरण भारत के इतिहास की असाधारण घटना थी। पूरा देश सकते में था। अंततः सरकार ने 13 दिसंबर को पांच आतंकवादियों को रिहा किया, जिसके बाद रुबिया को छोड़ा गया। छोड़े गए आतंकवादियों में शेर खान पाक अधिकृत कश्मीर का रहने वाला था जिसे बाद में सुरक्षा बलों ने मार गिराया। दूसरा भी सुरक्षा बलों के साथ श्रीनगर में मारा गया। जावेद जरगर और नूर मोहम्मद याहिन जेल में हैं। हां, अल्ताफ अहमद तत्काल बेंगलुरु में एक रेस्त्रां चला रहा है।

यह सामान्य स्थिति नहीं थी कि इतने बड़े अपहरण के आरोपी खुलेआम घूमते ही नहीं रहे, जम्मू-कश्मीर में सम्मान पूर्वक जीवन जिया। यासीन मलिक हीरो की तरह रहते थे। जिस तरह की कार्रवाई मोदी सरकार आने के बाद हुई वह पहले भी हो सकती थी। समस्या केवल जम्मू कश्मीर के संदर्भ में सही राजनीतिक सोच तथा इच्छाशक्ति की थी। सही सोच और इच्छाशक्ति के अभाव के कारण ही प्रदेश की स्थिति बिगड़ी, आतंकवादी निर्भय हुए और बड़े समूह के अंदर हीरो माने जाने लगे। अलगाववादियों को सम्मानजनक स्थान भी केंद्रीय राजनीतिक नेतृत्व की गलत सोच के कारण ही प्राप्त हुआ।

समय के साथ बहुत चीजें बदली हैं। इस मामले को जम्मू के विशेष टाडा न्यायालय में ठीक प्रकार से प्रस्तुत किया गया। न्यायालय ने 29 जनवरी ,2021 को रुबिया सईद अपहरण मामले में यासीन व अन्य को आरोपी करार दे दिया। इसमें तीन प्रत्यक्ष गवाह हैं जिनमें रूबिया के अलावा फेस्टिवल डॉक्टर शहनाज हैं।

रुबिया सईद अपहरण मामले का खुलना और यहां तक पहुंचना केवल एक अपहरण की न्यायिक प्रक्रिया भर नहीं है। यह जम्मू कश्मीर और उसके संदर्भ में आए व्यापक बदलाव का प्रमाण है। रुबिया सईद अपहरण कांड जम्मू कश्मीर में आतंकवाद को आगे बढ़ाने का महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। उससे आतंकवादियों का हौसला बढ़ा और उन्होंने जो कहर बरपाया वह इतिहास का भयानक अध्याय बन चुका है। कश्मीरी हिंदुओं और सिखों का निष्कासन और पलायन परवर्ती घटनाएं हैं।

इस एक प्रकरण के बाद आतंकवादी निर्भय होकर वारदातों को अंजाम देने लगे थे। पुलिस प्रशासन का धरातल पर नामोनिशान नहीं रहा। तब फारुख अब्दुल्ला मुख्यमंत्री थे। उन्होंने बाद में बयान दिया कि रुबिया की रिहाई के प्रयास में केंद्र सरकार से किसी तरह का सहयोग नहीं मिल रहा था। उनके अनुसार आतंकवादियों को छोड़ने के लिए कहा जा रहा था। सामान्यतः फारूक अब्दुल्लह की बातों पर विश्वास करना कठिन होता है। किंतु इस मामले में वीपी सिंह सरकार में शामिल वर्तमान में केरल के राज्यपाल मोहम्मद आरिफ खान ने भी कहा है कि फारुख और उनके अधिकारियों ने कहा था कि रुबिया को छुड़वाने के लिए आतंकवादियों को रिहा करने की जरूरत नहीं है। आरिफ खान के अनुसार उन्होंने यही बात तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह और गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद को बताया। उनका कहना है कि इसके बाद उन्हें उस प्रक्रिया से ही अलग कर दिया गया।

स्पष्ट है कि केंद्र सरकार आतंकवादियों से लोहा लेने को तैयार नहीं थी और घुटने टेक दिए। अगर उस समय संकल्पबद्धता दिखाई गई होती तो जम्मू कश्मीर की स्थिति काफी हद तक अलग होती। आतंकवादियों को रिहा न करने का मतलब होता आतंकवाद के विरुद्ध सख्त अभियान व कार्रवाई। वीपी सिंह के बाद आई नरसिंह राव की सरकार ने भी रुबिया अपहरण मामले को आगे बढाने में रुचि नहीं दिखाई। हालांकि उस दौरान आतंकवाद के विरूद्ध कार्रवाई हुई एवं जम्मू कश्मीर में इतनी शांति स्थापित हुई जिससे 1996 में विधानसभा चुनाव कराया जा सका। पहली बार वर्तमान मोदी सरकार ने आतंकवाद, अलगाववाद और हिंसा से संबंधित वारदातों को उसके सही परिप्रेक्ष्य के साथ कानून के कठघरे तक लाने का साहस किया है।

इसके द्वारा संदेश दिया गया है कि जो कुछ पहले हुआ वह अब संभव नहीं है तथा जिन्हें आतंकवादी, अलगाववादी और गैर कानूनी गतिविधियों के बावजूद सम्मान मिलता रहा उनको उनकी असली जगह यानी कानून के कटघरे से लेकर जेल तक पहुंचाया ही जाएगा। यह हो भी रहा है। रुबिया सईद का गवाही देने के लिए न्यायालय में आना भी सामान्य घटना नहीं है। इससे पता चलता है कि जम्मू कश्मीर का वातावरण कितना बदल चुका है। स्वयं मुफ्ती मोहम्मद सईद और उनकी पुत्री पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती इस मामले को खुलवाने के पक्ष में नहीं थे। बावजूद मामला खुला, परिवार की ही सदस्या उस समय अपहृत रुबिया न्यायालय तक आई और उसने वही बोला जो कानून के तहत इन्हें सजा दिलाने के लिए पर्याप्त है। यह प्रदेश के बदले हुए वातावरण में ही संभव हुआ है। पहले माहौल यही था कि यदि मामले को आगे बढ़ाया गया तो रुबिया एवं अन्य गवाह इन्हें पहचानने से इंकार कर दे या न्यायालय में पेश होने से बचें।

तो इसका भी विश्लेषण करना पड़ेगा कि आखिर ऐसी स्थिति कैसे पैदा हो गई कि रुबिया सामान्य तरीके से न्यायालय पहुंची और उन्होंने गवाही दी? वह आगे जिरह में भी उपस्थित होने को तैयार हैं। इसका अर्थ है कि अब आतंकवादियों का भय कम हुआ है तथा बदली हुई आबोहवा का आभास वहां के राजनीतिक परिवारों को हो चुका है। उन्हें पता है कि अगर हमने न्यायिक प्रक्रिया में सहयोग नहीं किया तो  हमारे साथ भी कानून अपने तरीके से काम करेगा। इसे ही कानून का राज कहते हैं जिसकी आवश्यकता जम्मू कश्मीर में सबसे ज्यादा थी। इस तरह कुल मिलाकर रूबिया सईद अपहरण प्रकरण की कानूनी प्रक्रिया ने साफ संदेश दे दिया है कि यह पहले वाला जम्मू कश्मीर नहीं है। अब उन सभी मामलों में न्याय होगा जिनमें इसकी आवश्यकता थी लेकिन पूरी नहीं की गई।

नोट :  आलेख में व्‍यक्‍त विचार लेखक के निजी अनुभव हैं, वेबदुनिया का आलेख में व्‍यक्‍त विचारों से सरोकार नहीं है।

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