जो चाहें वो पाएं, ऐसे इस्तेमाल करें अपना 'सब कॉन्शस माइंड'

नम्रता जायसवाल
कहते हैं कि एक आम इंसान अपने दिमाग का केवल 10% ही इस्तेमाल करता है, जो कि दिमाग की क्षमता से बहुत ही कम है। दरअसल हमारे दिमाग के दो प्रकार होते हैं। एक को 'कॉन्शस माइंड' व दूसरे को 'सब कॉन्शस माइंड' कहा जाता है, यानी की चेतन और अवचेतन मन। चेतन मन के बारे में तो हम सभी जानते हैं, इसी का इस्तेमाल हम अपने रोजमर्रा के जीवन में करते हैं। इसी माइंड से हम सोचते-समझते हैं और एक्शन लेते हैं। इस दिमाग से सोचा और किया गया हर काम केवल सतही होता है।
 
जीवन में हमारे साथ जो भी घटित होता है उसमें असल खेल तो हमारे 'सब कॉन्शस माइंड' का होता है यानी कि 'अवचेतन मन' का। आप इसका जितना ज्यादा इस्तेमाल करेंगे उतना ही बेहतर जीवन पा सकेंगे।
 
पूरे दिन में हजारों विचार हमारे माइंड से होकर गुजरते हैं। कुछ तो ऐसे विचार व इच्छाएं होती हैं जो इतनी दबी होती हैं कि हमें उनके बारे में पता भी नहीं होता और जब वे घटनाएं हमारे जीवन में साकार हो जाती हैं तो हम समझ ही नहीं पाते कि ऐसा क्यों हुआ?

दरअसल सारा खेल हमारे अवचेतन मन का है। यह जो चाहता है वही स्थिति कभी न कभी हमारे जीवन में वास्तविकता में घटित हो जाती है। अवचेतन मन की एक विशेषता है कि इसे हमारे द्वार दिए गए निर्देश जो कि सकारात्मक व नकारात्मक विचारों के रूप में होते हैं, इनके बीच फर्क करना नहीं आता। आप जो भी सोचते हैं आपका 'सब कॉन्शस माइंड' उसे हकीकत में बदलने में जुट जाता है।
 
अवचेतन माइंड कभी सोता नहीं है, कभी रुकता नहीं है, चाहे आप सो रहे हों तब भी यह चलता रहता है। इसी का उदाहरण है आपका बिना रुके लगातार सांस लेते रहता और दिल का धड़कते रहना। जब आपको कोई चोट लग जाती है तो यह आपकी वाइट ब्लड सेल्स को उस चोट को ठीक करने का आदेश देता है और कुछ ही दिनों में आपकी चोट ठीक हो जाती है, क्योंकि आप चाहते हैं कि आपकी चोट ठीक हो जाए। इसके बाद आपका 'सब कॉन्शस माइंड' आपके आदेश को मानकर काम करने में झुट जाता है।
 
तभी कहा जाता है कि हमेशा अच्छा ही सोचें, वही जो आप चाहते हैं। क्योंकि जो आप चाहते हैं, वही होता है। जाने-अनजाने में आप चिंता कर बैठते हैं, नर्वस हो जाते हैं और इस तरह के अनेक नकारात्मक विचार कई बार मन को घेर लेते हैं। ऐसे में कुछ सही होने के बजाए स्थिति और बिगड़ जाती है क्योंकि आप वहीं सोच रहे होते हैं। तो अब से केवल सकारात्मक ही सोचें और उसे साकार होता हुआ देखें।

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