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भूतपूर्व सवाल और भूतपूर्व जवाब!

अनिल त्रिवेदी (एडवोकेट)
Why questions are necessary: मनुष्य और दिमाग की जुगलबंदी सवाल और जवाब के बगैर नहीं हो सकती। यदि मनुष्य के मस्तिष्क में सवाल ही नहीं आते तो आज भी मनुष्य जस का तस ही होता यानी प्रागैतिहासिक काल खंड जैसा आदिमानव। उस समय आदिमानव को कुछ करने और सोचने की जरूरत ही नहीं थी फिर भी उसने निरंतर सोचा और दुनिया सोच-विचार सवाल जवाब से ही निरन्तर आगे बढ़ती रही। आधुनिक काल खंड की विकसित दुनिया में आज जहां देखो वहां एक ऐसी दुनिया बनती जा रही है जो मनुष्य के मन में आए सवालों से मुंह चुराती नजर आ रही हैं!
 
संसदों में सवाल-जवाब से ज्यादा शोर-शराबा : अभी तक हम असंख्य सवालों से जूझते हुए आगे बढ़ते रहे और गर्व करते नहीं थकते देखा हमने गूढ़तम सवाल का भी उत्तर तलाश लिया है! पर अब दुनिया भर में फैले हुए मनुष्य खुलकर सवाल जवाब करने से बचने लगे हैं। यह देश दुनिया के पैमाने पर ही नहीं समाज, घर-परिवार के स्तर पर भी यही सब आम बात हो रही है। बड़ों से या ताकत वर से सवाल मत पूछो यहां से ही शुरुआत हो रही है। सवाल को विद्रोह या असभ्यता की संज्ञा दी जाने लगी है।
 
जवाब नहीं है इसलिए सवाल नहीं पूछा जाता ऐसा मामला नहीं है सवाल पूछे जाएंगे तो जवाब देना होगा और जवाब को लेकर फिर सवाल किया जाएगा और फिर ज़वाब देने का सवाल खड़ा हो जाएगा। इसलिए सवाल को खड़ा ही नहीं होने दो तो जवाब का सवाल ही नहीं खड़ा होगा! दुनिया भर की संसदों में सवाल जवाब से ज्यादा हो-हल्ला और शोर-शराबा छाया हुआ है। प्राचीन काल में राजा महाराजा से सवाल जवाब न करने की बात तो एक बार समझी जा सकती है पर चुनीं हुईं और संविधान के पेट से निकली और चलने वाली सरकारों और संस्थानों को भी सवाल जवाब नाहक बवाल ही लगने लगा है।
 
मनुष्य से ज्यादा मशीन पर भरोसा : आज की दुनिया का मजा यह है कि मनुष्य का मनुष्य से ज्यादा मशीन पर भरोसा बढता ही जा रहा है। मनुष्य और मशीन में बुनियादी अंतर यह है कि मनुष्य को प्रलोभन देकर खुश और सम्मानित किया और खरीदा जा सकता है डराया धमकाया जा सकता है पर मशीन को न तो खुश किया जा सकता है और ना हीं डराया धमकाया या लोभ लालच देकर सम्मानित ही किया जा सकता है। मनुष्य प्रकृति का अंश है और मशीन मनुष्य की कृति का अंश है इसी कारण मनुष्य मशीनों पर एकाधिकार स्थापित कर मशीन द्वारा आंकड़ों के खेल से मनचाहा परिणाम पाने की दिशा में तेजी से चल पड़ा है। इस कारण आज की दुनिया में मनुष्य और मशीन दोनों ही केन्द्रित एकाधिकार वाली अर्थव्यवस्था के पुर्जे बन गए हैं। मशीन के बल पर दुनिया भर में कामकाज पर एकाधिकार करना आसान होता जा रहा है।
 
सर्वप्रभुता सम्पन्न नागरिक सारी दुनिया में निष्प्रभावी उपभोक्ता बन गया है। आज मनुष्य किसी भी सवाल का जवाब मनुष्य के बजाय मशीन से पूछता है गूगल और ग्रोक डूबते नागरिकों के तिनके के सहारे जैसे बन गए हैं। आज की दुनिया में मनुष्य से ज्यादा मशीन की पूछताछ दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। आज तक मनुष्य या समाज का विकास मनुष्यों के मध्य होने वाले संवाद या सवाल जवाब के अंतहीन सिलसिले पर निर्भर था पर आधुनिक काल में देश और दुनिया में कोई भी आपसी विचार विमर्श और सवाल जवाब को बीती हुई दुनिया का अवशेष मानने लगे हैं। 
 
सवाल उठाना असभ्यता : सवाल उठाना या जवाब मांगना अब असभ्यता या अभद्रता मानी जाने लगी हैं। न कुछ बोलना और न कुछ पूछना सत्ता या दुनिया चलाने वालों की पहली पसंद बन गई है। दुनिया भर में राजा-रजवाड़ों से लेकर तानाशाही हुकूमत ही नहीं चुनी हुई लोकतंत्रात्मक संविधान वाली सरकारों को भी सवाल जवाब पसंद नहीं है। हमारे पढ़े-लिखे समझदार माने जाने वाले परिवारों और समाजों में भी युवा पीढ़ी को सवाल जवाब करने हेतु प्रेरित नहीं किया जाता इसके उलट आज्ञाकारी होना या आंख मीचकर जो हो रहा है उसे बिना किसी सवाल जवाब के मानते रहना ही सभ्यता और संस्कृति और संस्कार की गौरवशाली परंपरा माना जाता है।
 
संसदीय लोकतंत्र और संसदीय कार्य में सवाल जवाब और तार्किक बहस इतिहास हो गई। सत्ता पक्ष और विपक्ष सवाल जवाब और बहस से ज्यादा यंत्रवत कार्यवाही में उलझकर देश और दुनिया के सवालों का हल निकालने में रुचि रखने से बचना चाहते हैं। आज की दुनिया में बहस को विवाद या झगड़ा या वितंडावाद निरूपित किया जाने पर आम सहमति जताई जा रही है। इसी कारण आज की दुनिया में मनुष्य की चेतना से ज्यादा मशीन की यंत्रवत कार्यवाही को लोकप्रिय बनाने का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है।
 
मानव जीवन की चेतना और मस्तिष्क के प्रयोग से हिलमिल कर निजी और सार्वजनिक जीवन में समस्या समाधान की मानवीय मूल्यों पर आधारित पद्धति का आधुनिक काल में दिन-प्रतिदिन लोप होता जा रहा है। विचार के मामले में सदियों से अपने देश समाज को सिरमौर मानने वाले लोग अपने देश के भविष्य के नागरिकों को वैचारिक नींव डालने वाले स्कूलों को बंद होते चुपचाप देखते हुए भौंचक्का बने हुए हैं। स्कूल कालेज में डमी एडमिशन गर्व का विषय और कोचिंग क्लास युवा शिक्षा के नए तीर्थस्थल बन गए हैं। दुनिया भर में सबसे ज्यादा युवा पीढ़ी वाले लोकतंत्र में युवा पीढ़ी के मन में सवालों और जवाबों का भूतपूर्व होते जाना आधुनिक काल में अभूतपूर्व स्थिति हैं।

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