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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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प्रवासी भारतीयों को भावनात्मक रूप से जोड़ने की कोशिश

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अवधेश कुमार

भारत इस मायने में सौभाग्यशाली है कि विश्व में शायद ही ऐसा देश हो जहां भारतवंशियों की उपस्थिति नहीं हो। ऐसे भारतवंशियों की संख्या 3 करोड़, 9 लाख 95 हजार 729 हैं। ये सब भारतवंशी हैं जो कई कारणों से विदेश में जाकर बस गए, या वहां काम कर रहे हैं। इतनी बड़ी शक्ति का ठीक प्रकार से उपयोग कर उनका भारत को लाभ पहुंचाने की स्थिति निर्मित करने का दायित्व हमारा है। 
 
नरसिंह राव के शासनकाल में इस पर फोकस देना आरंभ हुआ जिसने अटलबिहारी वाजपेयी के काल में बेहतर ठोस रुपकार लिया, मनमोहन सिंह के काल में भी काम होता रहा, पर नरेंद्र मोदी के काल में ही उसे वास्तविक चरित्र मिल पाया यह सच है। यह नहीं कह सकते कि इस दिशा में जितना कुछ और जैसा होना चाहिए वैसा ही सब कुछ हो गया है पर उस प्रक्रिया में तेजी से पायदान पार हुए हैं तथा जिस भावनात्मकता और प्रेरणा से भारतवंशी इस दौरान भारत के निकट आएं हैं, उनकी भावना और प्रेरणा को बनाए रखने के लिए सरकारी स्तर पर जितने कदम इस दौरान उठे हैं, जैसे सतत प्रयास हुए हैं वैसा पहले नहीं हुआ।

 
इन सब पर अनेक बार चर्चा हुई है, इसलिए यहां विस्तार से जाने की आवश्यकता नहीं। प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन आए भारतवंशियों को अपनत्व महसूस कराने तथा वे जहां हैं वहां भारतीय हितों के लिए काम करने की स्थायी प्रेरणा देने का भारत के लिए सबसे बड़ा अवसर होता है। यह केवल औपचारिक सम्मेलनों के परंपरागत ढांचे में ही संभव नहीं हो सकता। सम्मेलन के परे भी ऐसा माहौल बनाने की जरूरत होती है जो उनके मन पर अमिट छाप छोड़ सके। क्या वाराणसी में आयोजित 15वें प्रवासी सम्मेलन को इन कसौटियों पर खरा माना जा सकता है?

 
यह प्रश्न इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस बार सम्मेलन का विषय नव भारत के निर्माण में प्रवासी भारतीयों की भूमिका थी। मीडिया की सुर्खियां तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण का वह अंश बना जिसमें उन्होंने बिना नाम लिए पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कथन का हवाला देते हुए कहा कि एक प्रधानमंत्री ने स्वीकार किया था कि केंद्र से चले धन का 15 प्रतिशत ही जनता तक पहुंच पाता है। उन्होंने कहा कि हमने नकेल डाली और मजबूत इच्छाशक्ति के साथ पूरा 100 पैसा गरीबों तक पहुंचाया।
 
उन्होंने यह संदेश देने की कोशिश की जो छवि भारत की आपके मन में थी वह बदली है। प्रधानमंत्री ने इसके अलावा अनेक ऐसी बातें कहीं, भारतवंशियों की कठिनाइयों और उनकी सोच को ध्यान में रखते हुए उठाए गए तथा भविष्य में उठाए जाने वाले कदमों की जानकारियां दीं जो उनको भारत से औपचारिक और स्वाभाविक जुड़ाव को सशक्त करेगा।


मसलन, उन्होंने कहा कि सरकार प्रवासी भारतीयों की यात्रा को आसान बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठा रही है। चिप-आधारित ई पासपोर्ट, इसके लिए वैश्विक पासपोर्ट सेवा नेटवर्क की केंद्रीकृत प्रणाली तैयार करने से लेकर प्रवासी भारतीयों के लिए पीआईओ, वीजा और ओसीआई कार्ड को सोशल सिक्योरिटी सिस्टम से जोड़ने के प्रयासों तथा वीजा प्रक्रिया को और सरल बनाने पर काम करने की सूचना दी। प्रधानमंत्री ने हर सम्मेलन में ऐसे कुछ कदम उठने की घोषणा की और उसे मूर्त रूप दिया गया।

 
ऐसी और भी बातों का यहां उल्लेख किया जा सकता है। किंतु यहां सम्मेलन की व्यवस्थाओं तथा आए भारतवंशियों के साथ सरकारी व्यवहार की चर्चा करना इसलिए आवश्यक हैं, क्योंकि यह उनके मानस पटल पर सबसे ज्यादा प्रभाव डालता है। जिनने बाबतपुर हवाई अड्डे का दृश्य देखा होगा वे मानेंगे कि इस तरह के स्वागत की उन्हें कल्पना नहीं रही होगी। जहाज से उतरते ही हवाई अड्डे का दृश्य बिल्कुल संस्कृतिमय।

भारत की विविधताओं का दर्शन। उसके साथ एक-एक अतिथि को माला पहनाकर भारतीय परंपरा के अनुसार चंदन टीका से स्वागत, वहां से उनकी निर्धारित संख्या के अनुसार सजी धजी गाड़ियों से निवास पहुंचाना और वहां भी ऐसा स्वागत एवं व्यवहार की कोई अभिभूत हुए बिना नहीं रह सके। वास्तव में इस सम्मेलन की जैसी तैयारी की गई वैसा पहले कभी नहीं हुआ।

नया अस्थायी शहर ही बसा दिया गया। वाराणसी में वरुणा पार इलाके के बड़ा लालपुर में मुख्य आयोजन स्थल ट्रेड फैसिलिटी सेंटर को सजा-संवारकर बिल्कुल बदल दिया गया। वहां गंगोत्री से गंगा सागर तक गंगा के भव्य रूप के साथ काशी की विरासत को फसाड सीन से दर्शाया गया।

ट्रेड फैसिलिटी सेंटर के पास ऐढ़े गांव में 42 एकड़ क्षेत्र के प्रवासी शहर में मेहमानों के लिए 3000 कॉटेज बनाई गई। इनमें सारी सुविधाएं उपलब्ध थीं। जिम, योग व स्पा सेंटर, एटीएम, मुद्रा एक्सचेंज काउंटर, ई-रिक्शा आदि की भी व्यवस्था थी। फूड कोर्ट में कॉन्टिनेंटल, भारतीय-चीनी व्यंजनों भारत के सभी राज्यों के खास व्यंजनों के साथ वाराणसी स्टॉल भी लगा।

 
सम्मेलन की तिथियां और योजनाएं ऐसे बनाईं गईं जिनसे इनकी यात्रा का विस्तार प्रयागराज कुंभ तथा गणतंत्र दिवस समारोह तक हो सके। लग्जरी कारों और बसों से भारतवंशियों को कुंभ स्नान के लिए वारणसी से प्रयागराज ले जाया गया। कुंभ नहाने के बाद सभी को चार लग्जरी ट्रेनों से दिल्ली ले जाया गया।

यहां प्रवासी भारतीय गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल हुए। सम्मेलन के दौरान राजघाट पर गंगा महोत्सव का आयोजन हुआ। प्रवासी भारतीयों ने गंगा आरती में भाग लिया, सुबह-ए-बनारस का दृश्य देखा। उनको काशी विश्वनाथ सहित वाराणसी के प्रसिद्ध मंदिरों में दर्शन कराए गए। प्रसिद्ध कलाकारों के अलावा अलग-अलग विद्यालयों के छात्र-छात्राओं को अलग-अलग देशों की संस्कृति और वेशभूषा के अनुसार तैयार कर कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया। अतिथियों को किसी तरह की असुविधा न हो, इसके लिए 50 प्रवासी भारतीयों पर एक अधिकारी तैनात थे।

सम्मेलन में आए जितने प्रवासी भारतीयों की प्रतिक्रियाएं मीडिया में आईं वो संतोष प्रदान करने वालीं हैं। अनेक के उद्गार यही थे कि ऐसे शानदार व्यवहार की उम्मीद उन्हें नहीं थी। जो पहले आ चुके हैं उनकी प्रतिक्रिया थी कि इसके पूर्व ऐसा कभी नहीं हुआ। 30 वर्ष पहले वाराणसी आए पोलैंड के एक प्रवासी भारतीय का कहना था कि उन्होंने सोचा भी नहीं था कि यह शहर कभी ऐसा हो जाएगा। हमें अपनी सांस्कृति के साथ ऐसा अनुभव हो रहा है मानो यूरोप के किसी विकसित शहर में हों। यह उद्धरण साबित करता है कि परंपरा और संस्कृति के साथ विकास का दिग्दर्शन कराने में सरकार सफल हुई।

 
निस्संदेह, आर्थिक विकास, शासन के चरित्र में परिवर्तन आदि बातों का भी असर होता है। इसलिए प्रधानमंत्री ने विकास के साथ दुनिया में भारत के बढ़ते प्रभाव आदि का उल्लेख कर अच्छा ही किया। पर्यावरण पुरस्कार तथा अंतरराष्ट्रीय सौर ऊर्जा के लिए 100 से ज्यादा देशों का संगठन बनाकर एक नई व्यवस्था की ओर बढ़ने की चर्चा से भी भारतवंशियों के अंदर अपने मूल देश के प्रति गर्व का भाव पैदा हुआ होगा। किंतु भारतवंशी इसके साथ अपने मूल देश में अपनी संस्कृति, सभ्यता, अध्यात्म, कला आदि का वो रुप देखने की तमन्ना रखते हैं जिनकी मोटा-मोटी कल्पना उनके अंतर्मन में रहती है।

 
एक बड़े तबके ने अपने देशों में जितना संभव है इन थातियों को बचाकर रखा है। इन सबको और जानने-समझने की जिज्ञासा की पूर्ति ही उनको यह अहसास कराता है कि यह उनका ही मूल देश है। प्रधानमंत्री आग्रह कर रहे थे कि आप जहां हैं वही भारत का दूत बनकर काम करें। वे बनें तो किस बात का दूत? उनसे आप पर्यटन के लिए कम से कम पांच लोगों को लाने का आग्रह कर रहे थे। वे लाएं तो दिखाएं क्या? इनकी भी कल्पना देनी जरूरी थी और इसमें भारतीय विरासत ही मुख्य भूमिका में आ सकता है।
 
प्रवासी तीर्थ दर्शन योजना शुरू करने की घोषणा इस मायने में ऐतिहासिक हो सकता है। इससे भारतवंशियों तथा उनके साथ आनेवालों को तीर्थ स्थानों के सुगम दर्शन की सुविधा सुलभ कराई जाएगी। मुख्य अतिथि मॉरिशस के प्रधानमंत्री प्रवींद जन्नाथ ने जब कहा कि भारत अतुल्य है और भारतीयता सार्वभौम तो उसका आधार क्या था? उन्होंने अध्यात्म और संस्कृति की ही बात की।

उन्होंने कहा कि काशी में तुलसी ने रामायण लिखी, हम सब यहां आए हैं और बाबा विश्वनाथ और मां गंगा का आशीर्वाद  लेकर जाएंगे। उन्होंने जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी और उनके सरकार के कार्यक्रमों की प्रशंसा की उसका विवरण हमारे यहां राजनीतिक विवाद का विषय बन जाएगा। किंतु यह भारत में आ रहे बदलावों तथा उठाए जा रहे कदमों की प्रशंसा थी जिनसे प्रभावित होकर कई देशों ने उनका अनुसरण किया है। इस तरह प्रवासी भारतीय सम्मेलन अपने स्पष्ट उद्देश्यों के अनुरूप माहौल बनाने में सफल माना जाएगा।

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