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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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पत्र लेखन दिवस : प्रिय पत्र, तुम आना लौट कर,हम तुम्हें याद करते हैं.....

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स्मृति आदित्य

प्रिय पत्र, 
प्यार भरी यादें 
 
तुम कहाँ हो,कैसे हो? किधर लापता हो..... तुम्हारी सौंधी यादों के साथ आज तुम्हें चिट्ठी लिख रही हूँ....एक वक़्त था जब तुम पीले रंग के पोस्ट कार्ड और नीले रंग के अंतर्देशीय में मिट्टी की  खुशबू लेकर पूरे घर को महका जाते थे....एक वक़्त था जब तुम पिता की चिंता, बहन के हाल, भाई के समाचार और मां के दुलार को लिफाफे में अपने पन्नों पर समेटे आते थे और आंखों की कोर से बूंद बन मन को भीगो जाते थे.... 
 
तुम न आओ तो एकहूक सी उठती थी.... प्रतीक्षा में एक विकलता और छटपटाहट होती थी....बाहर से सब शांत और भीतर से उथल पुथल..... और जैसे ही पोस्टमैन की साइकिल की आवाज आती नवरंगी फुहारे मन के भीतर से फूटने लगती.... कौन जाने  सरहद से प्रियतम का कोई सांकेतिक संदेश हो, आने की सूचना हो, बुलाने का दिलासा हो....फिर दूसरे ही पल आशंका से भी दिल धड़क जाता था ...सब  खैरियत से तो है न..... 
 
हर तीज, त्योहार, दिवस, पर्व और मांगलिक आयोजनों पर बहन की दहलीज एक मासूम आस लगाए दूर तक देखती थी और राहों पर अपनी यादों के फूल बिछाया करती थी....तुम्हारी आहट आने तक जाने कितने गीत भी गुनगुना लिया करती थी....और जो तुम न आते तो आहत मन से खुद ही खुद को समझा भी लिया करती थी.... 
 
तुम कहाँ चले गए हम सबके अतीत की सुहानी यादों का पिटारा लेकर.....मोबाइल के आने से ही तुम थोड़े घबराए थे.... पर हम भावुक मन फिर भी तुम्हें ही हाथ में लेकर जीना चाहते थे....धीरे धीरे पोस्ट बॉक्स का वजन कम हुआ, आपस की दूरियां कम हुई लेकिन तुमसे दूरी बढ़ने लगी....

फिर तो सम्पर्क,संवाद और संदेशों के लिए इतने तकनीकी साधन आए कि तुम उदास से उपेक्षित हो कब गुमशुदा हो गए किसी को अहसास तक न हुआ.... एसएमएस,एमएमएस, ई मेल व्हॉट्सएप से  होते हुए ये दुनिया जाने कहाँ से कहाँ पहुंच गई लेकिन तुम आज भी यादों की उस चंदन पेटी में महक रहे हो....तुम्हारे गुलाबी पन्नों पर प्यार के छींटे मारते ही सौंधी सुगंध आज भी पूरे घर में फैल जाती है..... 
 
तुम्हें लगता है सब तुम्हें भूल गए हैं लेकिन मेरे मित्र,मेरे पत्र तुम हर किसी की स्मृतियों का एक खास मीठा हिस्सा हो.....आज भी राखी की बिदाई में जब ननद ये चिट्ठी छूपाकर रख जाए कि भाभी बस प्यार ऐसे ही बनाए रखना तो भाभी का लाड़ आंखों से बहकर गालों पर ठहर जाता है....आज भी जब शुभ नेग में भाई लिखकर रख दे कि ये सिर्फ तुम्हारे लिए है तो दिल से छलछल नदी बह निकलती है.....भला  व्हॉट्सएप  के इमोजी की क्या बिसात की तुम्हारे शब्द मोतियों की बराबरी कर सके.....
  
तुम कभी भी भुलाए नहीं जा सकते पत्र.....तुम्हारे साथ हम सबका कोई न कोई कच्चा कोरा मन बंधा है ....कोई रेशमी याद गुंथी है...कोई भीगी सी बात लिखी रखी है....जिसे सिर्फ तुम जानते हो जिसे सिर्फ हम जानते हैं.....  
 
प्रिय पत्र, तुम आना लौट कर,हम तुम्हें याद करते हैं..... 
 
तुम्हारी स्मृति में 
तुम्हारी स्मृति  

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